इसका सीधा असर पयार्वरण में असंतुलन, गिरते जलस्तर और बढ़ते तापमान के रूप में सामने आ रहा है। जिस तरह के विकास कार्य यहां चल रहे हैं, उसे देखते हुए आगामी वर्षों तक पेड़ों की कटाई अगले कुछ वर्षों तक रुकने की स्थिति नजर नहीं आती।
हरियाली पर कई संस्थाओं की रिचर्स सामने हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलूरु की रिपोर्ट तो बताती है कि यहां के हालात नहीं सुधरे तो 2030 तक कोलार में हरियाली 4.10 प्रतिशत से भी कम रह जाएगी। दो दशक में 44 फीसदी पेड़ काटे गए हैं। कोलार इलाके में कहीं भी पेड़ नहीं बचे हैं, जहां कुछ पल गुजार सकें।
खाली जगह में पौधे लगा दें तो आगे मिलेगा लाभ
हरियाली से जुड़े आंकड़े सेटेलाइट सेंसर से जुटाए गए हैं। मप्र विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी परिषद ने भी इसमें महती भूमिका निभाई। विशेषज्ञों का भी कहना है कि पौधरोपण के साथ जल संरक्षण के उपायों को बढ़ाना ही पड़ेगा। कोलार में बीते सालों में हरेभरे नजर आने वाले क्षेत्र सूख चुके हैं।
अब ये सूखे इलाके कहलाते हैं। आप कोलार मुख्यमार्ग पर ही देखें तो आपको धूप से बचने कोई पेड़ नजर नहीं आएगा। जबकि यहां किनारे पर काफी खाली जगह पड़ी है। सर्वधर्म से लेकर ललिता नगर और गेंहूखेड़ा तक सड़क किनारे सघन पौधरोपण कर दिया जाए तो आगामी तीन से चार साल में बड़े पेड़ विकसित हो सकते हैं। ये सड़क भी लिंक रोड की तरह हरी भरी सड़क बन जाएगी।
अभी भी बचा सकते हैं
रिसर्च बताती है कि कोलार के तापमान में पिछले 12 साल में आठ प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यहां कलियासोत समेत नहरों के किनारे पर हुए अतिक्रमण से भी हरियाली में कमी आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि भोपाल में शहरीकरण को हरियाली की कीमत पर बढ़ावा दिया जा रहा है।
वनाच्छादित क्षेत्र के कम होने की मुख्य वजह अनियोजित शहरीकरण है। हालात ज्यादा खराब होने से पहले हम खुद को बचा सकते हैं। कोलार समेत भोपाल आज भी अन्य शहरों के मुकाबले हरियारली के मामले में बेहतर स्थिति में है, जिम्मेदार विभाग बिल्डर व टाउन प्लानर्स को टारगेट देकर उनके प्रोजेक्ट में हरियाली बढ़ाने को कहा जाए और इसका सख्ती से पालन कराया जाए।
पर्यावरणविद् विनोद शर्मा बताते हैं कि जहां पेड़ होने और न होने की जगहों के तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस का अंतर होता है। पेड़ घने हो तापमान का अंतर बढ़ भी जाता है।