प्र देश का स्वर्ग कहा जाने वाला पातालकोट 79 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। इसमें 12 गांव बसे हैं। यहां सैकड़ों वर्ष से भारिया आदिवासी निवास कर रहे हैं। डोंगरा की ओर से गांव चिमटीपुर में फूली बाई, संतरीबाई, सावित्रीबाई, गुजरवती बाई और भूरालाल उइके बोले, यहां सबसे बड़ी समस्या पानी की है। हम नाले और कुएं का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं। रोजगार के कोई साधन नहीं हैं। लकड़ी बेचकर गुजारा करते हैं। इसके लिए 20 किलोमीटर दूर छिंदी जाने-आने में दिनभर लग जाता है। एक ग_ा 50 से 60 रुपए में बिकता है। इसी बीच फूली बाई ने कहा, महीने में डेढ़ सौ रुपए पेंशन मिलती है। पेंशन लेने के लिए 30 रुपए किराया लगाकर छिंदी जाना पड़ता है। रातेड़ के रास्ते में एक घर में कई लोग बैठे हैं।
दुर्ग पाल ने कहा, बिजली का बिल ज्यादा आता है। डिवलू भारती बोले, अभी कुएं से पानी मिल रहा है। ये गर्मी में सूख जाता है। रातड़े की राशन दुकान पर बैठे तलाबढाना के पुन्नू और सोनू ने कहा कि हम नाले में झिरिया बनाकर पानी भरते हैं। डोंगर सिंह और सावन शाह ने कहा, कोई बीमार हो जाए तो इलाज कराने छिंदी जाना पड़ता है। फूलसिंह बोले, घर में बिजली का कनेक्शन नहीं है, फिर भी बिल आ रहा है। इसी बीच राशन लेने आई महिलाएं बोलीं, रोजगार के कोई संसाधन नहीं हैं। हम तो मजदूरी करने पिपरिया और होशंगाबाद तक जाते हैं।
रातड़े गांव में चर्चा के दौरान पता चला कि यहां के लोगों को विधायक का नाम तक मालूम नहीं है। लोगों ने कहा, विधायक पातालकोट क्षेत्र में कभी नहीं आए। हां, हमें मतदान केंद्र तक ले जाया जाता है और वोट डलवाया जाता है। पातालकोट के आधे से ज्यादा गांवों में बिजली है। सड़कें भी हैं, स्कूल और आंगनबाड़ी बन रही हैं। कई लोगों को प्रधानमंत्री आवास सहित कुछ और योजनाओं का भी लाभ मिला है। छिंदी स्वास्थ्य केंद्र तो है, लेकिन डॉक्टर नहीं है। लोगों का कहना है कि यहां डॉक्टर, फार्मासिस्ट और स्वीपर की नियुक्ति की गई है, लेकिन डॉक्टर कभी नहीं आते। फार्मासिस्ट ही इलाज करते हैं। फार्मासिस्ट नहीं हो तो स्वीपर ही इलाज कर देता है। दूसरी ओर परासिया विधानसभा क्षेत्र की बुदलापठार ग्राम पंचायत की बात करें तो इसमें जामुनबर्रा, कोंडरा और सुठिया गांव आते हैं।
जामुनबर्रा के रमेश नागवंशी बोले, पीने के पानी के लिए एक बोर है जो कुछ समय ही चलता है। हम गर्मी में नाले का मटमैला पानी पीते हैं। पिछले एक व्यक्ति की पानी न मिलने से मौत हो गई थी। यहां से तीन किलोमीटर आगे बुदलापठार गांव में शांताबाई, रूसमति बाई, रमेश और सोनू ने बताया कि यहां सड़क और पानी की समस्या है। घरों में शौचालय बन गए हैं, लेकिन पानी नहीं होने के कारण लोग बाहर जाते हैं। इस गांव में लोग अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहते हैं। नदी-नाले को पार कर पढ़ाई के लिए पगारा जाना पड़ता है। वन ग्राम कोल्हूखेड़ा के निवासियों ने चुनाव बहिष्कार की घोषणा तक कर दी है।