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Abdul Qavi Desnavi : जानिए इस शहर से कैसे जुड़ा इनका नाता, गूगल कर रहा सेलिब्रेट

locationभोपालPublished: Nov 01, 2017 05:40:37 pm

Submitted by:

sanjana kumar

भोपाल इतना पसंद आया कि इस शख्स ने कर दी थी शहर पर रिसर्च, जानें कैसे जुड़ा नवाबी शहर से इनका नाता…

Google Doodle, Google Doodle Celebrate, Abdul Qavi Desnavi, 87th birth anniversary

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भोपाल। मशहूर उर्दू लेखक और आलोचक अब्दुल कावी देसनावी को आज गूगल ने अपने डूडल पर याद किया है। पर क्या आप जानते हैं आखिर कौन हैं ये और भोपाल से इनका क्या नाता है…अगर नहीं तो आइए हम बताते हैं…

गूगल ने आज उर्दू लेखक और आलोचक अब्दुल कावी देसनावी का 87वां जन्मदिन मनाया। अपने होम पेज पर डूडल के लोगो पर कावी का पोस्टर लगाकर डूडल को अंग्रेजी के बजाय उर्दू लिपि में डिजाइन करवाकर देसनावी को अनूठे अंदाज में बधाई संदेश दिया है।

बिहार में जन्में इसलिए पड़ा देसनावी नाम

* देसनावी का जन्म बिहार के देसना में सन 1930 में हुआ।
* उनका नाम अब्दुल कावी है लेकिन देसना में जन्म लेने के कारण उनके नाम के आगे देसनावी हमेशा के लिए जुड़ गया।

मुंबई में पढा़ई, तो भोपाल में बीता जीवन

* आपको बता दें कि कावी देसनावी बिहार में जन्में जरूर लेकिन उनकी पढ़ाई मुंबई में पूरी हुई। इसका कारण था कि उनके पिता सईद रजा मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में प्रिंसिपल थे।
* यानी कावी देसनावी की जिंदगी का सबसे अहम दौर मुंबई में गुजरा।
* उन्होंने इसी कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की।
* ग्लैमरस दुनिया के रंगों से सजी मुंबई में ही उनका रुझान उर्दू की ओर हो गया।
* पढ़ाई पूरी करने के बाद कावी देसनावी नवाबी तहजीब और तमीज के शहर भोपाल में आ बसे।

चाचा रहते थे भोपाल

* आपको बता दें कि अब्दुल कावी देसनावी के चाचा सुलेमान भोपाल में रहते थे।
* चूंकि उनका उर्दू से लगाव भी बढ़ा तो वे अपने चाचा के साथ भोपाल आ गए।
* नवाबी तहजीब और तमीज का ये शहर उन्हें इतना रास आया कि वे फिर यहां से कहीं नहीं गए।

इतना पसंद आया भोपाल कि कर डाली रिसर्च

* अब्दुल कावी देसनावी को नवाबी तहजीब का शहर भोपाल इतना पसंद आया कि उन्होंने इस शहर पर रिसर्च कर डाली।
* आपको जानकर हैरानी होगी कि देसनावी ने भोपाल की रिसर्च पर दो किताबें लिख डालीं थीं।
* उन्होंने ही बताया था कि अल्लामा इकबाल और गालिब का भोपाल से कैसा नाता रहा।
* देसनावी ने भोपाल के बारे में जो रिसर्च की थी बाद में उसे दो किताबों की शक्ल दी गई।
* देसनावी ने अपनी रिसर्च को दो भागों में बांटा था. पहली किताब का नाम था ‘अल्लामा इकबाल और भोपाल’, दूसरी का नाम था ‘गालिब भोपाल’।

सियासत से हमेशा रहे दूर

* बताया जाता है कि वर्ष 1990 का समय वो समय था जब आरक्षण और रामजन्म भूमि के मुद्दे पर सियासत गरमाई हुई थी। लेकिन देसनावी सियासत से हमेशा दूर रहे।
* इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जाता है कि वे इन सियासती मुद्दों पर कभी कुछ नहीं बोले।

उनकी मेहमाननवाजी से खुश हो जाते थे लोग

* उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें मेहमाननवाजी बेहद पसंद थी। यही कारण था कि वे इतने अच्छे मेहमान नवाज साबित होते थे कि उनके साथ रोज-रोज बैठने वाला चाहे कोई शागिर्द हो या कोई और मेहमान खुश होकर ही अपने घर लौटता था।
* यही नहीं रोज आने वाला भी उनके घर में खातिरदारी में हर दिन नयापन ही महसूस करता था।

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* अब्दुल कावी देसनावी सिर्फ उर्दू भाषा के जानकार नहीं थे, बल्कि उस समय के जाने-माने लेखक भी थे।
* उर्दू साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें दुनियाभर में जाना जाता है।
* उनकी शख्सियत ही ऐसी है कि आज गूगल ने उनके जन्म दिवस पर उनके डूडल को दिखाकर दुनियाभर को उनकी याद दिला दी।
* देसनावी ने अब तक कई कई कृतियां लिखी हैं, इनमें हयात-ए-अबुल कलाम आजाद का उर्दू साहित्य में अलग ही स्थान है।
* ये किताब स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद के जीवन पर लिखी गई थी, जिसे वर्ष 2000 में प्रकाशित किया गया था।
* भोपाल के सैफिया कॉलेज में वे उर्दू विभाग के प्रमुख रहे।
* कई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय साहित्यिक समितियों के सदस्य के रूप में उन्होंने अपनी सेवाएं दीं।
* उन्होंने भारत में उर्दू साहित्य और शैक्षिक विचार के विकास के लिए खासा योगदान दिया।

* आपको जानकर हैरानी होगी कि बिहार के लोग आज भी यह कहते मिल जाएंगे कि हमारे कावी को भोपाल ने हमसे छीन लिया।
* इसका कारण चाहे जो भी हो, लेकिन भोपाल की तहजीब-तमीज की दुनिया में रम चुके कावी ने यहीं अंतिम सांस लीं।
* उन्होंने 7 जुलाई 2011 को 80 साल की उम्र में भोपाल में ही बफात पाई।

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