किसी तरह का आर्थिक लेन-देन हुआ
अब तक करीब 60 से अधिक अलग-अलग लोगों के कथन लिए जा चुके हैं, लेकिन ईओडब्ल्यू अब तक इस नतीजे पर नहीं पहुंच पाया है कि आरोपी विभागों के अफसरों और निजी कंपनियों के संचालकों के बीच किसी तरह का आर्थिक लेन-देन हुआ है यही नहीं। ईओडब्ल्यू के अफसरों को भी आरोपियों के बीच आर्थिक लेनदेन साबित करने में पसीना आ रहा है। इसलिए एसईडीसी के निलंबित ओएसडी एनके ब्रह्मे को छोडकऱ किसी भी सरकारी अधिकारी से बयान तक नहीं लिए जा सके।
कोई जांच ही नहीं कर रही
जबकि ईओडब्ल्यू इस मामले की जुलाई 2018 से ही जांच कर रहा है। दिलचस्प तो यह है कि एफआईआर में अज्ञात अधिकारियों, नौकरशाहों व राजनेताओं का उल्लेख हैं। मेसर्स मैक्स मेंटाना, माधव इंफ्रा प्रोजेक्ट्स, जीवीपीआर सहित अन्य कंपनियों से चार सीनियर आईएएस अफसरों के ताल्लुकात का पता चला हैं, लेकिन ईओडब्ल्यू इस दिशा में कोई जांच ही नहीं कर रही है। ईओडब्ल्यू ने दो कंपनियों के व कुछ निजी लोगों को गिरफ्तार कर टेंडर को इन्हीं के ईर्द-गिर्द सीमित कर दिया।
आरोपी कंपनियों के बयान तक नहीं ले पा रहा
घोटाले की मुख्य आरोपी कंपनियां को नोटिस दिया गया, लेकिन कोई बयान देने नहीं पहुंचे। इसके बाद ईओडब्ल्यू ने सिर्फ नोटिस देकर फौरी कार्रवाई की फाइल चलाई जा रही है। 60 लोगों से पूछताछ, कई इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस, ई-मुद्रा कंपनी व सर्ट की जांच रिपोर्ट के बाद भी एफआईआर में दर्ज अज्ञात आरोपियों के नाम ईओडब्ल्यू को नहीं पता चला है।
इस दिशा में जांच के बजाय चालान पर जोर
ईओडब्ल्यू की प्राथमिक जांच में ही यह साबित हो गया था कि ई-टेंडर घोटाले में तत्कालीन वित्त सचिव, मुख्य सचिव और अन्य अफसर, जो हाई पॉवर कमेटी में थे उन्होंने ई-टेंडरों की फाइलों पर विपरीत टिप्पिणियां की थी। यह फाइलों में ऑन रिकॉर्ड दर्ज है।
चालान पेश करने पर जोर दे रहे
इसके बावजूद टेंडर खोले गए और टेंपरिंग कर चंद कंपनियों को टेंडर दिया गया। ऐसे में ईओडब्ल्यू टेंडर खोलने वाले अफसरों, टेंडर कमेटी में शामिल अफसरों और आईएएस अफसरों के परिजन, आरोपी कंपनियों में पदाधिकारी होने के बावजूद उनसे पूछताछ तक नहीं की जा रही है। अब गिरफ्तार किए गए 5 आरोपियों का ईओडब्ल्यू चालान पेश करने पर जोर दे रहा है।
अब तक क्या-क्या, और आगे क्या
जुलाई 2018 में ईओडब्ल्यू को जांच के लिए दिया। प्राथमिकी दर्ज की। बाद में जांच ठंडे बस्ते में चली गई।
करीब 10 महीने तक ईओडब्ल्यू ने जांच की, लेकिन न तो एफआईआर की और न ही कोई कार्रवाई।
अप्रैल 2019 में 7 निजी कंपनियों व 5 सरकारी विभागों के खिलाफ एफआईआर की गई। इन्हें आरोपी बनाया गया।
अज्ञात अधिकारियों, कर्मचारियों, नौकरशाहों और राजनेताओं के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की।
3 हजार करोड़ के 9 टेंडरों में टेंपरिंग पकड़ी गई। जांच में सामने आया कि 80 हजार करोड़ का घोटाला है।
कंप्यूटर इमर्जेंसी रेस्पॉन्स टीम (सीईआरटी), ई-मुद्रा, सहित अन्य एजेंसी की जांच रिपोर्ट मिल चुकी है।
अन्य कंपनियों से भी जल्द पूछताछ की जाएगी। सीधे तौर पर किसी अफसर का नाम सामने नहीं आया है। अन्य कंपनियों के साथ ही टेंडर ओपनिंग अथॉरिटी/अधिकारियों से पूछताछ की जाएगी।
केएन तिवारी, डीजी, ईओडब्ल्यू