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आज भी संगीत का विद्यार्थी हूं जैसा सुनता हूं, वैसा ही गाता हूं

locationभोपालPublished: Feb 01, 2019 12:45:08 pm

Submitted by:

hitesh sharma

पांच दिवसीय लोकरंग का समापन, सूफी गायक हंसराज हंस ने दी प्रस्तुति

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आज भी संगीत का विद्यार्थी हूं जैसा सुनता हूं, वैसा ही गाता हूं

भोपाल। भोपाल के हर शख्स में संस्कृति और कला बसती है। आप लोगों ने तो बड़े-बड़े उस्तादों को सुना होगा, लेकिन मैं संगीत का विद्यार्थी हूं, जैसा सुनता हूं, वैसा ही गाने की कोशिश करता हूं। इन अल्फाजों के साथ सूफी गायक हंसराज हंस ने लोकरंग के अंतिम दिन की अंतिम सभा शुरू की। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत राग मालकौंस में प्यार नहीं है सुर से किसको… बंदिश गाकर की।
इसके बाद अपने सूफियाना अंदाज में प्यार है सुर से जिसको, सुर इंसान बना देता है, सुर रहमान मिला देता है… गीत पेश किया। कार्यक्रम को विस्तार देते हुए उसने कहा तू कौन है, मैंने कहा सजदा तेरा, मैंने तो समझा था कि मेरा यार और तोड़े दिल मेरा शौक से तोड़, चीज मेरे नहीं तुम्हारी है… गीत गाए। इसके बाद फिल्म कच्चे धागे का गीत इश्क दी गली विच कोई कोई लंगदा प्रस्तुत कर सभी दर्शकों को मोह लिया। हंसराज हंस ने अपनी प्रस्तुति के अंत में नित खैर मंगदा सोणियां मै तेरी और छाप तिलक सब छीनी रे के साथ ही साथ अन्य गीत प्रस्तुत कर की। गायन प्रस्तुति के दौरान हंसराज हंस का साथ संगतकारों में वायलिन पर युनुस वारसी ने, की-बोर्ड पर नरेश कुमार ने, बेन्जो पर चुना खां ने, बेकअप कोरस पर राणा, कश्मीर मोहम्मद और माधव ने, तबले पर सादिक अली ने, ओक्टोपेड पर मोहन कुमार ने और ढोलक पर जसवंत ने संगत की।

बच्चों को सुनाए प्रसंग
इधर, उल्लास शृंखला में सोपान जोशी ने स से सांप कहानी बच्चों को सुनाई। इस कहानी के केंद्र में गांधी जी हैं, जो बच्चों को कहानी सुना रहे हैं। उसी समय पास के एक घर में, जहां एक बुढिय़ा रहती थी। उसके घर में एक सांप घुस जाता है। गांव वाले उस सांप को मार देते हैं। बुढिय़ा उस सांप को नहीं जलाती, बल्कि अपनी ही छत पर रख देती है। कुछ समय बाद एक चील आती है, वह अपने पैरों में मोतियों की माला लिए होती है। सांप को देखते ही वह मोतियों की माला को वहीं छोड़कर सांप को ले जाती है। इस कहानी से सोपान जोशी ने बच्चों और श्रोताओं को जीवन का मूल्य और मरे हुए शरीर का भी मूल्य होता है, यह समझाने का प्रयास किया।
सांस्कृतिक भिन्नता पर गांधी जी को गर्व था
अगली कड़ी में उन्होंने एक किस्सा फ से फुटबॉल श्रोताओं को सुनाया। इस किस्से में उन्होंने बताया की किस तरह गांधी जी ने फुटबॉल खेल से भारत की विभिन्न जातियों, धर्मों और प्रान्तों के लोगों को अपने साथ जोड़ा। हिमांशु वाजपेयी ने महात्मा गांधी के जीवन और उनके आदर्शों की विस्तार से चर्चा की। उन्होंने गांधी जी के सत्य और अहिंसा के आदर्शों को बच्चों को समझाने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि गांधी जी को भारतीय परम्पराओं और सांस्कृतिक भिन्नता पर बहुत गर्व था। गांधी जी साफ-सफाई पर बहुत ध्यान देते थे। उन्होंने गांधी जी के जीवन के किस्से सुनाते हुए सभी श्रोताओं को सत्य और अहिंसा के पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बच्चों को आम की कहानी भी सुनाई।
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