इस लैब का निर्माण 2009 में किया गया था। इसके लिए 10 लाख रुपए के पॉलीमर चेन रिएक्शन (पीसीआर) व अन्य उपकरण खरीदे गए। लेकिन एक्सपर्ट डॉ. विमल शर्मा के रिटायर होने के बाद यह लैब बंद पड़ी है। इस लैब का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जहर की फ ौरन जांच कर मरीज को सटीक उपचार दिया जा सकता है।
मामले में मेडिको लीगल संस्थान के डायरेक्टर डॉक्टर अशोक शर्मा बताते हैं कि टॉक्सिकोलॉजी लैब नहीं होने से पीएम रिपोर्ट में दिक्कत तो आती है। ऐसे मामलों में हमारे पास बिसरा जांच के लिए सागर लैब भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यहां जांच हो तो एक दिन में रिपोर्ट मिल जाए।
सबसे बड़ी दिक्कत जहर खाए मरीज के उपचार में होती है। हमीदिया अस्पताल के मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ. टीएन दुबे के मुताबिक हर जहर का इलाज अलग होगा है। ऐसे में जांच के बाद जहर का पता चलने पर इलाज करना आसान हो जाता है। लेकिन जांच नहीं होने पर मरीज के लक्षण के आधार पर इलाज करना पड़ता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक जहर हीमोटॉक्सिक और न्यूरोटॉक्सिक होते हैं। दोनों तरह के जहर में इलाज एक दूसरे से भिन्न होता है। जहर का इलाज भी जहर से ही होता है, ऐसे में गलत इलाज मरीजों की जान भी ले सकता है।
– सांप काटने का जहर
– किसी तरह का केमिकल
– दवा का ओवरडोज
– किसी अन्य कीड़े काटने से फैला जहर
-आत्महत्या के लिए इस्तेमाल जहर