केस-2 22 वर्षीय युवती मुंबई से लॉ की पढ़ाई कर रही है। मुंबई में दोस्तों के साथ उसे मारिजुआना व अन्य ड्रग लेने की लत लग गई। मां से भी रिश्ता टूट गया। लॉ में एक सेमेस्ट में बैक आ गई। संजू फिल्म ने उसे इंस्पायर किया तो मां के पास आकर पूरी बात बताई और इलाज शुरू हुआ।
केस-3 एमबीए कर रही 23 वर्षीय युवती को कॉलेज लाइफ में दोस्तों के साथ कूल दिखने के फेर में मारिजुआना ड्रग की लत लग गई। कॉलेज की पढ़ाई छोड़ वह धीरे-धीरे पूरी तरह से नशे में डूब गई। फिल्म देखने के बाद उसे एहसास हुआ कि करियर छोड़ वह नशे में डूब गई है। उसे ये बात अपनी फैमिली को बताई तो उन्होंने भी सपोर्ट किया और इलाज शुरू कराया।
केस-4 एमबीबीएस का थर्ड ईयर स्टूडेंट पेरेन्ट्स के बीच होते झगड़ों की वजह से तनाव में रहने लगा। तनाव में वह मारिजुआना और एमकैट जैसे ड्रग्स लेने लगा। तीन साल में वह इतना एडिक्ट हो गया कि कॉलेज लाइफ पूरी तरह से डिस्टर्ब हो गई। फिल्म देख उसे एहसास हुआ कि जब संजय दत्त वापस अपनी लाइफ में आ सकता है तो उसे भी नशा छोड़ लाइफ पर फोकस करना चाहिए। अभी वह अपना इलाज करा रहा है।
फिल्म संजू में एक्टर संजय दत्त की लाइफ के बारे में दिखाया गया। फिल्म में दिखाया गया कि किस तरह संजय दत्त ड्रग एडिक्ट हो गए थे। एक स्टेज पर आकर नशा छोड़ उन्होंने अपनी लाइफ में कमबैक किया और फिर से अपनी स्टार वाली पहचान बनाई। ये फिल्म 100 करोड़ के क्लब में भी शामिल हो चुकी है। ये फिल्म ड्रग एडिक्ट यूथ के लिए भी इंस्पायरिंग साबित हो रही है। फिल्म को देख पिछले एक माह में दस से ज्यादा ड्रग एडिक्ट स्टूडेंट्स इलाज के लिए डॉक्टर्स के पास पहुंच रहे हैं।
मनोचिकित्सक सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि यूथ स्टूडेंट लाइफ में एक-दूसरे को देख और उनकी तरह ही कूल दिखने के फेर में एडिक्शन का शिकार हो जाते हैं। जब तक उन्हें ये बात समझ आती है, तब तक वे नशे की गिरफ्त में आ चुके होते हैं। यूथ सेलिब्रेटी को देख अक्सर उन्हीं की राह पर चलने की कोशिश करते हैं। शायद इसी कारण संजू उन्हें नशा छोडऩे के लिए इंस्पायर कर रही है। यूथ को नशे के प्रति अवेयर करने के लिए 26 जून को इंटरनेशनल डे अंगेस्ट ड्रग एब्यूस एण्ड इल्लिसिट ट्रैफिकिंग डे मनाया जाता है।
पेरेन्ट्स और कॉलेज इन बातों का रखें ध्यान
1. बच्चों के अन्य शहरों में पढऩे जाने पर दो से तीन माह में उनसे मिलने जाएं। 2. बच्चों के व्यवहार के साथ उनके बैंक एकाउंट पर भी नजर रखें।
3. उनके दोस्तों की लाइफ स्टाइल पर भी ध्यान दें। बच्चों के दोस्तों के साथ उनके पेरेन्ट्स से भी बात करते रहें।
1. बच्चों के अन्य शहरों में पढऩे जाने पर दो से तीन माह में उनसे मिलने जाएं। 2. बच्चों के व्यवहार के साथ उनके बैंक एकाउंट पर भी नजर रखें।
3. उनके दोस्तों की लाइफ स्टाइल पर भी ध्यान दें। बच्चों के दोस्तों के साथ उनके पेरेन्ट्स से भी बात करते रहें।
4. वर्किंग पेरन्ट्स बच्चों की बातों को नजरअंदाज न करें, ऐसे बच्चों के एडिक्शन का खतरा ज्यादा रहता है।
5. स्कूल-कॉलेज अपने स्तर पर बच्चों के व्यवहार पर नजर रखे। हॉस्टल के इंस्पेक्शन के साथ ही बच्चों की काउंसलिंग पर भी ध्यान दें।
5. स्कूल-कॉलेज अपने स्तर पर बच्चों के व्यवहार पर नजर रखे। हॉस्टल के इंस्पेक्शन के साथ ही बच्चों की काउंसलिंग पर भी ध्यान दें।