ओनिर ने कहा कि मैं खुद पर गर्व महसूस करता हूं कि फिल्मों से जुड़े जो भी थोड़े बदलाव हुए हैं उसमें कहीं न कहीं मेरी भी भागीदारी रही है। मेरी पहली फिल्म ‘माई ब्रदर निखिल’ एक अलग तरह के विषय पर बनी थी। वहीं फिल्म ‘आई एम’ से क्राउड फंड मुहिम की शुरुआत की थी।
मेरी इस फिल्म के लिए 47 कंट्रीज के 400 लोगों ने मिलकर एक करोड़ रुपए दिए थे। इस फिल्म का बजट 1.5 करोड़ रुपए था। मुझे लगता है कि मैं हमेशा इन सब्जेक्ट्स को पहली बार किए जाने के लिए पहचाना जाऊंगा। भले ही मेरी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कुछ कमाल नहीं किया हो लेकिन मेरे काम को याद किया जाएगा। मेरे लिए यह मायने रखता है।
मैं अब फ्लोटिंग सेक्सुएलिटी में हूं
ओनिर ने बताया कि जब मैं 10वीं क्लास में था तब मुझे महसूस हुआ कि मैं गल्र्स और बॉयज दोनों में इंट्रेस्टेड हूं। फिर मुझे रियलाइज हुआ कि मैं लड़कों में ज्यादा इंट्रेस्टेड हूं। मैने सोचा कि मुझे डबल लाइफ नहीं जीनी है इसलिए मैंने कॉलेज के फस्र्ट डे में तय कर लिया कि मुझे लड़के पसंद हैं।
मुझे इस चीज से कभी भी साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम भी नहीं हुई। मैंने अपनी फैमिली या किसी बाहरी से भी झूठ नहीं बोला। ओनिर ने बताया कि एक वक्त में मेरा सोशल मीडिया पर स्टेटस था I am Gay and i refuse to be invisible लेकिन एक समय के बाद मैंने इसे हटा दिया। मैंने सोचा कि चलो बहुत हुआ सबको पता चल गया लेकिन मुझे लगता है कि अब मैं फ्लोटिंग सेक्सुएलिटी में हूं।
जिंदगी एक ही मिली है तो बिना डरे फैमिली से शेयर करें
ओनिर बताते हैं कि मेरी मम्मी 75 और पापा 85 के हैं लेकिन जब मेरे पेरेंट्स को फॉर्मली पता चला तब वे बोले हम तुम्हारे साथ हैं और हमें तुम्हारे साथ रहने में अ’छा लगता है। फैमिली बैकग्राउंड के हिसाब से यह एक्सेप्ट करने में कई बार समय लगता है। लोग Óयादा डिपेंड रहने के कारण हम अपनी फैमिली को इस बारे में नहीं बता पाते हैं। मेरा कहना है कि जिदंगी तो एक ही है, अगर सच नहीं बताओगे तो आप अपने साथ किसी लड़की की भी जिंदगी खराब करोगे।
‘आई एम’ की स्क्रिप्ट में किया था बदलाव
वर्ष 2009 में दिल्ली हाइकोर्ट ने जब 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया था। उस वक्त मैं फिल्म ‘आईएमÓ की शूटिंग शुरू करने जा रहा था। कोर्ट का फैसला के बाद मैंने स्क्रिप्ट में बदलाव किया क्योंकि इससे पहले हमनें स्क्रिप्ट के एंड में आर्टिकल-377 को क्रिमिनलाइज रखा था। फिल्म रिलीज हुई लेकिन वर्ष 2012 में जब इसे नेशनल अवॉर्ड मिला तब सुप्रीम कोर्ट ने इसे दोबारा क्रिमिनलाइज करार कर दिया।
नए टैलंट को मौका देने की कोशिश रहती है
