खुशियां मातम में बदल गई
घर के मुखिया के मौत हो जाने से परिवार के सामने दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा। बेटी भी मन ही मन में अपने आप को कोसने लगी की मैं कैसे अभागन हूं, कि बारात आने के एक दिन पहले ही पिता की मौत से खुशियां मातम में बदल गई। पीड़ित परिवार समाज और रीति रिवाज के कारण बेटी की शादी तो कर दी गई,लेकिन दोनों परिवारों में खुशियां नजर नहीं आ रही थी।
ये है मामला
कैंसर जैसी घातक बीमारी और तंगहाली से जूझ रहे मध्य प्रदेश के भिण्ड जिले के वार्ड क्र. 39 निवासी 43 वर्षीय पिता की जीते जी बेटी का घर बसता हुए देखने की इच्छा थी। नाबालिग होने के बावजूद 25 फरवरी को उसकी शादी तय कर दी, लेकिन पिता को 24 फरवरी को ही मौत ने आगोश में ले लिया। तय वक्त में नाबालिग बेटी का ब्याह तो हो गया, लेकिन पुलिस बाल विवाह के अपराध में उसके ससुराल छानबीन करने पहुंच गई है।
छानबीन के लिए टीम रवाना
16 वर्षीय बालिका को ब्याहने के लिए उप्र के इटावा अंतर्गत गंग नगौली कचोरा रोड निवासी 20 वर्षीय युवक बारात लेकर आया था। विवाह के बाद दूल्हा रामलखन पुत्र बलवीर सिंह दुल्हन ले गया। जानकारी प्रशासन को लगी तो एसडीएम इकबाल मोहम्मद के अलावा महिला एवं बाल विकास विभाग व पुलिस अधिकारी सक्रिय हुए और छानबीन के लिए टीम ससुराल के लिए रवाना कर दी गई।
घरों में झाड़ू-पोंछा कर करते है भरण पोषण
विदा हुई बेटी के अलावा एक 12 तथा दूसरी 9 वर्षीय बेटी एवं दो बेटों सहित मां सात सदस्यीय परिवार का भरण पोषण करने के लिए दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा, बर्तन साफ करने एवं खाना बनाने का काम कर रही है। पति के इलाज के लिए उनके पास पैसे नहीं थे।
जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाती योजनाएं
यहां बता दें कि गरीबी के भंवर में फंसे परिवारों के लिए सस्ता राशन उपलब्ध कराने के लिए बीपीएल कार्ड, मुफ्त इलाज के लिए आयुष्मान कार्ड, रहने के लिए प्रधानमंत्री आवास एवं बेटी के विवाह कराने के लिए मुख्यमंत्री कन्यादान जैसी योजनाएं संचालित हैं। पात्र परिवारों को उपरोक्त योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। बिना उपचार और बिना सरकार मदद के दम तोड़ देने वाला कैंसर पीडि़त नाबालिग बेटी के पिता इस अव्यवस्था का जीवंत उदाहरण हैं।
पत्रिका ब्यू
कानून का दायरा बताने वाले हक दिलाने क्यों नहीं जाते
नाबालिग बेटी का विवाह भले ही कानूनन अपराध है, लेकिन जिन परिस्थितियों में पिता को ये कदम उठाना पड़ा ये जिम्मेदारों के लिए सवाल खड़ा कर गया है। कानून की दुहाई देने वाले अफसर बदहाली और मुफलिसी में मदद के लिए क्यों नहीं जाते हैं। यदि योजनाओं के क्रियान्वयन में जिम्मेदारों की नींद टूट जाए तो शायद ऐसे परिदृष्य सामने ही नहीं आएं।
समस्या का हल निकालेंगे
नाबालिग बेटी की शादी करने के मामले में टीम इटावा गई है। उनके लौटने पर सामाजसेवी एवं बुद्धजीवी वर्ग से बातचीत कर समस्या का हल निकालेंगे।
नागेंद्र सिंह, एसपी भिण्ड
गौना रोक देना चाहिए
परिवार को योजनाओं का लाभ यदि मिलता तो उसके बदतर हालात नहीं होते। मरने से पहले पिता को बेटी के ब्याह की चिंता थी। कानूनी कार्रवाई के बजाए बेटी के बालिग होने तक गौना रोक देना चाहिए।
सारिका जैन, सोशल वर्कर भिण्ड
बेटी को विदा कर दिया
दूसरों के घरों में काम करके जितना मिलता है उसमें परिवार ही चल पाता। सरकारी मदद की कोई आस नहीं थी। ऐसे में लोगों की मदद से जैसे बन पड़ा बेटी को विदा कर दिया।
गुड्डी देवी, पड़ोसी मातादीन का पुरा भिण्ड