राजधानी में इस बार पेड़-पौधों पर भगवान गणेश की आकृति दशाकर संरक्षण का संदेश दिया जा रहा है। परवरिश द म्यूजियम स्कूल की चीफ शिबानी घोष के साकेत नगर स्थित घर के बाहर एक बड़ा पेड़ है। इस पेड़ को सजाकर भगवान गणेश का रूप दिया गया है। कॉलोनी व आसपास के लोग इसे देखने आ रहे हैं। शिबानी का कहना है कि भगवान अलग-अलग रूपों में हर जगह मौजूद है। वृक्ष भी वृद्धि कर अलग-अलग रूप ले लेते हैं। पेड़ों में भगवान के जिस स्वरूप की कल्पना करने लगते हैं, हमें उनमें ईश्वर का वही रूप दिखाई देने लगता है।
उन्होंने बताया कि इस प्रयोग के बाद कॉलोनी व आसपास के बड़े लड़के अन्य स्थानों पर भी इस प्रयोग को करने के लिए साथ आ गए हैं। १५-२० लड़कों के दल ने तीन-चार पेड़ों पर यह प्रयोग शुरू कर दिया है। आगे इसे वृहद स्तर पर बढ़ाने की तैयारी की जा रही है। बच्चों को सिखाकर प्रकृति संरक्षण का सिपाही तैयार किया जा रहा है।
जेके हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. एके चौधरी के तुलसी नगर स्थित पूर्व आवास पर भी एक पेड़ पर प्राकृतिक रूप से गणेश जी की आकृति उभर आई थी। बाद में उन्होंने उसे सजाकर मोहक रूप दे दिया था। उल्लेखनीय है कि डॉ. चौधरी के रिवेरा टाउन स्थित घर पर दो सौ से अधिक गणेश प्रतिमाएं हैं, जो सोने-चांदी से लेकर कई तरह की अलग-अलग चीजों से बनी हैं। शाहपुरा में सिंचाई विभाग के रिटायर्ड अफसर व समाजसेवी उदय शिंदे के यहां भी तरह-तरह की चीजों के बने गणेश प्रकृति संरक्षण का संदेश देते हैं।
ख्यात पुरातत्वविद् डॉ. नारायण व्यास भी तरह-तरह से संस्कृति व विरासत को बचाने का संदेश दे रहे हैं। वे आसपास के बच्चों और स्कूली बच्चों को भगवान गणेश की पूजा का प्राचीन इतिहास बताते हैं। उन्होंने वर्ष १९७५-७६ में विदिशा के पास बेसनगर का उत्खनन किया था। बेतवा-बेस नदी के संगम चरणतीर्थ के निकट दीवार के पास उत्खनन करने पर एक टीले से करीब १६०० वर्ष पूर्व की भगवान गणेश की मूर्ति मिली थी। इस अतिप्राचीन मूर्ति को दूसरी सदी की लेयर से पाया गया था।
यहां मंदिर के अवशेष भी मिले, जिनमें कई दुर्लभ जानकारियां हासिल हुईं। मंदिर के स्तंभ, पत्थर, डेनेज सिस्टम आदि भी मिला है। १०-११ सदी की गणेश व शिव परिवार के शैलचित्र भीमबेटका में भी उन्होंने पाए थे। ये भगवान गणेश व शिव परिवार के सबसे पुराने शैलचित्र हैं। डॉ. व्यास पांच वर्षों से निमंत्रण कार्डों पर छपे गणेश जी के चित्रों को काटकर संग्रहीत कर रहे हैं। उनके पास इस समय एक हजार से अधिक इस तरह के गणेश जी के चित्रों का संकलन हो चुका है। लकड़ी की चम्मच, खराब ढक्कन आदि पर भी प्रयोग कर गणेश जी की आकृतियां उकेरी हैं। तरह-तरह की आकृतियों वाले पत्थरों को गणेश स्वरूप देकर दर्शनीय बना दिया है।