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IAS अफसर विवेक अग्रवाल के कार्यकाल में आरडीसी में हुए टेंडरों की EOW ने शुरु की जांच

locationभोपालPublished: Nov 22, 2019 11:28:39 am

Submitted by:

Radhyshyam dangi

जहां-जहां अग्रवाल पदस्थ रहे, अलग-अलग माध्यमों से वहां की पहुंची शिकायतें

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भोपाल/ केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ प्रमुख सचिव स्तर के आईएएस अफसर विवेक अग्रवाल की एक शिकायत और आर्थिक अपराध अन्वेषण प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) के पास पहुंची है। यह शिकायत जब अग्रवाल मप्र सडक़ विकास निगम (आरडीसी) में बतौर एमडी पदस्थ थे, उस अवधि की है। इसमें कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। आरोप है कि अग्रवाल के कार्यकाल में आरडीसी में हजारों करोड़ रुपए के कई टेंडर/प्रोजेक्ट की स्वीकृतियां दी गई है।

जिनमें प्रोजेक्ट की डीपीआर तक बदलकर उनकी कम वेल्यू को हाई वेल्यू वाले टेंडर में परिवर्तित कर चुनिंदा कंपनियों को यह टेंडर अवॉर्ड किया गया है। यह भी आरोप लगाया गया है कि कई ऐसे टेंडर है, जिनकी डीपीआर 50 फीसदी तक बढ़ाकर बनाई गई है। इसके बाद इन टेंडरों को लोक निर्माण विभाग के तय एसओआर से 10 से 30 फीसदी कम दर पर चुनिंदा कंपनियों को वर्क ऑर्डर दे दिया।

फिर शासन को यह प्रेजेंटेशन दिया गया कि यह काम 10-30 फीसदी कम पर गया है इससे शासन को करोड़ों रुपए का फायदा हुआ है। जबकि पहले ही डीपीआर बढ़ा दी गई थी। अब ईओडब्ल्यू ने इन शिकायतों में लगाए गए सभी आरोपों की पुष्ठि के लिए जांच शुरु की है। सडक़ विकास निगम से भी दस्तावेज मांगे हैं। शिकायत में लगाए गए तथ्यों का परीक्षण और पुष्ठि करने के बाद आगे की कार्रवाई करेगी।

ई-टेंडर घोटाले से है लिंक

ईओडब्ल्यू ने इन आरोपों को ई-टेंडर घोटाले से जोड़ा है। बताया जा रहा है कि निगम में सभी टेंडर करोड़ों रुपए के हैं और इसका संबंध ई-टेंडर घोटाले में फंसी कंपनियों से है। उन्होंने यहां से करोड़ों रुपए के ठेके मिले हैं। इनमें मेक्स मेंटाना, माधव इंफ्रा और सोरठिया वेल्जी एंड रत्ना कंपनी सहित अन्य ऐसी कंपनियां शामिल है जो ई-टेंडर घोटाले की आरोपी है। जांच एजेंसी को इसलिए भी आशंका है कि डीपीआर बढ़ाने और फिर उसे ऑस्मो आईटी सॉल्यूशन कंपनी के तीनों आरोपी पदाधिकारियों के जरिए टेंपरिंग करवाई गई है। यह ई-टेंडर घोटाले में साबित हो चुका है और इसी तरह के आरोप इस शिकायत में भी है।

बीओटी मार्ग निर्माण पर नजर

अग्रवाल अप्रेल, 2010 से मार्च 2015 तक आरडीसी में पदस्थ रहे हैं। आरडीसी में हर साल करीब 100 टेंडर फाइनल किए जाते हैं। सभी टेंडर करोड़ों में होते हैं। उनके कार्यकाल में बीओटी के तहत कई टोल मार्ग बनाने की स्वीकृतियां हुई है।

अब ईओडब्ल्यू 4 साल 11 महीने के उन टेंडरों की स्क्रूटनी कर रहा है जिनकी डीपीआर बदली गई और ऐसी कंपनियों को ठेका हुआ जो ई-टेंडर घोटाले में भी फंसी है।

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