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लोकसभा में फेल, विधानसभा में पास और अब लाभ में है नेताजी

locationभोपालPublished: Apr 02, 2019 10:28:00 pm

मतदाताओं ने नकारा अब उन्हीं ने पहनाया ताज

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डॉ. दीपेश अवस्थी,

भोपाल। मतदाताओं के मन की बात को समझना आसान नहीं है, वे कब किसको ताज पहना दें और किसका ताज छीन लें। राज्य के कई नेताओं के साथ ऐसा ही हुआ। वर्ष २०१३ के विधानसभा चुनाव में उन्हें जिताकर विधानसभा तक भेजा। इसके बाद वर्ष २०१४ में हुए लोकसभा चुनाव में जब इन्हीं नेताओं ने फिर किस्मत आजमाई तो उन्हें हार का मजा चखा दिया। २०१८ के विधानसभा चुनाव में भी इन्हें क्षेत्र की जनता ने अपनी पसंद माना। और फिर से विधानसभा तक पहुंचाया। इनमें से आधा दर्जन विधायक तो राज्य सरकार में मंत्री हैं।
किसकी क्या है स्थिति –

पीसी शर्मा –
वर्ष २०१४ में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के आलोक संजर को भोपाल सीट से चुनौती दी, लेकिन यहां सफल नहीं हो सके। वर्ष २०१८ के विधानसभा चुनाव में फिर से किस्मत आजमाई। यहां उन्होंने भाजपा के उमाशंकर गुप्ता को करारी मात दी। गुप्ता मंत्री रहते हुए चुनाव हारे। अब शर्मा राज्य सरकार में मंत्री में हैं।

सज्जन सिंह वर्मा –

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के मनोहर उंटवाल को देवास सीट से चुनौती दी। कड़ी टक्कर देने के बावजूद भी उंटवाल ने इन्हें २ लाख ६० हजार से अधिक मतों से हराया। वर्ष २०१८ के विधानसभा चुनाव में ये सफल हुए। अब कांग्रेस सरकार में मंत्री हैं। वर्मा पहले भी मंत्री रहे हैं।
गोविंद सिंह राजपूत-
भाजपा के लक्ष्मीनारायण यादव के मुकाबले वर्ष २०१४ में चुनाव मैदान में थे। इस चुनाव में १२०७३७ वोट से हारे। वर्ष २०१८ के विधानसभा चुनाव में फिर किस्मत आजमाई। चुनाव जीते और अब राज्य सरकार में मंत्री हैं। परिवहन जैसा महत्वपूर्ण महकमा संभाल रहे हैं।

– ओंकार सिंह मरकाम –

पिछला लोकसभा चुनाव भाजपा के फग्गन सिंह कुलस्ते के मुकाबले मण्डला लोकसभा सीट से लड़ा। कुलस्ते ने इन्हें ११०४६९ मतों से हराया। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में फिर किस्मत आजमाई। विधायक बने और राज्य सरकार में मंत्री हैं।
उमंग सिंहार –
पिछले लोकसभा चुनाव में इन्हें भाजपा की सावित्री ठाकुर ने १०४३२८ मतों से हराया। वर्ष २०१४ के लोकसभा चुनाव के बाद २०१८ के विधानसभा चुनाव में ये फिर मैदान में आए। यहां ये सफल हुए। अब ये कांग्रेस सरकार में मंत्री हैं।
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इमरती देवी –

वर्ष २०१४ में भिण्ड से भाजपा के भागीरथ प्रसाद के मुकाबले चुनाव मैदान में थीं। १५९९६१ वोट से हारीं। लेकिन इसके पहले हुए विधानसभा चुनाव जीतीं। वर्ष २०१८ के विधानसभा चुनाव में भी मतदाताओं ने इनका साथ दिया। अब ये राज्य सरकार में मंत्री हैं।
हिना कावरे-
वर्ष २०१३ के विधानसभा चुनाव में सफल रहीं, लेकिन इसके बाद हुए वर्ष २०१४ में हुए लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। ये बालाघाट लोकसभा से भाजपा के बोध सिंह भगत के मुकाबले मैदान में थीं। वर्ष २०१८ के विधानसभा चुनाव में क्षेत्र की जनता ने इन्हें फिर से विधायक चुना। अब ये विधानसभा उपाध्यक्ष हैं।

लक्ष्मण सिंह, विदिशा –

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई हैं। वर्ष २०१४ के लोकसभा चुनाव में विदिशा सीट से भाजपा की सुषमा स्वराज को विदिशा सीट से चुनौती दी। यहां ४ लाख १० हजार से अधिक मतों से हारे। वर्ष २०१८ के चुनाव में ये चाचौड़ा विधानसभा से मैदान में आए। इन्होंने भाजपा की ममता मीणा को हराया।
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लोकसभा के साथ विधानसभा भी हारे –

जयभान सिंह पवैया वर्ष २०१३ के विधानसभा चुनाव में जीते। इसके ठीक एक साल बाद यानी २०१४ में हुए लोकसभा चुनाव में इन्होंने किस्मत आजमाई तो मतदाताओं ने इन्हें नकार दिया। ग्वालियर विधायक रहते हुए ये गुना में कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनौती देने चुनाव मैदान में उतरे। लोकसभा चुनाव हारे, वर्ष २०१८ के विधानसभा चुनाव में भी हार का सामाना करना पड़ा। इन्हें कांग्रेस के प्रद्युम्न सिंह तोमर ने २१ हजार से अधिक मतों से हराया। इस दौरान ये भाजपा में मंत्री थे। जबकि ये लोकसभा चुनाव एक लाख २० हजार वोट से हारे थे। कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी की भी ऐसी ही स्थिति रही। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के पुत्र सुंदरलाल तिवारी वर्ष २०१४ का विधानसभा चुनाव हारे। २०१४ के लोकसभा चुनाव में भाजपा के जर्नादन मिश्रा ने इन्हें एक लाख ६८ हजार मतों से हरा दिया। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी इन्होंने गुढ़ विधानसभा से किस्मत आजमाई, लेकिन यहां भी करारी हार मिली।
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