यहां आने वाले मरीजों को योग अभ्यास और विभिन्न प्रकार के आसनों द्वारा बीमारियों को ठीक किया जाता था। इसे भेल के तत्कालीन ईडी पीटी देव ने शुरू कराया था। उस समय कस्तूरबा अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ओपी अरोरा थे। वहीं अस्थमा डिपार्टमेंट की प्रभारी कल्पना तिवारी थीं, जिनकी देखरेख में अस्थमा शोध प्रोजेक्ट पूरा किया गया। साथ ही अन्य डॉक्टर भी थे, जिन्हें प्रोजेक्ट दिया गया था।
इनमें मधुमेह विभाग के इंचार्ज डॉ. तरुण निगम, हाइपर टेंशन के डॉ. टीसी चौधरी, सर्वाइकल इंस्डोलासिक के डॉ. रंजन सिन्हा रहे। इस रिसर्च सेंटर में इन सभी बीमारियों पर शोध किया गया, जिनके बेहतर परिणाम सामने आए। रिसर्च सेंटर में मौजूदा समय में सुबह-शाम योग थेरेपी की क्लास चल रही है और योग परामर्श दिया जा रहा है। सेंटर में करीब 90 लोग पहुंचकर इसका लाभ ले रहे हैं।
बेहतर स्वास्थ्य देना उद्देश्य
लोगों को बेहतर स्वास्थ्य देने, दवाईयों की खपत को कम करने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी। कस्तूरबा अस्पताल में आने वाले भेल व रिटायर्ड कर्मचारियों को हो रही गंभीर, लाइलाज बीमारियों पर रिसर्च करना और योग के माध्यम से काबू करने के लिए यहां रिसर्च किया जाना था, जिसमें संस्थान को बेहतर सफलता हासिल हुई। योग रिसर्च सेंटर को बिहार योग विद्यालय मुंगेर के संबद्ध से संचालित किया जा रहा है। इस संस्थान में रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए योग विद्यालय मुंगेर के योग विशेषज्ञ (सन्यासी) आते रहते हैं।
लोग नियमित रूप से योग करें, भविष्य में इसका उन्हे पूरा लाभ मिलेगा। साथ ही उन्हे अन्य बीमारियों की संभावना कम हो जाएगी। योग से लोगों को शांति एवं खुशी मिलती है। वर्तमान की दिनचर्या में लोग बहुत सारे तनाव से घिरे हुए होते हैं। योगाभ्यास से तनावमुक्त रहा जा सकता है।
अमृत बिन्दु, प्रभारी योगा कन्सटेंट, योगा अनुसंधान केंद्र कस्तूरबा
मैं 20 मार्च 2006 से लगातार योग कर रही हूं। योग से जुडऩे के बाद मेरी सोच सकारात्मक हुई है और मेरी शारीरिक छमता में वृद्धि हुई है। मुझे बचपन से अस्थमा की शिकायत है। योग से जुडऩे के बाद दवाइयों की मात्रा में कमी आई है।
– पूनम मदान, शिक्षिका
मुझे मधुमेह और बीपी की शिकायत है। मैं दवा के साथ-साथ योग भी करता हूं। अब मुझे कोई परेशानी नहीं है। मैं अपने आपको पूरी तरह स्वस्थ्य मानता हूं। सेंटर खुलने के समय से हम जुड़े हुए हैं। हमारी सभी बीमारियां कंट्रोल में हैं। मंजीत सिंह रिटायर्ड जनरल मैनेजर भेल
मैं निरशा में डूब चुका था। मुझे हमेशा मौत का डर लगा रहता था। पर योग रिसर्च सेंटर पहुंचकर फिर से जीने की तमन्ना जाग उठी। मुझे सांस की गंभीर बीमारी है, थोड़ा सा भी चलने पर हांफने लगता था। पैरों में मरोड़ उठने लगती थी, योग से काफी राहत मिली है।डिप्रेशन खत्म हो गया।
प्रकाश लोनारे, साकेत नगर भोपाल