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80 हजार करोड़ का ई-टेंडर घोटाला अब यहीं तक हुआ सीमित, जानिये कौन रह गए जांच के दायरे में?

locationभोपालPublished: Jun 17, 2019 11:42:01 am

– ईओडब्ल्यू ने 2018 में प्राथमिकी दर्ज की और अप्रैल 2019 में एफआइआर- न सरकारी अफसरों से पूछताछ, न जांच में शामिल

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भोपाल@राधेश्याम दांगी की रिपोर्ट…

मध्यप्रदेश में हुए ई-टेंडर घोटाले में ईओडब्ल्यू की जांच दो निजी कंपनियों तक सिमटकर रह गई। भले ही ईओडब्ल्यू ने सात कंपनियों और पांच सरकारी विभागों के अज्ञात अधिकारियों, कर्मचारियों व नेताओं पर एफआइआर दर्ज कर ली हो, लेकिन सरकारी अधिकारियों और कंपनियों के संचालकों से पूछताछ नहीं की गई।

दरअसल सामने आ रही जानकारी के अनुसार 80 हजार करोड़ के ई-टेंडर घोटाले में ईओडब्ल्यू की जांच दो निजी कंपनियों तक सिमटकर रह गई।

10 अप्रैल को ईओडब्ल्यू ने भले ही सात कंपनियों और पांच सरकारी विभागों के अज्ञात अधिकारियों, कर्मचारियों व नेताओं पर एफआइआर दर्ज कर ली हो, लेकिन सरकारी अधिकारियों और कंपनियों के संचालकों से पूछताछ नहीं की गई।

 

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अब तक 60 से अधिक लोगों के कथन लिए जा चुके हैं, लेकिन ईओडब्ल्यू इस नतीजे पर नहीं पहुंच पाया है कि आरोपी विभागों के अफसरों और निजी कंपनियों के संचालकों के बीच किसी तरह का आर्थिक लेनदेन हुआ है यही नहीं।

एसइडीसी के निलंबित ओएसडी एनके ब्रह्मे को छोड़कर किसी भी अधिकारी के बयान तक नहीं लिए, जबकि ईओडब्ल्यू जुलाई 2018 से ही जांच कर रहा है। एफआइआर में अज्ञात अधिकारियों, नौकरशाहों व नेताओं का उल्लेख हैं।


मेसर्स मैक्स मेंटाना, माधव इंफ्रा प्रोजेक्ट्स, जीवीपीआर सहित अन्य कंपनियों से चार सीनियर आइएएस अफसरों के ताल्लुकात का पता चला हैं, लेकिन ईओडब्ल्यू इस दिशा में कोई जांच ही नहीं कर रही है।

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ईओडब्ल्यू ने दो कंपनियों के व कुछ निजी लोगों को गिरफ्तार कर टेंडर को इन्हीं के ईद-गिर्द सीमित कर दिया।


आरोपी कंपनियों के बयान तक नहीं लिए
घोटाले की मुख्य आरोपी कंपनियां को नोटिस दिया, लेकिन कोई बयान देने नहीं पहुंचा। ईओडब्ल्यू ने सिर्फ नोटिस देकर फौरी कार्रवाई की फाइल चलाई जा रही है।

60 लोगों से पूछताछ, इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस, इ-मुद्रा कंपनी व सर्ट की जांच रिपोर्ट के बाद भी एफआइआर में दर्ज अज्ञात आरोपियों के नाम ईओडब्ल्यू को नहीं पता चला है।

इस दिशा में जांच के बजाय चालान पर जोर
ईओडब्ल्यू की प्राथमिक जांच में ही यह साबित हो गया था कि इ-टेंडर घोटाले में तत्कालीन वित्त सचिव, मुख्य सचिव और अन्य अफसर, जो हाई पॉवर कमेटी में थे उन्होंने इ-टेंडरों की फाइलों पर विपरीत टिप्पणियां की थी। यह फाइलों में ऑन रेकॉर्ड दर्ज है।

 

 

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इसके बावजूद टेंडर खोले गए और टेंपरिंग कर चंद कंपनियों को टेंडर दिया गया। टेंडर खोलने वाले अफसरों, टेंडर कमेटी में शामिल अफसरों, आइएएस अफसरों के परिजन, आरोपी कंपनियों में पदाधिकारी होने के बावजूद उनसे पूछताछ तक नहीं की जा रही है। अब गिरफ्तार 5 आरोपियों का ईओडब्ल्यू चालान पेश करने पर जोर दे रहा है।

अन्य कंपनियों से भी जल्द पूछताछ की जाएगी। सीधे तौर पर किसी अफसर का नाम सामने नहीं आया है। अन्य कंपनियों के साथ ही टेंडर ओपनिंग अथॉरिटी/अधिकारियों से पूछताछ की जाएगी
– केएन तिवारी, डीजी, ईओडब्ल्यू

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अब तक क्या-क्या, और आगे क्या
– जुलाई 2018 में ईओडब्ल्यू को जांच के लिए दिया। प्राथमिकी दर्ज की। बाद में जांच ठंडे बस्ते में चली गई।
– करीब 10 महीने तक ईओडब्ल्यू ने जांच की, लेकिन न तो एफआइआर की और न ही कोई कार्रवाई।
– अप्रैल, 2019 में पांच निजी कंपनियों व पांच सरकारी विभागों के खिलाफ एफआइआर की गई। इन्हें आरोपी बनाया गया।
– अज्ञात अधिकारियों, कर्मचारियों, नौकरशाहों और राजनेताओं के खिलाफ भी एफआइआर दर्ज की।
– तीन हजार करोड़ के नौ टेंडरों में टेंपरिंग पकड़ी गई। जांच में सामने आया कि 80 हजार करोड़ का घोटाला है।
– कम्प्यूटर इमर्जेंसी रेस्पॉन्स टीम (सीईआरटी), ई-मुद्रा, सहित अन्य एजेंसी की जांच रिपोर्ट मिल चुकी है।

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