कार्यक्रम की अगली कड़ी में रीवा से आई शिवानी पांडे ने बघेली वर्षागीत पेश किए। उन्होंने प्रस्तुति की शुरुआत हिंदुली गीत चारिनि खूटे के बनी रे… कजरी गीत हरे-हरे दशरथ राज दुलारे… झूला गीत धानि-धानि रे कदम तोरी डाली…. सुनाया।
इसके दादरा में लाल आंखिन मा छिउला के पानी, शिव भक्ति का भोला गीत भोलन तोरे लंबे देसवा और अंत में बिरज के बिहारी आबा… गाकर कृष्ण भक्ति का वर्णन किया। उनके साथ शशिकुमार पांडे, शिवांगी पांडे और मनीषा सिंह ने संगत दी। तलबा पर यतिन्द्र शुक्ला, ढोलक पर सचिन विश्वकर्मा और मंजीरे पर मार्तण्ड तिवारी ने संगत दी।
साउनी सुहानी रे…
भोपाल के फूल सिंह माण्डरे ने बुंदेली वर्षा गीतों में लोक पंरपराओं का वर्णन किया। प्रस्तुति की शुरुआत उन्होंने वाह तकत गई रैन सजना न… से की। इसके बाद जन्मे आधी रात मोहन…, आज तो सजना मोरे घर रहो…, झूला झूलन जाऊंगी माई मोरी… उत्तर सुमरो बद्रीनाथ को… सुनाया।
प्रस्तुति को विस्तार देते हुए मोरे राम घरे कब आओग हो… पेश किया तो साउन सुहानी रे… प्रस्तुति को विराम दिया। उनके साथ कोरस पर नीता झा, कोरस पर सीमा सक्सेना, ढोलक पर शब्बीर खान तबला पर संजीव नागर और मंजीरा पर राम लखन श्रीवास ने संगत दी।
ससुराली में आकर सीखी मालवी
अगली प्रस्तुति उज्जैन से आई तृप्ति नागर ने मालवी वर्षा गीत पेश किए। प्रस्तुति की शुरुआत राखी गीत राखी दीवासों आवियो वीरो… से की। इसके बाद चौमासा गीत, मेवाजी आपे बरसो ने… सुनाया। उन्होंने झूला गीत, सावन गीत, बदरा गीत, हिंडोला गीत और विरह गीत पेश किया। तृप्ति मूलत: आगरा की रहने वाली हैं। उन्होंने उज्जैन में शादी के बाद मालवी सीखी। मालवी गीतों पर पीएचडी के बाद शास्त्रीय गायन के साथ मालवी गीत भी गानें लगीं।