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ईश्वर ने रोशनी छीनी, समाज से भी उपे​क्षित, न रोजगार, न ही मदद

- राजधानी सहित प्रदेश में करीब पचास हजार नेत्रहीन - मदद के नाम पर छह सौ रुपए महीना पेंशन - ब्रेल से साक्षर बने नेत्रहीनों की मांग, रोजगार दे सरकार

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भोपाल

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Shakeel Khan

Jan 09, 2025

brail day

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भोपाल . ईश्वर ने आंखों की रोशनी छीनी उस पर समाज और सरकार ने भी अकेला छोड़ दिया। हाल ये है कि एक दिन का गुजर बसर करने महज 20 रुपए की रकम दी जा रही है। ब्रेल लिपि के सहारे कई दृष्टिबाधित ने पढ़ाई लिखाई तो की लेकिन बेरोजगार घूम रहे हैं।
राजधानी सहित प्रदेश में करीब 50 हजार दृष्टिबाधित हैं। बच्चों की बेहतर पढ़ाई हो इसके लिए इन्हें सामान्य बच्चों के साथ प्रवेश देने का नियम बनाया गया। पढ़ाई के लिए इन्हें ब्रेल लिपि में किताबें दी गई। इन किताबों को पढ़ाने के लिए कई स्कूलों में स्पेशल टीचर नहीं है। दृष्टिहीनों की बेहतरी के काम कर रही कल्याण धारा जन सेवा समिति के पदाधिकारियों के मुताबिक ब्रेल ने साक्षर तो बना दिया गया, लेकिन शासन से रोजगार नहीं मिल रहा। सहायता के नाम पर सामाजिक कल्याण विभाग से हर माह 600 रुपए मिलते हैं। यानी एक दृष्टिबाधित पर 20 रुपए हर रोज। जो कि काफी कम है।

आरक्षण भी नाम मात्र


लखन लाल नरवरिया दृष्टिबाधित है। ब्रेल लिपि से ये ग्रेजुएशन कर चुके हैं। लेकिन नौकरी नहीं है। अब ओवरएज हो चुके हैं। यानि पढ़ाई लिखाई कोई काम नहीं आई, रोजगार की जरूरत है। पप्पू निशात पूरी तरह से नहीं देख पाते है। ब्रेल लिपि से कॉलेज स्तर पर शिक्षा पा चुके हैं। रोजगार के लिए प्राइवेट काम के भरोसे हैं। संस्थाओं में जो आरक्षण दिया गया वह भी नाम मात्र है।

ब्रेल लिपि से दृष्टिबाधितों को पढ़ाई में मदद मिली है। रोशनी न होने के बाद भी कई लोग साक्षर बन चुके हैं, लेकिन शासन स्तर पर सुविधाओं की कमी है। समाज को भी जागरूक होने की जरूरत है।
डॉ. हरगोविंद यादव, अध्यक्ष कल्याण धारा जन सेवा समिति

राजधानी सहित प्रदेश में कई दृष्टिबाधित पढे़ लिखे है लेकिन काम नहीं। संस्थानों में दिव्यांगों को जॉब के लिए आरक्षण हैं वह काफी नहीं। कई जगह यह दिखावा है। नियमों के तहत लोगों को नौकरी दी इसकी जांच कराने की जरूरत है।
अंकित शुक्ला, डिसेबल ट्रस्ट