अभी तक राज्य का वाणिज्य कर विभाग केंद्र के निर्णय का इंतजार करने का हवाला देकर दामों कमी से बचता आया है। दरअसल, केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में शामिल करने वाली है। इसके बाद पूरे देश में पेट्रोल-डीजल के समान रेट लागू होंगे। इस कारण सरकार वैट में कमी से बचती आई है।
पिछले तीन महीने में 18 बार पेट्रोल की कीमत में वृद्धि हुई है। जबकि, कमी केवल आठ बार आई। डीजल की कीमतें 22 बार बढ़ी और 10 बार कम हुई। सरकार का तर्क है कि पेट्रोल-डीजल के दाम बढऩे सरकार को कोई फायदा नहीं हो रहा, बल्कि केवल पुराने घाटे की भरपाई हो रही है।
सरकार ने अक्टूबर 2017 में पेट्रोल-डीजल पर वैट कम किया था, जिससे 2000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था, इसलिए अब कीमत में वृद्धि से इस घाटे की भरपाई हो रही है। वर्ष 2017-18 में जहां सरकार को पेट्रोल और डीजल से मिलने वाले वैट से करीब 8400 करोड़ रुपए मिलना था, जबकि उसे 6500 करोड़ ही मिले यानी 2000 करोड़ कम मिले और प्रति माह 166 करोड़ रुपए कम मिले।
सरकार का लक्ष्य 9300 करोड़
इस साल सरकार ने पेट्रोल-डीजल से मिलने वाली वैट राशि का लक्ष्य 9300 करोड़ रुपए रखा है, सरकार को बढ़ी हुई कीमतों से इस लक्ष्य की पूर्ति का ही अनुमान है।
केंद्र पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लेने का निर्णय करने वाला है, इसका इंतजार है। इसके बाद कोई निर्णय होगा।
जयंत मलैया, वित्त मंत्री
ऐसे समझें गणित
पेट्रोल पर टैक्स – (प्रति लीटर)
> एक प्रतिशत सेस। यह करीब 84 पैसे होता है।
> 28 प्रतिशत वैट। करीब 18.35 रुपए तक।
> चार रुपए अतिरिक्त कर।
> 19.48 रुपए की सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी।
डीजल पर टैक्स- (प्रति लीटर)
> एक प्रतिशत सेस। यह 72 पैसे औसत लगता।
> 22 प्रतिशत वैट। यह 12 से 13 रुपए औसत।
> 75 पैसे अतिरिक्त कर औसतन।
> 13.33 रुपए सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी लगती।
पेट्रोल-डीजल
कांग्रेस ने 2004 व 2018 की तुलना की है। चार्ट में 2004 में कांग्रेस के समय पेट्रोल 32.7 व डीजल 20.73 रुपए प्रति लीटर बताया है। 2018 में पेट्रोल 83.7 और डीजल 73.21 रुपए प्रति लीटर पार बताया है।