शहरों में ई-वेस्ट कबाड़ी को दिया जाता है, जिसे जलाकर-तोड़कर तांबे के तार, नट-बोल्ट और कांच निकालने के लिए पर्यावरण और मिट्टी को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। केंद्र सरकार की गाइडलाइन के बाद नगर निगमों ने ई-वेस्ट कलेक्शन के प्रयास शुरू किए हैं, हालांकि ये औपचारिकता भर है।
कॉलेज के ई-वेस्ट कलेक्शन सेंटर तक आमजन कचरा देने आएं, इसके लिए प्रोत्साहन की भी योजना है। जो जितना ज्यादा कचरा लाएगा, पड़ोसियों व कॉलोनी के लोगों को प्रेरित करेगा, उसे एनवॉयरमेंट फ्रेंड का दर्जा दिया जाएगा। इंजीनियरिंग संस्थान के छात्र-छात्राओं के बीच निबंध और कविता लेखन की प्रतियोगिताएं भी कराई जाएंगी, जिनके पुरस्कार आम लोगों के हाथों दिलवाए जाएंगे।
कई हेक्टेयर में फैले कॉलेज परिसर
इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक कॉलेज के परिसर कई हेक्टेयर में हैं। इनमें से कुछ के पास बड़े पेड़-पौधे वाले ग्रीन बेल्ट हैं तो कुछ ने गार्डन विकसित किए हैं। इनमें से रोजाना घास, सूखी पत्तियों का कचरा निकलता है, जिसे जलाने या फेंकने के बजाय केंचुआ डालकर कम्पोस्ट खाद बनाई जाएगी। इसी तरह से हॉस्टल, कैंटीन, मैस और क्लासरूम से निकलने वाले कचरे का वर्गीकरण कर उसे भी रिसायकल करने के लिए वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम लागू किया जा रहा है।
नवाचार किए जाएंगे
पुराने ढर्रे से इंजीनियरिंग संस्थान नहीं चलाए जा सकते। नवाचार किए जाएंगे, ताकि संस्थान और आम लोगों का जुड़ाव हो। दूसरा, पर्यावरण सुधार के लिए भी यह कवायद कारगर साबित होगी।
- डॉ. मोहन सेन, सहायक संचालक, तकनीकी शिक्षा-कौशल विकास विभाग