scriptकर्ज में डूबी सहकारी समितियों के खाद्य विभाग ने दबाए 400 करोड़ | Food department of debt-ridden cooperative societies suppressed 400 cr | Patrika News

कर्ज में डूबी सहकारी समितियों के खाद्य विभाग ने दबाए 400 करोड़

locationभोपालPublished: Oct 20, 2019 08:04:50 am

Submitted by:

Ashok gautam

दो हजार समितियों के पास किसानों को बांटने के लिए खाद-बीज खरीदी का पैसा नहीं

छत्तीसगढ़: चीनी मिल पर किसानों का 18 करोड़ रुपए बकाया, भाजपा ने दी आंदोलन की चेतावनी

छत्तीसगढ़: चीनी मिल पर किसानों का 18 करोड़ रुपए बकाया, भाजपा ने दी आंदोलन की चेतावनी

भोपाल। प्रदेश की चार हजार समितियों की माली हालत खराब है। 2 हजार समितियों के पास किसानों को बांटने के लिए खाद-बीच खरीदी के लिए पर्याप्त पैसे ही नहीं हैं। इसके बावजूद भी खाद्य विभाग ने इन समितियों के 400 करोड़ रुपए दबा रखे हैं। बार-बार तकाजे के बाद भी विभाग यह राशि लौटाने को तैयार नहीं है।

समीक्षा बैठक में इस रिपोर्ट को रखा गया
यह पैसा समर्थन मूल्य पर गेंहू, धान सहित अन्य अनाज की खरीदी, मजदूरों और ऑपरेटरों के मानदेय भुगतान का है। सहकारिता विभाग के ऑडिट में इसका खुलासा हुआ है। एक पखवाड़ा पहले हुई अधिकारियों की समीक्षा बैठक में इस रिपोर्ट को रखा गया।

राशियां नहीं दे रहा
सहकारिता विभाग की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य विभाग समर्थन मूल्य पर खरीदी करने के बाद समितियों को उसका कमीशन, मजदूरों की राशि सहित अन्य राशियां नहीं दे रहा है।


लेनदारी पांच साल की बकाया
कई समितियों की यह लेनदारी पांच साल की बकाया है। इससे समितियों पर बैंकों का ब्याज बढ़ता जा रहा है और इससे उनकी माली हालत दिनों-दिन खराब हो रही है। 100 समितियां इतने घाटे में हैं कि उनके पास खाद-बीज सहित अन्य सामग्री खरीदने के लिए उनके पास पैसे ही नहीं है। विभाग उन्हें क्लेम की राशि दे, तो वे खाद-बीज खरीदी करें। समितियों को यह राशि लेने के लिए विभाग के अधिकारियों का चक्कर काटना पड़ता है, लेकिन राशि का हिसाब-किताब सही नहीं हो पाता है।


खंडवा समिति में सबसे पुराना कर्ज
खंडवा जिले के 21 सहकारी समितियों ने 2013 में मक्का खरीदा था। इस खरीदी का दो लाख रुपए बकाया खाद्य विभाग ने समितियों को अभी तक नहीं दिया है। इस राशि को लेने के लिए समितियां नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारियों और खाद्य विभाग के अधिकारियों को भी कई बार पत्र दे चुकी हैं, लेकिन इसे अभी तक क्लेम सेंटलमेंट नहीं हो पाया है।

बैंकों से कर्ज लेती हैं समितियां

समर्थन मूल्य के दौरान श्रमिकों को वेतन बांटने, टेंट लगाने सहित अन्य कार्य के लिए समितियां बैंकों से कर्ज लेती हैं। खरीदी और भंडारण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद समितियां खर्च की गई राशि के संबंध में खाद्य विभाग में क्लेम करती हैं। स्थिति यह है कि सालभर बाद भी विभाग पूरी राशि वापस नहीं लौटाता। इसके चलते प्रतिवर्ष उधारी पर उधारी बढ़ती जाती है।

पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने से खराब होता है अनाज
खरीदी के दौरान अनाज को सुरक्षित रखने के लिए समितियों के पास पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण सैकड़ों क्विंटल अनाज पानी में भीग जाता है। इसकी भी भरपाई समितियों से की जाती है। इसके चलते समितियों पर साल दर साल घाटा बढ़ता चला जाता है। इसके अलावा अनाज गोदामों में पहुंचने के बाद उसकी एनओसी जारी की जाती है। कई बार समितियों से अनाज लेकर ट्रक निलकते हैं तो लेकिन पूरा अनाज लेकर गोदामों तक पहुंचते तो इसकी भी भरपाई समितियों से की जाती है।

 

सर्वाधिक लेनदारी वाले टॉप टेन जिले –

 

जिला———-समिति संख्या—- अनाज ——–बकाया राशि (लाख में)
जबलपुर ——-74 ————धान, उड़द ———5000.69

विदिशा ——-162 ————गेहूं, चना, मसूर ———1945.71
दतिया ——-5————चना———3497.49

रीवा ——- 5 ————उड़द, मूंग———1853.10
रायसेन——-24————चना, सरसों, मसूर———1348.84
शिवपुरी ——-48————मूंगफली———1052.80

हरदा ——- 47 ——— गेंहू —— 957.02

कटनी ——- 59 ————धान———955.32

दतिया ——- 51 ————गेंहू ——— 925.39

पन्ना ——-25————उड़द, मूंग———820.03

समितियों की लेनदारी खाद्य विभाग के समक्ष रखी जाएगी। समितियों की माली हालत को भी सुधारने के लिए प्रयास किए जाएंगे।
– एमके अग्रवाल, आयुक्त सहकारिता विभाग

 

कई समितियां डिफाल्टर हैं। इनकी राशि रोकी गई है और उनका क्लेम सेटलमेंट में समय लगता है। हिसाब-किताब पूरा होने के बाद ही राशि जारी की जा जाएगी।

श्रीमन शुक्ला, आयुक्त खाद्य विभाग

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो