जेपी नगर में यादव परिवार की तीन पीढिय़ां एक ही दर्द से जूझ रही हैं। 70 पार पन्ना लाल मूंगफली बेचा करते थे। गैस कांड की रात पत्नी और 11 साल के बेटे संजय को लेकर भागे, इस दौरान ऐसा जहर भरा कि आज तक सामान्य नहीं हो पाए। संजय के दोनों बेटे मानसिक विकलांग पैदा हुए। विकास (20) व अमन (18) हिल-डुल नहीं पाते। माता-पिता पर निर्भर हैं।
नाम क्या है? अश…र। कहां रहते हो, जेपी नगल। यूं तो अशअर की उम्र 10 साल है, लेकिन समझ बच्चे जैसी। यूका के सामने रहने वाले इस परिवार की भी तीन पीढिय़ां बीमार हैं। मां अफसाना राशिद बताती हंै, किडनी की बीमारी से सास की दो साल पहले मौत हो गई। ससुर गंभीर हैं। अशअर के पिता राशिद खान आंखों में जलन, सांस भरने सहित कई समस्याओं से जूझ रहे हैं।
गैस कांड स्मारक के सामने जल रही मोमबत्तियों से कुछ दूर आरती बेटे योगेश के साथ बैठी हैं। कहती हैं- दो साल बाद योगेश 12 का होगा तब दिल में छेद का ऑपरेशन कैसे होगा… फिर यादों में खोज जाती हैं… उस रात मम्मी मुझे गोद में लेकर भागी थी। उन पर गैस ने ऐसा असर डाला कि वे आज तक खांस रही हैं। मेरी भी संासे जल्दी भरती हैं तो आंखों में जलन बनी रहती है।
भोपाल. कोई कुछ भी सोच ले,लेकिन हमें दिखा देना है कि गैस पीडि़त झुकेंगे नहीं, न ही हारेंगे, अपने हक का आखिरी मुआवजा लेकर रहेंगे। यह बातें 34वीं बरसी पर जहरीली गैस कांड संघर्ष मोर्चा की ओर से निकाले कैंडल मार्च में कहीं गईं। सदस्यों ने रविवार शाम यूका के सामने स्मारक पर मोमबत्तियां जलाकर श्रद्धांजलि अर्पित की। जेपी नगर के पीडि़तों सहित अन्य मोमबत्तियां लेकर सिंधी कॉलोनी चौराहे तक गए।
भोपाल. तीन दिसम्बर की रात यूनियन काबाईड के टैंक नम्बर ई-6, 10 से रिसी 42 टन एमआइसी (मिथाइल आइसोसाइनेट) ने राजधानी के हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। इस दर्दनाक घटना के साथ दहशत खत्म नहीं हुई। एक ऐसा कारण यूनियन कार्बाइड परिसर में मौजूद था, जिसके चलते हादसे के 10 दिन बाद फैक्ट्री को फिर शुरू करना पड़ा। ऐसे में फैक्ट्री के सामने बसी बस्ती व आसपास की कई कॉलोनियों के रहवासियों को दोबारा गैस लीक होने के भय के चलते शहर छोडऩा पड़ा। नई पीढ़ी गैस कांड के बारे में तो जानती है, लेकिन ‘ऑपरेशन फेथÓ की जानकारी बहुत कम लोगों को हैं। घटना के अगले दिन सरकार ने वरिष्ठ वैज्ञानिक त्यागराजन को फैक्ट्री में जांच के लिए भेजा था उन्होंने पाया कि टैंक ई- 6, 11 में 35 टन एमआइसी मौजूद थी। इसे कहीं ले जाना या नष्ट करना कठिन था। इसके लिए फैक्ट्री को फिर चलाकर गैस का उपयोग कर खत्म करने का निर्णय लिया गया। 13 दिसंबर को विशेषज्ञों की निगरानी में ‘ऑपरेशन फेथÓ के तहत एक सप्ताह तक कीटनाशक ‘सेवनÓ का उत्पादन किया गया।
16 दिसम्बर 1984 को ‘ऑपरेशन फेथÓ शुरू किया गया था। तकनीकी रूप से इसे फैक्ट्री शुरू करना नहीं कहना चाहिए। दरअसल, इस गैस का उपयोग कर मंडरा रहे खतरे को खत्म किया गया था। उस समय लोग डर गए थे, लेकिन इसे पूरी सुरक्षा के साथ किया गया था। हमने लोगों को समझाइश दी। आखिर में यह ऑपरेशन सफल रहा था।
स्वराज पुरी, तत्कालीन एसपी भोपाल