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भोपाल

… बरसात में बह गए घडिय़ाल, तीन हमारे पास, बाकी का पता नहीं

– घडिय़ाल के संरक्षण को लेकर वन विहार और वन विभाग दिखे उदासीन- 09 मगरमच्छ भी लापता, सेंट्रल जू अथॉरिटी को भेजी रिपोर्ट में जिक्र- पूर्व में मछली के जाल में फंस गया था घडिय़ाल का मुंह, किया रेस्क्यू- जलाशय नहीं, नदी में पाले जाने वाले साफ पानी के जीव हैं घडिय़ाल- घडिय़ाल के स्वस्थ जीवन और प्रजनन को जरूरी है रेतीला किनारा – तीन दशक पहले दस घडिय़ाल लाकर छोड़े गए थे वन विहार में

भोपालMar 19, 2020 / 05:26 pm

दिनेश भदौरिया

... बरसात में बह गए घडिय़ाल, तीन हमारे पास, बाकी का पता नहीं

… बरसात में बह गए घडिय़ाल, तीन हमारे पास, बाकी का पता नहीं

दिनेश भदौरिया
भोपाल. मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट ही नहीं, घडिय़ाल स्टेट का भी गौरवशाली तमगा पाने वाला राज्य है, फिर भी इस दुर्लभ और लुप्तप्राय जीव के संरक्षण को लेकर संबंधित अथॉरिटी और वन विभाग संवेदनशील नहीं दिखाई दे रहे। आलम यह है कि तीन दशक पहले वन विहार में चंबल सेंक्चुरी से लाकर छोड़े गए 10 घडिय़ालों में से इस समय सिर्फ तीन घडिय़ाल ही वहां बचे हैं। शेष के बारे में उन्हें न कुछ पता है और वन विभाग ने भी इन्हें तलाशकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। संबंधित अधिकारी कुछ घडिय़ालों के शिकार की आशंका से भी इनकार नहीं कर रहे। इन वर्षों में कितने घडिय़ाल बढ़े और कितनों का शिकार हुआ या मर गए, यह भी संबंधित विभाग को पता नहीं।

 

घडिय़ालों पर संकट 1980 के दशक में देखा गया, जब पूरे विश्व में 200 घडिय़ाल बचे थे। इनमें 96 घडिय़ाल भारत में थे और 46 घडिय़ाल मध्यप्रदेश की चंबल नदी में देखे गए थे। वर्ष 1983 में विश्वप्रसिद्ध जलीय जीव विशेषज्ञ ने नेशनल चंबल सेंक्चुरी प्रोजेक्ट शुरू कराया था। उनके अनुसार वर्ष 1985 में दस घडिय़ाल वन विहार, भोपाल को दिए गए थे। वर्ष 1995 में वन विहार को अभयारण्य का दर्जा मिला। वन विहार में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इस समय वहां सिर्फ तीन घडिय़ाल हैं, जिनमें दो घडिय़ाल पिछले साल कलियासोत डैम से रेस्क्यू करवाकर लाए गए हैं। वन विहार अथॉरिटी के अनुसार अप्रेल 2012 से मार्च 2013 तक वन विहार में आठ घडिय़ाल थे। मार्च 2015 तक 8 घडिय़ाल बताए जा रहे हैं। इसके बाद 06 मई 2015 को वन विहार ने सेंट्रल जू अथॉरिटी को रिपोर्ट भेजी कि अधिक बरसात होने के कारण पानी बाड़े से ऊपर होकर बहा, जिससे घडिय़ाल पानी के साथ पास की लेक में बहकर चले गए। इस तरह वर्ष 2018 में वन विहार में सिर्फ एक ही घडिय़ाल बचा।

वर्ष 2018-19 में कलियासोत डैम में मछली पकडऩे वाला जाल मुंह में उलझा हुआ घडिय़ाल दिखाई दिया था, जिसे वन विभाग इटावा, उत्तर प्रदेश की एक्सपर्ट टीम ने रेस्क्यू किया। उस समय दो घडिय़ाल रेस्क्यू कर यहां छोड़े गए। सेंट्रल जू अथॉरिटी को भेजी गई वन विहार की रिपोर्ट यह बताती है कि इस समय वन विहार से 9 मगरमच्छ और 7 घडिय़ाल कम हैं और यह पता नहीं है कि वे कहां हैं।

शिकार की बात भी आई…
लगभग एक वर्ष पूर्व जब कलियासोत डैम में घडिय़ाल के मुंह में मछली का जाल फंसा मिला था, तब इस बात का भी खुलासा हुआ था कि इस जलाशय में मछली पालन कराया जा रहा था। ठेकेदार के लोगों को शक था कि घडिय़ाल मछली पकडऩे के लिए रात में लगाए जाने वाले जाल को तोड़ देते थे और मछलियां खा जाते थे। घडिय़ालों को निपटाने के लिए इन मछुआरे के लोग कोलकाता से स्पेशल टे्रनिंग लेकर आए थे। सूत्रों ने बताया था कि जाल में मछली रख उलझाकर पानी के किनारे रखा जाता था और जैसे ही घडिय़ाल जाल से मछली निकालने की कोशिश करता, वैसे ही जाल में फंस जाता था और लोग गाड़ी में डालकर ले जाते थे। इस मामले में वन विभाग ने प्रकरण दर्ज तो किया था, लेकिन बाद में भूल गए।

 

एक्सपर्ट व्यू…
एक्वेटिक एनिमल्स के मामलों में इंटरनेशनल एक्सपर्ट और बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आरजे राव का कहना है कि घडिय़ाल जलाशय नहीं, नदी में पाले जाने वाले साफ पानी के जीव हैं। इनके स्वस्थ जीवन और प्रजनन के लिए साफ पानी का रेतीला किनारा चाहिए।


इस समय वन विहार में सिर्फ तीन घडिय़ाल बचे हैं। पूर्व में अधिक बरसात होने से वन विहार के मगरमच्छ और घडिय़ाल बह गए थे, जिसकी रिपोर्ट सेंट्रल जू अथॉरिटी को भेजी जा चुकी है। वन विहार से अभी तक 09 मगरमच्छ और 07 घडिय़ाल कम हैं।
– कमलिका मोहंता, डायरेक्टर, वन विहार

कलियासोत डैम में मगरमच्छ और घडिय़ाल हैं, लेकिन डैम वन क्षेत्र में नहीं होने के कारण विभाग उनकी गणना नहीं करता है।
– डॉ. रवीन्द्र सक्सेना, सीसीएफ, भोपाल वन वृत्त

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