शादी के 21 साल बाद मां को उसका अधिकार दिलाने के लिए 20 वर्षीय बेटे को डीएनए टेस्ट कराना पड़ा। माता—पिता की सन 2000 में शादी हुई लेकिन कुछ माह बाद ही मनमुटाव के कारण दोनों अलग-अलग रहने लगे। पत्नी इस आस में इंतजार करती रही कि बेटे के मोह में पति उसे ले जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2015 में पति ने पत्नी के खिलाफ तलाक का केस लगाया। पत्नी ने भरण-पोषण का केस लगाया था और अंतत: डीएनए टेस्ट के बाद निर्णय पत्नी के पक्ष में हुआ।
इस बीच पत्नी ने बेटे काे जन्म देकर माता के साथ बेटे काे पिता का दुलार भी दिया। अलगाव के 15 साल बाद पाेते के प्रति माेह जागने पर ससुर ने उसे हासिल करने की काेशिश की, लेकिन नाकाम रहे। माता–पिता के दांपत्य जीवन में पड़ी दरार के बीच उनका बेटा बीस साल का हाे गया। मामले में कुटुंब न्यायालय की अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश शशिकांता वैश्य की बेंच ने पति की तलाक की अर्जी खारिज कर दी। फैसले में बेंच ने पति को फटकार लगाते हुए कहा कि वह अपनी जिम्मेदारी से बचता रहा।उसने अपनी पत्नी को 21 साल तक शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। साथ ही बेटे व पत्नी को भरण-पोषण के लिए आर्थिक मदद भी नहीं की। पति को अब पत्नी को 13 हजार रुपये प्रतिमाह देने के साथ ही बेटे के पढ़ाई का खर्च भी देने का आदेश दिया गया है।