कलाकारों ने गायन की शुरुआत मोरो सोचत मन पछताय… गीत प्रस्तुत कर की। इसके बाद मन भर जावे मेरो…, पूरव में पश्चिम की हवा और नदिया पेले पार ढोल… गीत प्रस्तुत कर सभागार में मौजूद श्रोताओं को अपने गायन कौशल से मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद कलाकारों ने रुनक-झुनक नाचत आवे और राम खो सुमरों, श्याम खो सुमरों गीत प्रस्तुत किए। उन्होंने वनरा चतुर सुजान और सांसी-सांसी तो बता गीत पेश कर प्रस्तुति को विराम दिया।
नृत्य-नाटिका अंतर्गत कथक नृत्य और असमिया लोक समूह नृत्य प्रस्तुत किया
अगली कड़ी में गुरु मरामी मेधी (असम) ने अपने साथी कलाकारों के साथ ‘आर्य’ नृत्य-नाटिका अंतर्गत कथक नृत्य और असमिया लोक समूह नृत्य प्रस्तुत किया। एक घंटे की यह प्रस्तुति आर्य देवी पर केंद्रित रही। नाटिका में दिखाया गया कि किस तरह मां आर्या की उत्पति हुई और किस तरह उन्होंने शुम्भ-निशुम्भ और महिषासुर का वध किया। प्रस्तुति की शुरुआत देवी स्तुति सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके… से की। इसके बाद जो आद्या देवी वो आर्य देवी है परमेश्वरी… पर नृत्य प्रस्तुत किया।
इस प्रस्तुति में मां आर्या के रूप को कलाकारों ने अपने नृत्य कौशल से मंच पर बिम्बित किया। नृत्यांगनाओं ने देवधानी नृत्य शैली के माध्यम से माता दुर्गा के रौद्र रूप को पेश किया। ओझा-पाली नृत्य शैली में शुम्भ-निशुम्भ और महिषासुर के वध को प्रस्तुत कर सभागार में मौजूद दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि… और या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता… स्तुतियों पर नृत्य प्रस्तुत करते हुए अपनी नृत्य प्रस्तुति को विराम दिया।