सत्य के आगे सारे बेबुनियाद आरोप धराशायी
नाटक की शुरुआत में एक व्यक्ति की हत्या की योजना बना रहे चार युवाओं से होती है। उनमें से एक युवा को इस कृत्य के प्रति शंका होती है और वो बाकी तीनों से एक बार और विचार करने को कहता है। वे तीनों दोस्त मिलकर कमरे में मुकदमा चलाते हैं। शंकित युवक को उस व्यक्ति का प्रतिनिधि बनाया जाता है जिसे मारा जाना है। अधेड़ उम्र के व्यक्ति को जज, प्रथम व्यक्ति को सरकारी वकील और द्वितीय व्यक्ति को गवाह की भूमिका दी जाती है। फिर शुरू होती है आरोप, प्रत्यारोप, बचाव और लांछन की अदालत। अंत में सत्य के आगे ये सारे बेबुनियाद आरोप धराशायी हो जाते हैं पर संहिता के विपरीत जज पूर्व निर्धारित फैसला ही सुनाता है और उस व्यक्ति की हत्या कर दी जाती है।