तत्कालीन शिवराज ने पार्क गठन के बाद से ही कोई बजट आवंटित नहीं किया। नई सरकार ने भी आने के बाद इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
पार्क के लिए बजट न मिलने से जैव विविधता बोर्ड न तो इनमें पैदा होने वाले विलुप्त प्रजातियों की वनस्पतियों को बचाने पर ध्यान दे पा रहा है ना ही उन वन्य प्राणियों को चिन्हित कर पा रहा है जो विलुप्ति के कगार पर हैं। 2010 में इन 11 पार्कों की शुरूआत की थी, जिसमें से तीन पार्क देवास जिले में बनाए गए।
विलुप्त प्रजाति को बचाने के लिए शोध कार्य भी अटका बजट नहीं मिलने से विलुप्त प्रजाति को बचाने के लिए होने वाला शोध कार्य भी अटका हुआ है, पार्क बनने के बाद से अब तक एक भी प्रजाति पर शोध कार्य नहीं हुआ। इसके अलावा इनकी प्रजातियों को भी अलग-अलग क्षेत्रों से लाकर पार्क में संरक्षित करना है। सरकार की अनदेखी के चलते ये पार्क अब जंगलों का हिस्सा बनकर रह गए हैं। इनमें प्राकृतिक रुप से उगने वाली वनस्पति ही हैं
देश में विलुप्त वन्य जीवों और पौधों को बचाने के लिए सबसे ज्यादा जैव विविधता पार्क प्रदेश में बनाए गए हैं। यह पार्क इंदौर, रीवा, बुरहानपुर, सागर, अनुपपुर, होशंगाबाद, शहडोल में एक-एक और उज्जैन में दो तथा देवास में तीन पार्क बनाए गए हैं। यह पार्क अभी वन विभाग और जैव विविधता बोर्ड के अधीन हैं। जबकि कर्नाटक और राजस्थान में तीन-तीन तथा अन्य राज्यों में एक से दो जैव विविधता पार्क बनाए गए हैं।
सतना और छिंदवाड़ा में बनाया विरासत स्थल सरकार ने सतना के नैराहिल्स और छिंदवाड़ा में पातालकोट में जैव विविधता विरासत स्थल बनाया है। यहां विलुप्त हो रही पौधों के संरक्षण का संरक्षण किया जाएगा। इसके साथ ही जंगलों में पैदा होने वाली जड़ी-बूटियों को सुरक्षित किया जाएगा। यह विरासत स्थल हाल ही में बनाए गए हैं। प्रदेश में 18 से अधिक पौधों की प्रजातियां विलुप्त बताई जाती हैं।
– आर. श्रीनिवास मूर्ति, सदस्य सचिव, जैव विविधता बोर्ड