पर्यावरण के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 22 अप्रैल को वर्ल्ड अर्थ-डे मनाया जाता है। मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा है. कम होती हरियाली और बढ़ता तापमान इसका मुख्य कारण है। मौसम में हर साल बदलाव होने से फसल चक्र पर भी बुरा असर पड़ रहा है। इसलिए अब किसान भी सावधानी बरतने लगे हैं. ऐसी फसल लगाने पर ध्यान दिया जा रहा है जिसमें पानी की कम आवश्यकता हो और बढ़ते तापमान का भी कोई ज्यादा असर नहीं पड़े।
खासतौर पर ग्वालियर और चंबल के किसानों ने ऐसी फसल बडे पैमाने पर लगाना शुरू कर दिया है। यहां बिच्छू घास की खेती की जा रही है। यह एक प्रकार का जंगली पौधा है जिसे छूने पर करंट जैसा अनुभव होता है। यही कारण है कि इसे बिच्छू घास कहते हैं। इस खरपतवार का कुछ साल पहले तक कोई मोल नहीं था। कोरोना से पहले तक इसे एक सामान्य घास ही समझा जाता था, लेकिन कोरोना में सभी ने इसके आयुर्वेद महत्व को जाना।
दरअसल इसमें एंटी ऑक्सीडेंट तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए अब इसकी बाकायदा खेती की जा रही है। बिच्छू घास से हर्बल चाय भी बनने लगी है. इतना ही नहीं, इसके घास युक्त रेशे से धागा भी तैयार होने लगा है। इस धागा से अब ऑर्गेनिक कपड़े बनने लगे हैं।
क्षेत्र के कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिक और कृषि अधिकारी भी इसके खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।