इनके इलाज में जुटे चिकित्सकों का कहना है कि उपचार के दौरान काफी सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। पीड़ित की तबियत में सुधार आने पर बेहद खुशी होती है, तो दूसरी ओर घर वालों को उनकी काफी चिंता सताती रहती है। पत्रिका से कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रहे पांच जांबाजों ने अपनी कहानी शुरू की है।
डरना था तो ये पेशा ही नहीं चुनते हमीदिया अस्पताल के श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ प्रतीक शर्मा ने कहा कि परिवार में सभी डॉक्टर हैं, इसके बाद भी उन्हें डर लगा रहता है। पापा ने हमेशा खुद से ज्यादा मरीजों की परवाह की है। मैंने भी यही सीखा है, यह तो हमारे लिए मौका है, लोगों की असली सेवा करने का। अगर इन सबसे डर लगता तो यह पेशा चुनते ही क्यों। इन सबके बावजूद संक्रमण का असर परिवार पर ना हो उसका पूरा ध्यान रखते हैं।
पांच दिन से परिवार से नहीं मिला जूडा के अध्यक्ष डॉ चेतन सक्सेना ने कहा कि मेरी मां 65 वर्ष की हैं। कहती हैं बेटा ध्यान रखना। उनकी आंखों में चिंता साफ दिखती है। मां परिवार को संक्रमण ना लगे, घर पर भी उनसे नहीं मिलता। पिछले पांच दिन से परिवार से नहीं मिले हैं। हमारा काम है ऐसी आपदाओं में लोगों की मदद करना, पर जो डॉक्टर्स, नर्सिंग, पैरामेडिकल स्टॉफ दिन रात काम कर रहा है, उनकी सुरक्षा पर भी बात होनी चाहिए।
बेटा-पत्नी सबको गांव छोड़ा हमीदिया अस्पताल के डॉक्टर धनराज नागर ने कहा कि मैं अस्पताल से घर जाता था तो घर वाले डरते थे। कोरोना संक्रमित होने की खबरें आईं तो वे और डरने लगे। मैंने उन्हें समझाया कि घबराएं नहीं हम खुद एहतियात रखते हैं। इसके बाद खुद मेरे मन में शंका पैदा हुई तो परिजनों को कुछ दिनों के लिए अपने शहर भेज दिया। उपचार के दौरान अधिकतर मरीज ऐसे थे जो लक्षणों के आधार पर दी गई दवाओं से ही ठीक होने लगते थे।
बच्चे परेशान हैं, रोज पूछते हैं हमारा हाल गैस राहत अस्पताल के सीएमएचओ डॉ रवि वर्मा ने कहा कि बच्चे यूएस में रहते हैं, वहां भी हालात खराब हैं। हमें उनकी चिंता होती है और उन्हें हमारी। वे रोज वीडियो कॉल पूछते हैं कि तबियत कैसी है। हमारी उम्र भी 60 के आसपास है, लेकिन ये खतरा ऐसा है कि इससे लोगों को बचना जरूरी है। मैं रोज अस्पताल जाता हूं और डॉक्टर्स और सपोर्टिंग स्टॉफ से बात करता हूं, ताकि उनका मनोबल बना रहे। लेकिन कभी-कभी हमें भी चिंता होती है।