माधव की ‘जन्मकथा’ उनकी बेटी रूजुला के जन्म से जुड़ी है। रूजुला के जन्म प्रसंग और उसके गर्भ में रहने के दौरान के स्वयं के अनुभव को किताब के पन्नों में उतारा है। कैसे एक बेटा और पति जब खुद पिता बनता है, इससे पहले वो किस दौर से गुजरता है, उसके दिन-रात के अनुभव उसके सोच, खुशी या भविष्य की चिंता को लेकर सब कुछ तैयारी में जुट जाता है। बाहरी तौर पर दुनिया को यह बदलाव कभी समझ नहीं आता, लेकिन तमाम व्यस्तताओं, कोलाहल और ऊहापोह के बीच भी व्यक्ति इस बदलाव को बहुत शांति से महसूस कर सकता है। माधव ने ऐसे बहुत सारे प्रसंगों, घटनाओं को एक साथ गूंथकर इस पुस्तक को रचा है।
नो पैन नो गेन
माधव बताते हैं कि एक पिता की जन्मकथा का सृजन एक कठिन कार्य था, जिसके लिए एक लंबे अनुशासन की जरूरत होती है, मैं नहीं जानता कि इतना सामर्थ्य, इतना वेग मुझमें कैसे आया जिससे मैं इसे लिख सका। हां यह जरूर है कि इसे लिखने में मुझे चित्रकार होने का भरपूर फायदा मिला। एक चित्रकार के नाते कल्पना करना, विषय व परिस्थितियों को विस्तार देना आसान रहा। मुझे अंग्रेजी की कहावत नो पैन नो गेन अच्छी तरह से याद थी।
गीत की तरह है ये जिंदगी
खास बात यह है कि जीवन के नए फूल खिलने के सुखद अहसास को माधव हिन्दी फिल्म के उस गीत के जरिए लेते हैं जो 70 के दशक में आई थी, जिसका गीत था- जीवन की बगिया महकेगी, लहकेगी, चहकेगी। खुशियों की कलियां झूमेंगी, झूलेंगी, फूलेंगी…। यह गीत घर में आने वाले बच्चे के सुखद अहसास को व्यक्त करता है। बहरहाल एक पिता की जन्मकथा बेहद भावुक करने वाला पल होता है। इस जन्म कथा में उस पिता के अपने-माता-पिता से भी यादें छलकती हैं, तो अभिभावकों के प्रति आदरांजलि मुखर होती है।
यही आदर मिले अपने बच्चों से
हर कोई चाहता है कि इतना ही आदर और प्रेम मुझे अपने बच्चों से भी मिले। इन्हीं मनोभावों में डूबते-उतरते जब जन्मकथा आगे बढ़ती है तो माधव लिखते हैं कि यह अनुभूतियां, बेचैनियां सभी के साथ घटती है, इसलिए हर पाठक इस जन्मकथा के साथ बहने लगता है।
तब अकेला होता है पिता
जब पत्नी लेबर रूम में संतान को जन्म देने की प्रक्रिया को पूरी करती है और पति बाहर प्रतीक्षा में खड़ा रहता है, उन पलों को माधव जोशी ने बहुत ही गहराई और भावुकता से लिखा है। वाकई वह क्षण ऐसे होते हैं जब दुनिया में सबसे अकेला कोई शख्स होता है, तो वह सिर्फ पति ही होता है। और हां जब नवजात दुनिया में आता है तब डॉक्टरों और नर्सों के पहरे में होती है पत्नी। इसके अलावा जब नर्सों और डाक्टरों की चहलकदमी कम होती है तो रिश्तेदारों से घिर जाती है। वो चाहता है कि पत्नी से कुछ बात करें, हालचाल पूछें, पीड़ा बांटे, लेकिन परिवार की निगाहें, कुछ झिझक और कुछ वजहें ऐसी होती है कि पति-पत्नी चाहकर भी बात नहीं कर पाते। यह सारा वृतांत जन्मकथा को भावनात्मक रूप से अहसासों की ऊंचाई पर ले जाता है।
बच्चे के प्रति धन्यवाद का भाव
वो अपने बच्चे के प्रति भी भावुकता से धन्यवाद देना चाहता है, क्योंकि बच्चे के जन्म के साथ एक पिता का भी जन्म होता है। जन्मकथा के जरिए एक पिता अपनी बेटी के प्रति शुक्रिया व्यक्त करते हैं। लेखक माधव जोशी जन्मकथा के अंत में लिखते हैं कि रुजुला का भी थैंक्स जिसने हमें पैदा किया।