आदिवासी किसानों को अश्वगंधा, तुलसी, एलोवेरा की खेती पर अनुदान दिया जाएगा। परंपरागत खेती से इतर औषधीय खेती से जोडऩे के लिए यह योजना शुरू की गई है। किसानों की आय में इजाफा करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है। इनके अलावा अतीश, कुठ, कुटकी, करंजा, कपिकाचु और शंखपुष्पी जैसे पौधों से आदिवासियों की जिंदगी बदल सकती है।
गेहूं के मुकाबले 10 गुना कमाई
किसान जब गेहूं या धान की खेती करते हैं तो महज 30,000 रुपये प्रति एकड़ से कम कमाई होती है। लेकिन, हर्बल खेती से औसतन साल में तीन लाख रुपए कमाए जा सकते हैं। हर्बल पौधों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाइयों और पर्सनल केयर उत्पाद बनाने में होता है। एक आंकलन के मुताबिक देश में हर्बल का कारोबार करीब 50,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें सालाना 15 फीसदी की दर से वृद्धि हो रही है। जड़ी-बूटी और सुगंधित पौधों के लिए प्रति एकड़ बुआई का रकबा अभी भी इसके मुकाबले काफी कम है।
आदिवासियों को मुख्य धारा में लाने के लिए उन्हें आर्थिक रुप से सक्षम बनाया जा रहा है। उसी कड़ी में उन्हें वन भूमि देकर हर्बल खेती करवाने का प्रयास किया जा रहा है। उनके उत्पाद को खरीदने की भी गारंटी देंगे। इस प्रस्ताव को जल्द ही कैबिनेट में रखा जाएगा।
उमंग सिंघार, वन मंत्री