मानव संग्रहालय में चल रहे तीन दिवसीय जनजातीय साहित्य महोत्सव का समापन
शब्दों के चयन में भिन्नता आने के कारण साहित्य का अर्थ ही बदल जाता है
भोपाल। मानव संग्रहालय में जारी जनजातीय साहित्य महोत्सव का मंगलवार को समापन हुआ। इस दौरान संग्रहालय के निदेशक प्रो. चौधुरी ने कहा कि लेखक, साहित्यकार, कलाकारों ने पूरा जीवन जनजातीय लोगों के बीच रहकर कला और साहित्य का सृजन किया है। मुख्य अतिथि प्रो. केके मिश्रा ने कहा कि जनजातीय साहित्य के प्रलेखन, संवर्धन, संरक्षण करने के साथ ही ट्रांसलेशन पर ध्यान देना होगा। लेखक कई भाषाओं की जानकारी रखता है। इस कारण शब्दों के चयन में भिन्नता आने के कारण साहित्य की आत्मा की अर्थ बदल जाता है।
अध्यक्षता कर रहीं डॉ. अल्का पांडे ने कहा कि यह साहित्य चर्चा समुदाय की आत्मा है। जाति, समुदाय, संस्कृति, कला, भोजन यह एक ईको सिस्टम के तहत चलता है। वर्तमान में यह परिवर्तित हो रहा है। यह एक प्रकार का समुद्र मंथन जैसा है, जो भारत की संस्कृतिक विविधता में छिपे सभी साहित्य को संरक्षित करने का विनम्र प्रयास है।
पूर्व निदेशक डॉ. केके चक्रवर्ती ने कहा कि साहित्य महोत्सव में जो विचार व्यक्त किए गए हैं, उन्हें यथार्थ के धरातल पर लाकर प्रकाशित कर जन-जन तक पहुंचाना होगा। तभी इस साहित्य महोत्सव की सर्थाकता सिद्ध होगी। इस मौके पर प्रो. सरित कुमार चौधुरी, हरिओम सूरज सिंह और जीबोन कुमार लिखित पुस्तक ‘एंथ्रोपोलोजिकल रिसर्च इन नार्थ ईस्ट इंडिया’ का विमोचन किया गया।
सामाजिक परिवर्तन दु:ख का कारण वहीं नागालैंड की लेखिका तथा कवियित्री ईस्टरीन कीर की अध्यक्षता वाले पहले सत्र में ‘आदिवासी संदर्भ: भाषा, साहित्य और पहचान’ विषय पर विचार पेश किए गए। डॉ. इंदु स्वामी ने कहा कि वैश्वीकरण के कारण जहां विकास हो रहा है, वहीं, तेजी से हो रहे सामाजिक परिवर्तन दु:ख का कारण भी है।
मंग्का बैंड ने दी प्रस्तुति शाम के सत्र में मणिपुर के प्रख्यात मंग्का बैंड ने प्रस्तुति दी। कलाकारों ने मणिपुर के मैतेई जनजाती के पारंपरिक लोक गीत पेश किया। कलाकारों ने गानों से बताया कि मैतेई जनजाति द्वारा दिव्यता और समृद्धता प्राप्त करने प्रकृति के चारों दिशाओं में विराजित पैतृक देवता पेना ईसइ और सुग से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। बैंड ने काओ फबा- काओ फबा मोइरांग महाकाव्य के विशाल गीत संग्रह में से एक पेना बैलेडर… गीत गाया। इसमें मिथकों और किंवदंतियों की कहानियां का वर्णन है। वहीं, उत्तराखंड के भोटिया जनजातिय कलाकारों ने बगड्वाल नृत्य पेश किया।
जनजातीय कलाकार प्रेम सिंह हिन्दवाल ने बताया कि यह नृत्य राजा जीत सिंह पर आधारित है। जीत सिंह राजा होने के साथ बांसुरी वादक भी थे। उन्होंने वनपरी से वादा किया कि आषाढ़ में आकर मुझे हरण कर ले जाना। वनपरियों से छलकर से राजा, मोलू नामक व्यक्ति को बैठा देता है। चलाकी को देख वनपरी क्रोधित हो जीत सिंह के पूरे परिवार को हर लेती है।