मैं जब से इंडस्ट्री में हूं कोशिश करता हूं कि नए लोगों को भरपूर मौका दूं क्योंकि जब मैं बाहर से यहां आया था किसी ने मुझ पर विश्वास कर मौका दिया था। इसलिए मेरी कोशिश यही रहती है कि मैं नए टैलेंट को मौका दूं। मैं स्टार नहीं देखता, मेरी कहानी के लिए जो जरूरी हो उसे ही तवज्जों देता हूं।
असिस्टेंट बनने की शर्त पर राइटर ने दी थी स्टोरी
ओनिर ने बताया कि एक बार मैं मैं स्क्रिप्ट लैब में स्क्रिप्ट पढ़ रहा था, उस वक्त मेरे पास बहुत सी स्क्रिप्ट्स में से एक कहानी ‘कुछ भीगे अल्फाज’ की भी आई हुई थी। जब मैं यह पढऩे लगा तो मुझे काफी रोचक लगी। इसकी कहानी पढ़ते वक्त मेरे अंदर यह भी डर था कि पता नहीं जो राइटर है वह मुझे अपनी इस कहानी पर फिल्म बनाने देगा भी या नहीं।
मैंने राइटर अभिषेक चटर्जी को एक ईमेल भेजा था जिसमें मैंने लिखा कि क्या मुझे अपनी कहानी को डायरेक्ट करने का मौका देंगे? उनका जवाब तुरंत आया जिसमें लिखा था, मैं 6 महीने पहले आपके यहां बतौर असिस्टेंट काम मांगने आया था लेकिन आपने मना कर दिया था तो उसकी वजह है मैंने लिखना शुरू कर दिया था। अगर आप डायरेक्ट करेंगे तो मैं बहुत खुश हूं, लेकिन मुझे आपको बतौर असिस्टेंट रखना पड़ेगा।
वेब सीरीज के लिए मैं तैयार नहीं हूं
ओनिर बताते हैं कि अगर फिल्में चल जाए तो मैं उसे सिर पर नहीं लेता, वहीं अगर फिल्म नहीं चलती है तो मैं निराश नहीं होता। मेरी कई फिल्में हैं जो रिलीज तो हुईं मगर चली नहीं, लेकिन आज भी लोग उन्हें पसंद करते हैं। मेरी फिल्मों ने मुझे 2 नेशनल अवॉर्ड भी दिलवाए। ये बात सही है कि इन दिनों वेब सीरीज काफी चलन में है लेकिन मैं निजी तौर पर इसके लिए तैयार नहीं हूं। मेरा मानना है कि एक हॉल में 100 लोगों के साथ बैठकर फिल्म देखने का अहसास, एक मोबाइल फोन के स्क्रीन पर देखने के अहसास में जमीन-आसमान का अंतर होता है।
यू-ट्यूब पर भी पैसा लगाने पर ही मिलते हैं व्यूअर्स
ओनिर ने कहा कि 100 करोड़ की फिल्म 40 करोड़ का बिजनेस करे तो क्या वो कमर्शियल फिल्म है या 4 करोड़ की फिल्म 40 करोड़ का बिजनेस करे वो कमर्शियल फिल्म है। मेरा मानना है कि कमर्शियल जैसा कुछ है ही नहीं, अब होता है तो मेन स्ट्रीम और नॉन मेन स्ट्रीम फिल्म ही होता है।
जब मैंने ‘माई ब्रदर निखिल’ की थी तो उस वक्त उसे रिलीज करने के दौरान कोई दिक्कत नहीं आई थी। लेकिन अब जिस तरह से फिल्मों की मार्केटिंग और प्रमोशन किए जाते हैं वो मेरी समझ से बाहर है। आज मीडिया की ओर से इंडिपेंडेंट फिल्म मेकर्स को सपोर्ट नहीं मिल पाता है। लोग कहते हैं कि यू-ट्यूब पर रिलीज कर दो, मेरा कहना है कि यहां भी जब तक आप पैसा नहीं लगाओगे तब तक आपको व्यूअर्स नहीं मिलेंगे।