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चुनाव आते ही सक्रिय हो जाते हैं गैर मान्यता प्राप्त दल

locationभोपालPublished: Oct 19, 2018 09:26:43 am

Submitted by:

Radhyshyam dangi

अधिकांश पार्टियों के दफ्तर किराए के भवनों में खोले जाते हैं और इनके पास न तो कार्यकर्ता होते हैं और न ही साधन-संसाधन।

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प्रदेश के इन इस विभागों में चुनावी दंगल शुरू

भोपाल. विधानसभा चुनाव आते ही प्रदेश में छोटी-छोटी पार्टियां सक्रिय हो जाती है। चुनावी मौसम में नई-नई जगह इनके दफ्तर आकार लेते हैं। अधिकांश पार्टियों के दफ्तर किराए के भवनों में खोले जाते हैं और इनके पास न तो कार्यकर्ता होते हैं और न ही साधन-संसाधन।
चुनावी माहौल के दौरान इनके दफ्तरों पर कुछ बैनर-पोस्टर देखे जा सकते हैं। लेकिन जैसे ही चुनाव के नतीजे आते हैं, इनके दफ्तर भी बंद हो जाते हैं। कई पार्टियों के दफ्तर तो बीच चुनाव में ही बंद कर दिए जाते हैं।
चुनाव आयोग के पास कई पार्टिंयों के दफ्तर का रिकॉर्ड तो होता है, लेकिन पत्राचार नहीं हो पाता है, क्योंकि वहां ताले लगे होते हैं। आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार मप्र में वर्तमान में 58 ऐसे दल है, जिन्हें व्यय लेखा जमा करने के लिए कहा गया, लेकिन इनमें से 38 दलों ने अपना रिकॉर्ड ही पेश नहीं किया।
आयोग में जो पता वहां नहीं है दल का दफ्तर

आयोग के गैर मान्यता प्राप्त दलों का रिकॉर्ड हैं, उनमें से कुछ ने तो चुनाव के पहले ही दफ्तर बंद कर दिए हैं। कुछ ने नए-नए दफ्तर शुरु किए हैं तो कुछ ने पिछले चुनाव में जिस जगह दफ्तर खोले थे वह इस बार बदल लिया। इसके कारण आयोग ने तीन-चार बार सभी दलों को लेखा जमा करने के लिए पत्र भी भेजे, लेकिन जवाब नहीं आया।
वोट काटू पार्टियां बनने के लिए आते हैं

जानकारों का मानना है कि ऐसे दल जो सिर्फ चुनाव के समय ही सक्रिय होते हैं वे बड़े और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक में सेंध लगाने आते हैं। चार महीने पहले तक 62 गैर मान्यता प्राप्त दल मप्र में थे, लेकिन अभी 58 ही बचे। प्रदेश के बाहर पंजीकृत 27 दल और है, जिन्होंने पिछले चुनाव विधानसभा चुनाव में आमद दी थी। करीब गैर मान्यता प्राप्त दलों की संख्या करीब 75 है, जो इस साल भी चुनाव में अपने-अपने मुद्दे लेकर मैदान में नजर आ रही है, लेकिन देखना यह है कि कब तक वे खड़े रह पाते हैं।
अधिकांश की हुई थी जमानत जब्त

वर्ष 2013 के चुनाव में सक्रिय रहे ऐसे सभी दलों के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी। इन्हें कुल पड़े वोट का 5.27 प्रतिशत ही वोट मिला था। इन दलों के किसी भी प्रत्याशी को जीत नहीं मिली। ये निकटतम का आंकड़ा भी नहीं छू पाए। हालांकि कुछ सीटों पर बड़ी पार्टियों के लिए ये पार्टियां सिरदर्द जरुर बन गई थी।
सबसे अधिक जबलपुर में

इस तरह की पार्टियां बड़े शहरों में सिर्फ जबलपुर जिले में ही सबसे अधिक है। वहीं, मंडला, डिंडौरी सहित रीवा में भी इस तरह के दलों के दफ्तर है। भोपाल में भी कुछ नए दल इस बार मैदान में हैं। कुछ कार्यकर्ताओं में आपसी फूट के कारण अलग-अलग दल चंद दिनों में ही बन गए।
हमारी पार्टी का सिद्दांत मानवतावादी है। राष्ट्रीय एकता और राष्ट्र सर्वोपरी है। हम चुनाव लड़ेंगे और चुनाव में बाजी मारेंगे। हमारी पार्टी का संविधान ऐसे लोगों को आगे बड़ाने पर जोर देता हैं जो बेदाग हो और जमीन से जुड़े हो।
शरद कुमरे, राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय आमजन पार्टी

पिछले चुनावों में हमने भूमिका निभाई थी। उसी समय पार्टी अस्तित्व में आई थी मैं तो अध्यक्ष भी नहीं हूं अभी अध्यक्ष वियजनारायण सिंह ही है। शुरुआत में उन्होंने ही इसका गठन किया था। (वियजनारायण सिंह से बात की तो उन्होंने ठाकुर को अध्यक्ष बताया)
आरएस ठाकुर, आदिजन मुक्ति सेवा

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