यहां अतिक्रमणकारियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि अब वे खुलेआम विश्राम घाट की जमीन भी हथियाने की फिराक में हैं। लोगों की सुविधा के लिए यहां बारिश और धूप से बचाव के लिए शेड बनाया गया है। जिसमें होटल वाले व मैकेनिक अपने चार पहिया और दो पहिया वाहन खड़े कर देते हैं। कई बार तो अंतिम यात्रा निकलने में ही समस्या खड़ी हो जाती है। अगर रास्ते पर अति₹मण करने वालों से कोई कुछ कहता है तो वे लडऩे पर उतर आते हैं।
डूबने की स्थिति में प्रतिमाएं
विकास कार्यो में परिसर के अंदर रुकने वह सभा करने वालों की सुविधा के लिए शेड व बैठने के स्थान तो खूब बनाएं गए है,लेकिन उसमें बारिश का पानी निकालने की तत्काल कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जिसके कारण शेड में बने देवी-देवताओँ की प्रतिमा स्थल तक पानी भरा रहा है। इसके अलावा लकड़ी के गोदाम से लेकर पीछे के हिस्से में पानी कई जगह भरा हुआ था। कर्मचारियों का कहना है कि ड्रेनेज व्यवस्था नहीं होने के कारण पानी तत्काल नहीं उतरता है।
विश्रामघाट के साथ ही यहां बने नाले और आसपास से बहकर आने वाले पानी की निकासी की व्यवस्था को दुरुस्त नहीं किया जा सका है। बारिश में पानी श्मशान के अंदर लगी ईष्ट देवी-देवताओं की प्रतिमाओं तक जमा हो रहा है।
यहां के कर्मचारी व स्थानीय लोगों ने बताय कि ड्रेनेज व्यवस्था पर काम ही नहीं हुआ है, जबकि योजना में वह शामिल था। गौरतलब है कि नगर निगम भोपाल ने छोला विश्राम घाट के विकास के लिए 16 करोड़ रुपए का बजट मंजूर किया है। इसमें से 10 करोड़ रुपए की लागत से मुख्य द्वार का निर्माण, बाउंड्रीवॉल, नाली, पाथवे, शोक सभा हाल, नाले की दीवार, शेड, पार्किंग स्थल, सड़क का निर्माण शामिल है।
30 किलो ज्यादा वजन दिखा रहा तौल कांटा
विश्रामघाट में दाह संस्कार की लकड़ी तौलने के लिए कांटा लगा हुआ है। पड़ताल में सामने आया कि यह शून्य की बजाय 30 किलो वजन से शुरू हो रहा है। कर्मचारियों ने बताया कि पानी में भीगने से तकनीकी खराबी आ गई है। लोगों ने बताया कि इस पर ध्यान न दिया गया गया तो 30 किलो लकड़ी का पैसा एक्स्ट्रा देना पड़ सकता है। मीटर को जीरो करने वाला बटन भी काम नहीं कर रहा है।
पिछले छह-सात सालों में छोला विश्रामघाट में विकास कार्य सबसे अधिक हुए है। पहले से व्यवस्था सुधरी है। ड्रेनेज व्यवस्था पर जरुर काम नहीं होने के कारण बारिश में पानी भराने की समस्या हो जाती है। इस मामले पर जिम्मेदारों को बता दिया गया है।
– नारायण सिंह कुशवाह, प्रबंधक, छोला विश्रामघाट