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भोपाल

कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पर तैयार किया नाटक

भारत भवन में ब.व. कारंत स्मृति समारोह ‘आदरांजलि’ में नाटक ‘खामोशी सिली सिली’ का मंचन
 

भोपालSep 03, 2018 / 01:28 pm

hitesh sharma

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कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पर तैयार किया नाटक

भोपाल। भारत भवन में चल रहे ब.व. कारंत स्मृति समारोह ‘आदरांजलि’ में दूसरे दिन रविवार को नाटक ‘खामोशी सिली सिली’ का मंचन एनएसडी, नई दिल्ली की रंगमण्डल रेपर्टरी ने दी। नाटक का निर्देशन सुरेश शर्मा ने किया। नाटक की कहानी जोसेफ स्टेन लिखित विश्व विख्यात नाटक ‘फिडलर ऑन द रूफ’ का हिन्दी अनुवाद है।

1960 में लिखी गए इस नाटक के देश-विदेश में एक हजार से ज्यादा शो हो चुके हैं। देश में तीन डायरेक्टर्स ने इसके शो किए हैं, लेकिन उन्होंने मूल कहानी पर नाटक किया। मूल कहानी में यहूदियों के विस्थापन का दर्द दिखाया गया है। डायरेक्टर सुरेश शर्मा ने आसिफ हैदर अली से इसकी स्क्रिप्ट तैयार कराई। इस नाटक में कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की विभीषिका और दर्द को दिखाया गया है। इसके लिए डायरेक्टर ने इस सब्जेक्ट पर दो सालों तक रिसर्च की। कश्मीर के छह दौरे किए तो डॉक्यूमेंट्री, हिस्ट्री और दिल्ली में बसे कश्मीर पंडितों से मुलाकात कर घटनाओं की सच्चाई को जाना।

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सात माह में 18 शो, सहना पड़ा विरोध

नाटक का पहला शो फरवरी में दिल्ली में हुआ था। अब तक इसके 18 शो हो चुके हैं। नाटक का कई संगठन विरोध भी कर चुके हैं। इस नाटक के कुछ डायलॉग को लेकर काफी विवाद हुआ। डायरेक्टर का कहना है कि मैंने कश्मीर में हुई विभीषिका के सच को सामने रखा है। वहां नांदिग्राम में 37 लोगों को मार दिया गया। विस्थापन के दौरान पति खुद महिलाओं के मंगलसूत्र उतार और सिंदूर पोंछकर कश्मीर छोड़ रहे थे, ताकि उन्हें किसी भी घटना से बचाया जा सके। इसलिए मैं कभी भी अपने नाटक से किसी संवाद को नहीं हटाऊंगा।

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इन संवादों ने उठाए सवाल

1. हमारा खून तो एक ही है, मैंने तो सुना है कि यहां के मुसलमान भी कभी कश्मीरी पंडित थे।
2. एक पुलिस वाला कहता है कि तुम तो काफीर हो, लेकिन काफीर भी मुझे पसंद है।

3. पहली बार यहां की आवाम ने कश्मीर के लिए बंदूक उठाई है।
4. क्या जाएगा हमारे साथ, कुछ बर्तन, आंसू और ढेर सारी यादें…।

 

दहशत में छोडऩा पड़ा घर
नाटक की कहानी नांदिग्राम में रहने वाले कश्मीरी पंडित पृथ्वी की है। जो अपने पत्नी दिद्दा और पांच बेटियों के साथ रहता है। मध्यवर्गीय परिवार का जीवन खुशी-खुशी बीत रहा होता है। वह लड़कियों को अपनी पसंद के लड़कों से शादी करने की अनुमति दे देता है। इस बीच वहां अलगाववादी ताकतें पंडितों को कश्मीर छोडऩे पर विवश कर देती है। उन्हें औने-पौने दामों पर घर बेचकर जाना पड़ा। जिन्होंने ऐसी नहीं किया, या तो उन्हें मार दिया गया या उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लिया गया।

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