राजाराम की नगरी ओरछा को बुंदेलखंड की अयोध्या माना जाता है। इस बार 10 अप्रैल रामनवमी को बेतवा नदी के तट पर लाखों दीप प्रज्वलित किए जाएंगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इस नगरी को दीपों से सुसज्जित करने का आव्हान किया है।
सीएम ने दिया इन्वीटेशन
मुख्यमंत्री ने कहा है कि भगवान श्रीराम के दरबार में प्राकट्य पर्व मनाएं और दीप प्रज्वलित करने के लिए नागरिक बंधु आमंत्रित हैं। ओरछा में रामनवमी पर जन-उत्साह का प्रदर्शन होने जा रहा है। इसके पहले उज्जैन में नागरिकों ने एक मार्च को महाशिवरात्रि के अवसर पर स्वत: स्फूर्त भावना से क्षिप्रा के घाटों और घर-घर में दीप जलाकर कीर्तिमान रच दिया था। चौहान ने कहा कि प्रदेश के नागरिक जिस भी कार्य में हिस्सेदारी करते हैं, उसके परिणाम बेहतर ही सामने आते हैं। विकास योजनाओं के क्रियान्वयन की बात हो या कोरोना महामारी से बचाव की सभी में जनता ने दृढ़ संकल्प से सफलताएं प्राप्त की हैं।
पांच लाख दीप जलेंगे
उल्लेखनीय है कि अयोध्या की तर्ज पर पूरे ओरछा में रामनवमी के दिन रामलला के जन्मोत्सव मनाया जाएगा। बेतवा के घाटों को 5 लाख दीपों से सजाया जाएगा। जिला प्रशासन ने इसकी तैयारियां भी शुरू कर दी है। ओरछा में रामनवमी पर भव्य दीपोत्सव मनाया जाना हैं।
यह भी है खास
हर घर में दीप जलाए जाएंगे, हर घर के बाहर रंगोली मनाई जाएगी।
पांच हजार वालिंटियर्स भी दीप जलाने के लिए सक्रिय रहेंगे।
प्रशासन घर-घर जाकर लोगों को न्योता दे रहा है।
50 हजार से अधिक लोग आ सकते हैं ओरछा
बेतवा नदी के किनारे 3 अप्रैल से चल रही है रामलीला
पीएम-राष्ट्रपति को नहीं मिलता गार्ड आफ ऑनर
यहां के राजा भगवान श्रीराम हैं। उन्हें तीन बार पुलिस के जवानों की ओर से सशस्त्र सलामी दी जाती है। इसके अलावा ओरछा परिकोटा के भीतर आने वाले कोई भी वीआईपी, वीवीआईपी को पुलिस गार्ड आफ ऑनर नहीं देती है। यहां तक कि देश के प्रधानमंत्री से लेकर कोई भी आ जाए, यहां सिर्फ रामराजा सरकार की ही चलती है।
ओरछा के लिए क्या है रामनवमी का महत्व
पूरी दुनिया में रामनवमी के दिन श्रीराम जन्मोत्सव मनाया जाता है, लेकिन ओरछा में इसका महत्व दोहरा हो जाता है। संवत 1631 में ओरछा की महारानी कुंअर गणेश ने रामराजा सरकार को अयोध्या से ओरछा लाकर इसी दिन राजा के रूप में विराजमान कराया था। बुंदेला शासकों की नगरी ओरछा का राम राजा मंदिर देश का इकलौता मंदिर है, जहां रामलला राजा के रूप में विराजमान हैं। यहां भक्त और भगवान के बीच राजा और प्रजा का संबंध है। यह देश का पहला ऐसा मंदिर है, जहां पर राजा के रूप में रामराजा सरकार को तीन समय सशस्त्र सलामी (गार्ड आफ ऑनर) दी जाती है। यहां पर राजसी परंपराएं भी पूरी तरह से निभाई जाती हैं।
यह है पौराणिक मान्यता
इस मंदिर के प्रधान पुजारी रमाकांत शरण महाराज कहते हैं कि संवत 1631 में बुंदेला शासक महाराजा मधुकर शाह की पत्नी महारानी कुंअर गणेश श्रीराम को अयोध्या से ओरछा लाई थी। राजा कृष्ण उपासक थे और रानी राम की की उपासक थीं। राजा और रानी दोनों में अपने इष्ट की उपासना को लेकर मतभेद रहते थे। एक दिन ओरछा के राजा मधुकर शाह ने अपनी पत्नी से कृष्ण उपासना के लिए वृंदावन चलने के लिए कहा। लेकिन रानी तो राम की भक्त थीं। उन्होंने वृंदावन जाने से इनकार कर दिया। इस पर गुस्साए राजा ने उनसे कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ।
इसके बाद रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना करने लगी। रानी को कई माह तक राम के दर्शन नहीं हुए। निराश होकर वे अपने प्राण त्यागने के लिए नदी की तेज धारा में कूद पड़ीं। यहीं नदी की गहराइयों में उन्हें बाल रूपी राम के दर्शन हो गए। इसके बाद बाल रूपी राम को वो अपनी गोद में लेकर बेहद प्रसन्न हुईं। उन्होंने राम से ओरछा चलने का निवेदन किया। तब राम ने ओरछा जाने के लिए तीन शर्त रखी। पहली वे स्वयं वहां के राजा होंगे। दूसरी राजशाही पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। तीसरी अपने राज्य का अधिक विस्तार नहीं होने देंगे। इससे भी बड़ी शर्त यह थी कि वे ओरछा तक का सफर रानी की गोद में ही करेंगे। इसके बाद रानी श्रीराम को पुष्य नक्षत्र में लेकर आ गईं।
फिर बनवाया चतुर्भुज मंदिर
रानी राजा को संदेश भेजा कि वे रामराजा के लिए चतुर्भुज मंदिर बनवाना शुरू करें। मंदिर भव्य बन रहा था, लेकिन वक्त अधिक लग रहा था। इसलिए ऐसा मंदिर बनवाया जा रहा था कि जैसे ही रानी अपने कक्ष से बाहर निकले, तो भगवान श्रीराम के दर्शन हो जाएं। 1631 में मंदिर का निर्माण पूरा होने वाला था, रानी ने रामलला की मूर्ति अपने महल की रसोई में रख दी थी। यह निश्चित हुआ कि शुभ मुहूर्त में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। जब मंदिर पूरा तैयार हो गया, मुहूर्त भी निकल गया, ऐसे में राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया। क्योंकि राम ने पहले ही शर्त रख दी थी कि वे जहां बैठ जाएंगे वहां से नहीं उठेंगे। राम वहां से उठे नहीं और उनके लिए बनाया गया चतुर्भुज मंदिर खाली रह गया। आज भी वो उसी स्थिति में नजर आता है।