यहां बड़ी संख्या में आबादी विधायक चुनती है बैरसिया का और काम के लिए उन्हें मुंह देखना पड़ता है नगर सरकार का। चार साल पहले हुए परिसीमन के बाद ये क्षेत्र शहरी क्षेत्र में शामिल तो हो गया, लेकिन विकास का पहिया थम गया। न तो यहां की सड़कें अच्छी हैं, न यहां पानी के पुख्ता इंतजाम।
थोड़ा और आगे बढऩे पर पड़ता है लाम्बाखेड़ा। यहां की स्थिति देखने से तो लगता ही नहीं है कि ये शहरी क्षेत्र में भी शमिल हो गया है। सड़क तो सिर्फ नाम के लिए है। लाइट भी जब मर्जी आती जाती रहती है। घर के बाहर खड़े हरेकृष्ण बताते हैं कि ये तो बरसात के बाद पानी सूख गया है तब की स्थिति है।
बर्ना यहां की सड़कों से निकलना भी दूभर है। चौकसे नगर में भी कुछ सड़कें आज तक नहीं बनी। शहरी क्षेत्र में शामिल तो कर लिया, लेकिन आज तक नगर निगम ने इसे हैंडओवर तक नहीं किया। इस कारण यहां आज भी विकास चुनावों में बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
अनुमतियां लेने जाना पड़ता है 40 किलोमीटर दूर बैरसिया
जिला प्रशासन से संबंधित अगर कोई अनुमति यहां के रहवासियों को चाहिए तो उन्हें हुजूर तहसील से बैरसिया भेज दिया जाता है। ताजा उदाहरण चंद दिन पहले का है, चल समारोह निकालने के लिए लाम्बाखेड़ा निवासी नारायन सिंह हुजूर तहसील से अनुमति लेने आए थे।
उन्हें ये कहकर वापस कर दिया कि बैरसिया से मिलेगी। काफी जद्दो जगह के बाद एक अनुमति यहां से ले जाने में सफल हो गए, लेकिन बाद की अनुमति नहीं जारी कीं।
विश्वास सारंग गए थे पार्षद के पक्ष में वोट के लिए
पार्षद के चुनावों में मंत्री विश्वास सारंग भी यहां वोट के लिए पार्षद के पक्ष में जा चुके हैं। इससे लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है कि वोट किसे दें। रमेश कुमार का कहना है कि जब से पंचायत में था तब ठीक था, लेकिन जब से शहरी क्षेत्र से जोड़ दिया तभी से मामला उलझ गया। न इधर के रहे न उधर के। पार्षद स्थानीय विधायक से कम ही तालमेल रखता है।
शहरी क्षेत्र से अलग है बैरसिया
बैरसिया विधानसभा में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने अस्पताल की घोषणा की, लेकिन बैरसिया में ही बिल्डिंग बनी, लेकिन डॉक्टर आज तक नहीं पहुंचे। जिला पंचायत कार्यालय में होने वाली बैठकों में पंचायत सदस्य अक्सर अस्पताल की खराब व्यवस्था का मुद्दा उठाते रहते हैं।
इसके बाद भी वहां किसी का ध्यान नहीं है। स्कूलों की स्थिति में कुछ सुधार आया है, लेकिन शिक्षा का स्तर आज भी नहीं सुधरा। विधानसभा क्षेत्र में बना स्टेडियम भी घटिया निर्माण सामग्री के कारण चर्चा में आ चुका है। बैरसिया की सड़कें जरूर केंद्र और कुछ राज्य की योजना में आने के कारण दुरुस्त हो गईं। वर्ना कई साल तो लोगों ने धूल भरा सफर ही तय किया है।
ये बात सही है कि परिसीमन के बाद चौकसे नगर, शारदा नगर, लाम्बाखेड़ा शहरी क्षेत्र में शमिल हो गए हैं, लेकिन आते बैरसिया में हैं। हमनें कुछ जगह काम कराए हैं, लेकिन चौकसे नगर में आज भी कुछ सड़कों पर काम होना है। अभी ये नगर निगम के हैंडओवर भी कराना है, कमिश्नर से बात हुई है। पार्षद के चुनावों में विश्वास सारंग भी आए थे समर्थन में।
विष्णु खत्री, भाजपा विधायक बैरसिया
जब से ये क्षेत्र शहरी क्षेत्र में शामिल हुआ है विकास तो यहां से रूठ गया है, पार्षद ने भी काम नहीं कराए। सिर्फ कुछ नई कॉलोनियों को छोड़कर सड़कें सिर्फ नाम के लिए बची हैं। हद तो ये है कि शहरी क्षेत्र में आने के बाद भी जिला प्रशासन के अनुमतियों के लिए बैरसिया जाना पड़ता है। मैं तो लड़झगड़ के चल समारोह की अनुमति ले आया, बाकी किसी को नहीं दी।
ममता, नारायण सिंह गौर, पूर्व सरपंच
बड़ी समस्या
१. शारदा नगर का नाला-
पलासी से शारदा नगर का बड़ा नाला-नक्शे में ३० फिट चौड़ा है, इसमें जेल का पानी भी आता है। बरसात में शारदा नगर से समस्या शुरू हो जाती है।
२. पीने के पानी की समस्या: नगर निगम ने टंकी रखवाईं, लेकिन पानी हफ्ते में एक दो बार आता है। लोग निजी बोर के भरोसे।
३. स्ट्रीट लाइट-सड़कों पर स्ट्रीट लाइट के खंबे लगे हैं, लेकिन लाइट नहीं लगीं, रात होते ही अंधेरा छा जाता है।
४. बिजली-शहरी क्षेत्र में शामिल तो हो गया, लेकिन लाइट का फीडर आज भी ग्रामीण क्षेत्र से है। जब मर्जी आए तब लाइट काट दी।
मतदाता संख्या-
बैरसिया-
पुरुष-110369
महिला-98147
थर्ड जेंडर-5