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मोरों की सुरक्षा पर है खास ध्यान

locationभोपालPublished: Feb 09, 2019 10:47:06 am

इंटरव्यू– सुदीप सिंह,  सीसीएफ, सीपीए फॉरेस्ट

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भोपाल. शहर के वन क्षेत्र में राष्ट्रीय पक्षी मोर की सुरक्षा के लिए सीपीए फॉरेस्ट विंग सतर्क हो गई है। शाहपुरा की 86-87 जिन दो पहाडिय़ों पर सैकड़ों मोरों का बसेरा है, उनकी फेंसिंग कर गेट लगाए गए हैं। वहां रहने वाले अमले को भी सतर्कता बरतने निर्देशित किया गया है। इसके अलावा पौधों का सर्वाइवल रेट बढ़ाने और काटे गए पेड़ों के स्थान पर उसी वृक्ष प्रजाति के पौधों को लगाने पर भी बल दिया जा रहा है, जिससे शहर में तेजी से घट रहा हरियाली का अनुपात सही हो सके।
सवाल: शहरी वन क्षेत्र में राष्ट्रीय पक्षी मोर की सुरक्षा के लिए क्या व्यवस्था की जा रही है?
जवाब: यह सच है कि शहरी वन क्षेत्र में मोरों की संख्या बढ़ी है। शाहपुरा की दोनों पहाडिय़ों पर सैकड़ों की संख्या में मोर हैं। उनकी सुरक्षा के लिए फेंसिंग की गई है। इसके सिवा आवारा कुत्तों और शिकारियों से बचाव के लिए
विभागीय अमला वहां तैनात रहता है।
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सवाल: शाहपुरा पहाड़ी पर अतिक्रमण की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है?
जवाब: कोई नया अतिक्रमण नहीं हुआ है। जो भी अतिक्रमण हैं, वे पुराने हैं। राजस्व विभाग द्वारा अतिक्रमणों का सर्वे किया जा चुका है। इस संबंध में शासन को रिपोर्ट भेजी जा चुकी है।
सवाल: सीपीए द्वारा लगाए जाने वाले अधिकांश पौधे खत्म हो जाते हैं, क्या कारण है?
जवाब: ऐसा बिलकुल नहीं है। सीपीए फॉरेस्ट अपने लगाए हुए पौधों को शत-प्रतिशत बचाने का प्रयास करता है। जो पौधे खत्म हो जाते हैं, उनके स्थान पर नए पौधे लगाए जाते हैं। मॉर्टिलिटी रेट की थर्ड पार्टी जांच की जिम्मेदारी एप्को को सौंपी गई है। एप्को की रिपोर्ट में सीपीए पौधरोपण का 95 प्रतिशत से अधिक सर्वाइवल एंड ग्रोथ बताया गया है।
सवाल: जितने पौधे काटे जाते हैं, उनके बदले कितने और किस प्रजाति के पौधे लगाए जाते हैं?
जवाब: यह प्रयास किया जाता है कि वृक्ष प्रजाति के पौधे के स्थान पर वृक्ष प्रजाति का पौधा ही लगाए जाएं। नगर निगम के नियमानुसार 30 सेमी गोलाई से कम का पौधा काटने पर दो गुना और 30 सेमी से अधिक गोलाई का पेड़ काटने पर चार गुना शुल्क वसूल किया जाता है। इस फंड से नए पौधे लगाए जाते हैं।
सवाल: वृक्ष प्रजाति के पेड़ों में कौन सी प्रमुख बीमारियां नजर आ रही हैं?
जवाब: कान्हा कुंज में कुछ नीम के पेड़ रूट रॉट डिसीज की चपेट में थे। यह बीमारी पौधे को अंदर से खत्म कर देती है और पोषण नहीं मिलने देती। इस बीमारी के सैम्पल जबलपुर स्थित लैब में भेजे गए थे। जांच रिपोर्ट के बाद उनकी सलाह पर नीम के पेड़-पौधों का उपचार किया गया है।

सवाल: पौधरोपण के दावे सही हैं तो शहर को अब तक पेड़ों से ढक जाना चाहिए था?
जवाब: पुराना बड़ा पेड़ कटने के बाद नए पौधे को उतना बड़ा होने में वर्षों का समय लगता है। डवलपमेंट के लिए यदि कोई पचास वर्ष पुराना पेड़ काटा गया है और उसके स्थान पर लगाए गए पौधों को उतना बड़ा होने में समय लगेगा।

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