किताब के मुताबिक प्रकाशचंद्र सेठी भी उस शादी में शामिल होने के लिए सरकारी विमान से श्रीनगर गए थे। सेठीजी रात को ही शादी में हिस्सा लेने के बाद वापस भोपाल लौटना चाहते थे, लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी बन गई कि सेठीजी को रात श्रीनगर में ही रुकना पड़ गया। लेकिन, शाम को सठीजी को याद आया कि रात में पहनने के लिए उनका पाजामा तो उनके पास है ही नहीं। इसके बगैर उन्हें नींद नहीं आती थी।
उन्होंने अपने स्टाफ को यह बात बताई। और सरकारी विमान को पायजामा लेने के लिए करीब 1600 किलोमीटर दूर भोपाल तक भेज दिया। उस समय के लोग कहते हैं कि विमान से उनका पायजामा रात साढ़े 9 बजे श्रीनगर पहुंच गया था, जिसके बाद सेठीजी ने वो पायजामा पहना और सोने चले गए। आज सेठीजी इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका यह किस्सा राजनीतिक गलियारों में ठहाकों के साथ सुनाया जाता है।

किस्सा-2
तब नहीं बजी तालियां
उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी और उन्होंने ही सेठीजी को मध्यप्रदेश की कुर्सी पर बैठाया था। कई नेता इंतजार कर रहे थे कि शायद उनका नाम सीएम पद के लिए घोषित कर दिया जाए। लेकिन, किसी ने नहीं सोचा था कि अचानक इंदिराजी ने जिसका नाम लिया, उसके बाद सभी हैरान रह गए। उसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। वो नाम था प्रकाशचंद्र सेठी (chief minister prakash chand sethi ) का। इंदिराजी के मुंह से यह नाम निकलते ही एक भी विधायक ने खुशी जाहिर नहीं की थी, यहां तक कि एक ने भी तालियां नहीं बजाई थीं। लेकिन, मुख्यमंत्री तो प्रकाशचंद्र सेठी ही बने थे।

किस्सा-3
उज्जैन में खुला किस्मत का ताला
उज्जैन में नगर पालिका अध्यक्ष से अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले प्रकाश चंद्र सेठी की किस्मत के दरवाजे धीरे-धीरे खुलने लगे थे। राज्यसभा सांसद त्रयंबक दामोदर पुस्तके का निधन हो गया था। तब उपचुनाव के लिए उम्मीदवार की तलाश शुरू हुई। विंध्य क्षेत्र के कद्दावर नेता अवधेश प्रताप सिंह का दौर था। किसी को राज्यसभा भेजना था। उस दौर में कांग्रेस एक नेता को दो बार राज्यसभा नहीं भेजती थी। इसलिए अवधेश प्रताप सिंह का नाम काट दिया गया और सेठीजी के नाम पर मोहर लग गई। सेठी जी दिल्ली क्या गए, नेहरू सरकार में उपमंत्री भी बने। पीसी सेठी बड़े नेताओं के करीब होते चले गए। चाहे शास्त्री हो या इंदिराजी, सेठीजी हर पीएम के हमेशा खास रहे।
किस्सा-4
डकैतों पर करना चाहते थे बमों की बारिश
बुंदेलखंड वाले इलाकों में उस समय डाकुओं का आतंक था। तब पीसी सेठी मुख्यमंत्री थे। सेठीजी डकैत समस्या से इतने तंग आ गए थे कि वे अब इस समस्या का हल गांधीवादी तरीके से नहीं निकालना चाहते थे। गृह विभाग के बड़े अधिकारियों से जब उनकी मीटिंग हुई तो उनकी एक लाइन के प्रस्ताव से वहां सब हैरान रह गए। सेठी ने कहा था कि डकैतों के छिपने के ठिकानों पर इंडियन एयरफोर्स बम गिरा दे, तो टंटा ही खत्म हो जाएगा। नगरीय इलाकों में वायुसेना की तरफ से बम बारिश का ऐसा प्रस्ताव के बाद वहां काफी देर तक सन्नाटा पसरा रहा। लेकिन, पीसी सेठी अपनी बात पर अड़े थे। दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक से साउथ ब्लॉक पहुंचे और रक्षामंत्री जगजीवन राम के दफ्तर पहुंच गए। बाबूजी को कुछ कहा और मुस्कुराते हुए परमिशन ही ले आए। दूसरे ही दिन एयरफोर्स के हेड आफिस में ऑपरेशन की तैयारी शुरू हो गई। सेठीजी भी भोपाल लौट आए, लेकिन कुछ दिन पहले अखबारों में इसकी खबर लीक हो गई और डकैतों तक यह बात पहुंच गई। उनमें से आधे डकैत को घबराकर सरेंडर के लिए बातचीत करने लगे। बाकी आधे डकैत तो भागने की तैयारी में जुट गए। सरकारी रिकार्ड के मुताबिक उस समय 450 डकैत मुख्यधारा में लौट आए। उस दौर के लोग बताते हैं कि भारतीय वायुसेना की बम बारिश की खबर पीसी सेठी के दफ्तर से ही लीक हुई थी, हालांकि यह सब बातें हवा-हवाई ही कही जाती है।
सुमित्रा महाजन से हार गए थे चुनाव
पीसी सेठी को 1989 में इंदौर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा गया था। पीसी सेठी इस चुनाव में बुरी तरह हार गए थे। इसके बाद वे धीरे-धीरे राजनीतिक से अलग होने लगे। 21 फरवरी 1996 को प्रकाशचंद्र सेठी का निधन हो गया था।
प्रकाशचंद्र सेठी एक परिचय: एक नजर
1939 में उज्जैन के माधव कॉलेज के स्नेह सम्मेलन के एवं माधव क्लब के सचिव रहे।
1942, 1949 से 1952 तक मध्यभारत इंटक के उपाध्यक्ष रहे।
1951 से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सदस्य, सन् 1948-49 में इंटक से संबंधित टेक्सटाईल वर्कर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे।
1951, 1954 तथा 1957 में उज्जैन जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।
1953 से 1957 तक मध्य भारत, प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य रहे।
1954-1955 में मध्य भारत कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे।
1956 से 1959 तक मध्य भारत ग्राम तथा खादी मंडल तथा प्रादेशिक परिवहन समिति के सदस्य रहे।
1957 से 1959 तक उज्जैन जिला सहकारी बैंक के संचालक।
1961 तथा अप्रैल 1964 में राज्यसभा सदस्य बने।
फरवरी 1967 में लोक सभा के सदस्य बने।
9 जून, 1962 से मार्च, 1967 तक केन्द्रीय उप मंत्री।
13 मार्च, 1967 से राज्यमंत्री, 26 अप्रैल, 1968 से 23 फरवरी, 1969 तक इस्पात, खान और धातु मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभारी मंत्री रहे।
14 फरवरी, 1969 को वित्त मंत्रालय में राजस्व तथा व्यय मंत्री रहे।