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कलियासोत डैम में दुर्लभ घडिय़ालों का अवैध शिकार

locationभोपालPublished: Feb 03, 2019 10:06:25 am

जाल में फंसाकर मारने की ट्रेनिंग लेकर आए कोलकाता से, कछुए आदि वन्यजीवों का भी हुआ शिकार….

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कलियासोत डैम में दुर्लभ घडिय़ालों का अवैध शिकार

भोपाल. राजधानी के कलियासोत डैम में अवैध मत्स्य आखेट की आड़ में दुर्लभ और लुप्तप्राय: वन्यजीव घडिय़ाल का शिकार किए जाने की बात सामने आ रही है। ऐसी आशंका होने पर भी वन, जल संसाधन और अन्य संबंधित विभाग इस ओर आंख मूंदे बैठे हैं। इस डैम में करीब चार दर्जन घडिय़ालों के अलावा दुर्लभ प्रजाति के कछुए और मोर आदि संरक्षित वन्यजीव रहते हैं, लेकिन संबंधित सरकारी विभागों को इनके संरक्षण से कोई मतलब नहीं दिखाई देता। मामला गरमाने पर वन विभाग के अधिकारियों ने प्रकरण दर्ज किए जाने की बात कही है।

वन विभाग के मैदानी सूत्रों और आसपास के लोगों की मानें तो कलियासोत डैम में इस समय चालीस से अधिक छोटे-बड़े घडिय़ाल मौजूद हैं। उपयुक्त जलवायु के चलते इनकी ब्रीडिंग से संख्या में इजाफा हो रहा है, लेकिन इसके साथ ही घडिय़ाल और कछुओं का आखेट भी किया जा रहा है। इस डैम में मत्स्य पालन विभाग की अनुशंसा पर नगर निगम ने 06 फरवरी 2014 को सुभाष रायकवार, अध्यक्ष नवीन मत्स्य उद्योग को आगामी दस वर्षों मत्स्य आखेट के लिए अधिकृत किया था।
25 अक्टूबर 2018 को यह डैम भोपाल कलेक्टर के आदेश से जिला पंचायत अधिकारी को सौंपे जाने पर नगर निगम ने नवीन मत्स्य उद्योग को दिया गया ठेका निरस्त करते हुए डैम जिला पंचायत को सौंप दिया। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसके बाद भी दिन और रात में ठेकेदार के लोग इस डैम में अवैध रूप से मत्स्य आखेट करते रहे।
घडिय़ालों का आखेट क्यों?
स्थानीय युवकों कुलदीप राणा और राशिद ने बताया कि ठेकेदार के आदमी डैम में रात को मछली पकडऩे के लिए जाल लगा जाते थे और सुबह कई बार उनके जाल टूटे मिलते थे। रात में घडिय़ाल सिंघाडा, संबल, रोहू जैसी कीमती मछलियों को खा जाता था और जाल भी तोड़ देता था, जिससे ठेकेदार का नुकसान होता था। स्थानीय लोगों ने बताया कि इससे निपटने के लिए ठेकेदार ने अपने एक करीबी आदमी को कोलकाता भेजकर स्पेशल ट्रेनिंग दिलवाई। घडिय़ालों के आखेट में करने का तरीका बहुत शातिर है। एक मजबूत जाल के बीच में एक बड़ी मछली रखकर उलझा दिया जाता है। फिर इस जाल को पानी के पास रख दिया जाता है। जैसे ही भूख घडिय़ाल मछली पर झपटता है और मछली को जाल से बाहर निकालने का प्रयास करता है, वह इसमें बुरी तरह फंस जाता है। मुंह फंस जाने पर घात में बैठे शिकारी उसे बांधकर गाड़ी में डालकर ले जाते हैं।
पूर्व में भी गई घडिय़ालों की जान
स्थानीय लोगों का कहना है कि मई 2009 में एक घडिय़ाल को जाल में फंसाकर मार डाला गया था, जिसे वन विभाग ने वहीं जला दिया था। अगस्त 2016 में भी इसी तरह एक वयस्क घडिय़ाल की जान गई थी। इसके सिवा कई घडिय़ालों का इसी तरह से आखेट बताया जा रहा है। स्थानीय सूत्रों ने यह भी बताया कि ठेकेदार के लोगों को कमला नगर पुलिस का संरक्षण प्राप्त था।
लाखों में होती है कीमत
घडिय़ाल की खाल और हड्डियों की अलग-अलग चीजें बनाई जाती हैं, जिसके चलते इनकी इंटरनेशनल मार्केट में कीमत लाखों रुपए होती है। घडिय़ाल की खाल से जूते, बेल्ट, जैकेट, पर्स आदि बनाए जाते हैं।
सरकारी विभागों को वन्यजीवों की फिक्र नहीं
299 एकड़ क्षेत्र में फैले कलियासोत डैम में अच्छी तादात में दुर्लभ घडिय़ाल और कछुए होने पर भी सरकारी विभागों ने कभी इसकी सुध नहीं ली। जल संसाधन विभाग, नगर निगम और जिला पंचायत ने कभी वन विभाग को डैम में मत्स्य आखेट के बारे में सूचित नहीं किया, जबकि जहां संरक्षित वन्यजीव हों, वहां कोई गतिविधि शुरू करने से पहले वन विभाग को सूचित किया जाना था और एनओसी ली जानी चाहिए थी। यहां आखेट करने वालों को भी खतरा था और घडिय़ालों को तो मारे जाने की बात सामने आ ही गई है। यहां पूर्व में मड कार रैली और अन्य आयोजन भी किए जाते रहे हैं, जिनपर जल संसाधन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने चुप्पी साध रखी है। उनपर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।

हम इस मामले में नगर निगम को नोटिस जारी कर रहे हैं। इसके साथ ही अज्ञात लोगों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया जा रहा है। मामले की गहराई से जांच की जाएगी और दोषियों के खिलाफ समुचित कार्रवाई की जाएगी। घडिय़ाल इंडियन वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 की अनुसूची-एक में संरक्षित दुर्लभ वन्यजीव है, जिसके आखेट गैर-जमानतीय अपराध है और इसमें 6 वर्ष तक सजा का प्रावधान है।
– डॉ. एसपी तिवारी, सीसीएफ
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