इसके तहत बुजुर्ग, गृहणियों और विद्यार्थियों को लो फ्लोर बसों में यात्रा के नाम पर 800 रुपए का पास 200 से 400 रुपए में बांटा जा रहा है। बस ऑपरेटिंग कंपनी को घाटा नहीं हो इसलिए शेष राशि बीसीसीएल अपनी जेब से ऑपरेटर्स को अदा करता है।
खुद बीसीएलएल कहीं घाटे में नहीं चली जाए इसके लिए नगर निगम को शासन की मदद से योजना को जारी रखने के लिए वित्तीय अनुदान जारी करना था। सत्ता परिवर्तन के बाद ये राशि जारी नहीं हो रही है जिसके चलते बीसीएलएल अपने बस ऑपरेटरों को भुगतान नहीं कर रहा है। बीसीएलएल प्रबंधन नगर परिषद का कार्यकाल समाप्त होने पर इस योजना की समीक्षा कर सकता है।
पास की कीमत
वर्ग : नवीन राशि
सामान्य पास : 800रु.
दिव्यांग : 200रु.
निगम कर्मी : 200रु.
विद्यार्थी : 500रु.
वरिष्ठ नागरिक : 500रु.
महिलाएं : 500रु.
योजना के हितग्राही : 500रु.
सब्सिडी का बकाया : 04 करोड़ रु.
महापौर पास का ये था प्रस्ताव
विद्यार्थियों और विकलांगों को 200, घरेलू महिलाओं, वरिष्ठ नागरिक और शासकीय कर्मियों को 400 रुपए में बांटा जा रहा महापौर पास असल में 800 रुपए का है। बस ऑपरेटिंग कंपनियों को निर्देश हैं कि पास दिखाने वालों को दर्शाई दर पर डिस्काउंट वाला टिकट जारी किया जाएगा।
ऑपरेटर्स को अंतर के 400 से 600 रुपए की राशि प्रति पास के हिसाब से बीसीएलएल अदा करेगी। पिछले एक साल से बस ऑपरेटरों की दी जाने वाली सब्सिडी की राशि अटक रही है। बकाया रकम औसत रूप से 4 करोड़ रुपए से ज्यादा हो चुकी है।
ये सुविधा जनता से जुड़ी हुई है। इसे बंद नहीं होने दिया जाएगा। कांग्रेस सरकार को जनहित में इसे जारी रखना चाहिए, इसमें राजनीति नहीं होनी चाहिए।
– केवल मिश्रा, डायरेक्टर, बीसीएलएल इधर, टैक्स वसूलने वाले विभाग अन रजिस्टर्ड डीलर को बैंकिंग लेन-देन से पकड़ेंगे
वहीं एक अन्य मामले में दुकानों पर रिटेल में सामान खरीदने पर ज्यादातर लोग बिल नहीं मांगते, दुकानदार भी ग्राहक को बिना बिल के ही माल दे देता है। इससे सामान खराब होने या वापसी के समय ग्राहकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ऐसे मामले में व्यवसायी टैक्स की बचत भी कर लेता है। ऐसे डीलरों को लेकर टैक्स वसूलने वाले विभागों ने सख्ती करने की तैयारी कर ली है। विभाग इन व्यापारियों के टर्नओवर और बैंक ट्रांजेक्शन के आधार पर पकड़ेगा। इसके अलावा इनकम टैक्स में रिटर्न फाइल करते समय दी गई जानकारी से भी टर्नओवर का पता किया जा सकता है।
नियमानुसार 200 रुपए के ऊपर के सामान खरीदी पर डीलर को पक्का बिल देना जरूरी हो जाता है। दरअसल जीएसटीएन में तीन तरह के व्यापारी आते हैं। इनमें रजिस्टर्ड डीलर, अनरजिस्टर्ड डीलर और कम्पोजिशन वाले डीलर आते हैं।
रजिस्टर्ड डीलर को ग्राहक से टैक्स लेने का अधिकार है जबकि कम्पोजिशन स्कीम में डेढ़ करोड़ रुपए के टर्नओवर तक छूट है। लेकिन इनके बिल में कम्पोजिशन स्कीम की सील लगी होनी चाहिए। अनरजिस्टर्ड डीलर वो है जिनका सालाना टर्नओवर 40 लाख रुपए तक है और उन्होंने विभाग से पंजीयन नहीं करवाया है।
टैक्स एक्सपर्ट का कहना है कि ऐसे डीलर विभाग में रजिस्टर्ड नहीं है, लेकिन इनको बिल (कैश मेमो) देना चाहिए। पूरे दिन में जितने बिल कटेंगे, उसी आधार पर उनकी खरीद-बिक्री दिखाई देगी। बैंकिंग लेन-देन में भी इसकी जानकारी विभाग को मिल जाएगी। उसी आधार पर टैक्स का भार भी आएगा। वैसे भी जीएसटी एवं आयकर विभाग ने एक ऐसा इलेक्ट्रानिक सिस्टम डेवलप किया है, जिससे संबंधित डीलर के क्रय-विक्रय के बारे में जानकारी मिल जाती है।
यदि बिल नहीं देकर बिक्री छिपाई जाती है तो विभाग को अन्य स्रोतों जैसे बैंक खाते के ट्रांजेक्शन से भी जानकारी जुटाई जा सकती है।
– आरपी श्रीवास्तव, संयुक्त आयुक्त, राज्यकर