भोपाल

Eid Milad Un Nabi 2017: जानिए क्या है महत्व, कुछ लोग क्यों नहीं मनाते पैगंबर के जन्मदिवस का जश्न

पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म इस्लाम कैलेंडर के अनुसार रबि-उल-अव्वल माह के 12वें दिन 570 ई. को मक्का में हुई था।

भोपालDec 02, 2017 / 03:40 pm

दीपेश तिवारी

भोपाल। इस्लाम पर्वों में हम मुख्यरूप से मुहर्रम, ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा से ही अधिकतर वाकिफ होते हैं। वहीं ये दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद और उनकी शिक्षा को समर्पित किया जाता है। ईद-ए-मिलाद को कई स्थानों पैगंबर के जन्मदिन के रुप में और कई स्थानों पर इसे शोक दिवस के रुप में मनाया जाता है, माना जाता है कि इस दिन ही पैगंबर की मृत्यु हुई थी।

मान्यताओं के अनुसार पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म इस्लाम कैलेंडर के अनुसार रबि-उल-अव्वल माह के 12वें दिन 570 ई. को मक्का में हुई था। वहीं कुरान के अनुसार ईद-ए-मिलाद को मौलिद मावलिद के नाम से भी जाना जाता है यानि पैगंबर के जन्म का दिन। इस दिन रात भर तक सभाएं की जाती हैं और उनकी शिक्षा को समझा जाता है। माना जाता है कि पैगंबर की शिक्षा को सुना जाए तो वो जन्नत के द्वार खोल देती हैं।

इस दिन के लिए शिया और सुन्नी दोनों के अलग मत हैं। शिया समुदाय पैगंबर हजरत मुहम्मद के जन्म की खुशी में इसे मनाता है और वहीं सुन्नी समुदाय कुछ फिरकों का मानना है कि ये दिन उनकी मौत का दिन है, इस कारण वो पूरे माह शोक मनाते हैं। वहीं सुन्नियों में खासतौर पर पैगंबर के जन्मदिन का जश्न बरेलवी समुदाय द्वारा मनाया जाता है।
ईद-ए-मिलाद के दिन सभी लोग अपने घरों को सजाते हैं और मस्जिदों में नमाज अता की जाती है और लाईटों आदि से सजाया जाता है। जरुरतमंदों को इस दिन भोजन करवाया जाता है। मस्जिदों और सामूहिक सम्मेलनों में मुहम्मद से जुड़ी शायरी और कविताएं पढ़ी जाती हैं। भारत के मुस्लिमों के लिए भी ये महत्वपूर्ण दिन होता है। सभी लोग नमाज पढ़ने जाते हैं और उसके बाद अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं।
मुहम्मद साहब के जीवन की ये घटनाएं है बेहद खास:-
वर्ष 570. में हज़रत मुहम्मद साहब की पैदाइश अरब के एक रेगिस्तान शहर में हुई। उस समय वहां तीन प्रमुख शहर थे, य्थ्रीब, जिसे आज मदीना के नाम से जाना जाता है, वे वहां का एक प्रमुख नखलिस्तान था। दूसरा था ताइफ़ जो अपने अंगूरों के लिए प्रसिद्ध पर्वतों में एक शांत शरण था और तीसरा शहर मक्का जो इन दोनों शहरों के विपरीत एक बंजर घाटी में था, हज़रत मुहम्मद साहब का जन्म स्थान भी मक्का था।
नाम रखा मुहम्मद :
हज़रत मुहम्मद साहब का नाम उनके दादा अब्दुल मुत्तलिब ने रखा था। जिसका अर्थ है “प्रशंसित”। मुहम्मद नाम अरब में नया था। मक्का के लोगों ने जब अब्दुल मुत्तलिब से नाम रखने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा- ताकि सारे संसार में मेरे बेटे की प्रशंसा की जाए।
लोग उनसे और क़रीब हो जाते :
जैसे-जैसे हज़रत मुहम्मद साहब बड़े हुए उनकी ईमानदारी, नैतिकता और सौम्य प्रकृति ने उनको और प्रतिष्ठित कर दिया। वे हमेशा झगड़ों से अलग रहते और कभी भी अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं करते थे। अपने इन सिद्धांतों पर वे इतना दृढ़ थे कि मक्का के लोग उन्हें ‘अल-अमीन’ नाम से पुकारने लगे थे, जिसका अर्थ होता है ‘एक भरोसेमंद व्यक्ति’। उनके प्रसिद्ध चचेरे भाई अली ने एक बार कहा था “जो लोग उनके पास आते, उनसे और क़रीब हो जाते ।”
हज़रत मुहम्मद का जन्म मक्का के एक कुलीन वंश में हुआ था। लेकिन बड़े होने पर मक्का के बड़े परिवारों के साथ सामाजिककरण करने की बजाय, वे रेगिस्तान के बंजर पहाड़ों में घूमने लगे। वहां घंटों अकेले समय बिताते और सृजन के रहस्यों पर विचार करते। वे केवल भोजन की आपूर्ति के लिए घर लौटा करते थे और फिर प्रकृति के एकांत में उन सवालों के जवाब ढूंढने लौट जाते जो उनके मन को बचपन से व्याकुल किए हुए थे।
एक लेख: मनुष्य और उनके देवता
इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका में एक लेख है जिसका शीर्षक है, “मनुष्य और उनके देवता”, इस आलेख के लेखक एक ईसाई ओरिएंटलिस्ट हैं, जो लिखते हैं कि कैसे हज़रत मुहम्मद साहब ने मात्र 23 वर्षों में ऐसा प्रभाव डाला जिसने इतिहास का रूख हमेशा के लिए बदल दिया।
जब हम हज़रत मुहम्मद साहब के जीवन को सामने रखते हैं तो उसमें आज के मुस्लिम कट्टरवाद का कोई स्थान दिखाई नहीं दिखाई देता। आज मुस्लिम समाज के लिए ज़रूरी है के वे स्वयं को भटकाने वाले रहनुमाओं से हटाकर हज़रत मुहम्मद साहब के दिखाए सिद्धांतों पर चलें। इसके लिए हदीस की एक घटना का भी उल्लेख प्रस्तुत है जिससे मालूम होगा कि मुहम्मद साहब शांति और अमन की चाहत रखने वाले थे।
मुहम्मद साहब ने किया माफ :
एक बार एक बेदोइन (मक़ामी क़बायली) मस्जिद-ए-नबावि में आया, उसने मस्जिद के अहाते में पेशाब कर दिया। वहां उस समय हज़रत मुहम्मद साहब और उनके साथी बैठे हुए थे। उनके साथियों ने जैसे ही यह देखा वे उस व्यक्ति पर बिगड़ गए। अपने साथियों को हज़रत मुहम्मद साहब ने रोका और कहा कि उस व्यक्ति पर ना बिगड़ें उसे छोड़ दें।”
हज़रत मुहम्मद साहब ने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाकर बिना डांटे विनम्रता से कहा कि किसी भी प्रकार की गंदगी मस्जिदों के लिए उपयुक्त नहीं है। मस्जिद सिर्फ़ नमाज़, प्रार्थना और कुरान पढ़ने के लिए उचित हैं। इसके बाद हज़रत मुहम्मद साहब ने अपने एक साथी से पानी की एक बाल्टी लाने को कहा और उस पानी से प्रभावित क्षेत्र को धोने का आदेश दिया।

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