भोपाल

ताप्ती नदी से नालों ने छीन ली ऑक्सीजन, मरने लगी मछलियां

खत्म हो रहीं नदियां: 90 करोड़ खर्च कर सीवेज सिस्टम बनाए, पर फिर भी नाले नहीं रोक सके

भोपालMay 23, 2022 / 09:38 am

दीपेश तिवारी

बुरहानपुर । Burhanpur

अपने वजूद व इंसानों की जिंदगी को बचाए रखने के लिए लड़ रही नदियां सरकारी लापरवाही से दिनों दिन मर रही हैं। मानव सभ्यता को जीवन देने वाली नदियों में गंदा पानी, जहरीले रसायन मिल रहे हैं। भले ही दिखावे के लिए ही सही, लेकिन सरकारें इन्हें बचाने के लिए योजनाएं तो बना ही रही हैं, इसके बावजूद इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा पा रहा है।

ऐसा ही एक नमूना मध्यप्रदेश के बुरहानपुर से गुजरने वाली अहम नदी ताप्ती में सामने आया। शहर से निकलने वाला नालों का गंदा पानी जहरीला हो गया। पानी में ऑक्सीजन की कमी हो गई और हजारों मछलियों की मौत हो गई। जानकारों की माने तो यह पानी इंसानों के लिए भी खतरनाक है।

इससे कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। शनिवार सुबह 6 बजे ताप्ती नदी राजपुरा के दूसरे किनारे जैनाबाद की तरफ छोटी सहित बड़ी हजारों मछलियां मृत मिलीं। नदी में ऑक्सीजन नहीं मिलने से सांस लेने मछलियां ऊपर आकर दम तोड़ रही है।

वहीं मत्स्य विभाग के सहायक संचालक एएस भटनागर ने कहा, मार्निंग सिकनेस बीमारी से मछलियों की मौत की बात कह रहा है। सुबह ऑक्सीजन न मिलने से मौत हुई है। नदी के राजघाट, सतियारा घाट सहित अन्य घाटों पर गर्मी में हर साल हजारों मछलियां ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ती हैं। जैनाबाद के संदीप चौहान ने बताया, दो-तीन दिन से मछलियां दम तोड़ रही हैं। स्वप्नाली वाणी ने कहा, नदी की सफाई के लिए हमें आगे आना ही होगा।

90 करोड़ फूंके, फिर भी नदी अशुद्ध
ताप्ती नदी को शुद्ध रखने के लिए सीवरेज योजना पर अब तक 90 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन अब भी ताप्ती में सीवरेज का गंदा और जहरीला पानी मिल रहा है। घरों पर कनेक्शन जोड़कर चेंबर तक बनाए गए हैं। इसके बावजूद पानी ट्रीट होकर ताप्ती नदी में नहीं बहाया जा रहा है। इसके पहले भी ताप्ती शुद्धिकरण योजना में तीन करोड़ रुपए खर्च किए थे। यह मशीन जंग खाने के बाद इसे सुधारने में फिर एक करोड़ और लगा दिए, वह भी काम नहीं आया।

कैसे करें सिंचाई, पेयजल में इस्तेमाल?
मछलियों की मौत के बाद एक साथ कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। स्थानीय लोगों की माने तो कल तक यह नदी जीवनदायिनी थी। लोग इसके पानी से खेतों में सिंचाई कर रहे थे। पेजयल के लिए भी इसके पानी का इस्तेमाल होता था। नदी की गोद में ही बड़ी आबादी पली-बढ़ी। अब यही नदी जहरीली होती जा रही है।

लोग सीधे ही गंदगी नदी में डाल रहे हैं। इसकी निगरानी तक नहीं की जा रही है। ऐसे में नदी के पानी से सिंचाई और पेयजल के इस्तेमाल की कल्पना कैसे की जा सकती है। नदी का मरना सभ्यता की मौत है। लोगों ने इसके लिए जिला प्रशासन और सरकार से बात कर विकल्प तैयार करने की बात कही।

नदी में ऑक्सीजन कम
ताप्ती नदी के पानी में ऑक्सीजन की कमी के कारण मछलियां दम तोड़ती है। इसे मार्निंग सिकनेस कहा जाता है, इसका असर देखने को मिल रहा है।

– एएस भटनागर, सहायक संचालक मत्स्य विभाग

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