बन गया अपनी पत्नी की स्मृति का पुजारी
नाटक स्मृति का पुजारी होरी और सरला की कहानी है। सरला की मौत के बाद होरी अपना जीवन उसकी स्मृतियों में व्यतीत करने लगता है। दोस्त और परिवार के लोग दूसरी शादी के लिए मनाते हैं, लेकिन वह खुद को स्मृति का पुजारी मानता है। एक दिन गांव में एक हेड मिस्ट्रेस आती हैं, जो होरी से शादी के लिए तैयार हो जाती हैं। होरी भी खूबसूरती से प्रभावित होकर हां कह देता है। इससे खुश होकर होरी के दोस्त और परिवार वाले जश्न मनाने लगते हैं। अंत में होरी को सरला की याद आती है और उसे खुद से किया वादा भी याद आता है, जिसके बाद वो शादी के लिए मना कर देता है और हमेशा के लिए स्मृति का पुजारी बनकर जीवन बिताता है।
नाटक स्मृति का पुजारी होरी और सरला की कहानी है। सरला की मौत के बाद होरी अपना जीवन उसकी स्मृतियों में व्यतीत करने लगता है। दोस्त और परिवार के लोग दूसरी शादी के लिए मनाते हैं, लेकिन वह खुद को स्मृति का पुजारी मानता है। एक दिन गांव में एक हेड मिस्ट्रेस आती हैं, जो होरी से शादी के लिए तैयार हो जाती हैं। होरी भी खूबसूरती से प्रभावित होकर हां कह देता है। इससे खुश होकर होरी के दोस्त और परिवार वाले जश्न मनाने लगते हैं। अंत में होरी को सरला की याद आती है और उसे खुद से किया वादा भी याद आता है, जिसके बाद वो शादी के लिए मना कर देता है और हमेशा के लिए स्मृति का पुजारी बनकर जीवन बिताता है।
मां नहीं मोबाइल फोन लेने आए हैं
मां और मोबाइल समीर और उसके परिवार की कहानी है। परिवार एक कमरे में होकर भी मोबाइल फोन की दुनिया में खोया रहता है। मां खुद को अकेला पाती है। मां, बेटे से मंदिर घूमने जाने की बात कहती है। वह मां को मोबाइल में ही देशभर के मंदिर दिखाने लगता है। मां के नाराज होने पर सभी भोपाल घूमने का प्लान बनाते हैं। वह घर से 20 किमी दूर निकल जाते हैं, तभी उन्हें याद आता है कि वह मां को तो घर छोड़कर आ गए। वह मां को लेने जाने की बजाए आगे निकल जाते हैं। परिवार सीहोर टोल नाके पर जाकर रुकता है, तभी समीर को याद आता है कि वह मोबाइल तो घर पर ही भूल गया। समीर को घर आता देख मां बोलती है कि मुझे पता था कि तू मां को लेने जरूर आएगा। तभी बच्चे कहते हैं पिता आपको नहीं, मोबाइल फोन को लेने आए हैं।
मां और मोबाइल समीर और उसके परिवार की कहानी है। परिवार एक कमरे में होकर भी मोबाइल फोन की दुनिया में खोया रहता है। मां खुद को अकेला पाती है। मां, बेटे से मंदिर घूमने जाने की बात कहती है। वह मां को मोबाइल में ही देशभर के मंदिर दिखाने लगता है। मां के नाराज होने पर सभी भोपाल घूमने का प्लान बनाते हैं। वह घर से 20 किमी दूर निकल जाते हैं, तभी उन्हें याद आता है कि वह मां को तो घर छोड़कर आ गए। वह मां को लेने जाने की बजाए आगे निकल जाते हैं। परिवार सीहोर टोल नाके पर जाकर रुकता है, तभी समीर को याद आता है कि वह मोबाइल तो घर पर ही भूल गया। समीर को घर आता देख मां बोलती है कि मुझे पता था कि तू मां को लेने जरूर आएगा। तभी बच्चे कहते हैं पिता आपको नहीं, मोबाइल फोन को लेने आए हैं।