ऐसे में अगर देखा जाए इस समय मध्य प्रदेश का राजनैतिक कैंन्द्र है मंदसौर, जहां पिछले साल भड़के किसान आंदोलन के ठीक एक साल बाद कांग्रेस को किसानो से एक बार फिर हमदर्दी दिखाने का मौका मिला है और कांग्रेस को यह बात बखूबी पता भी है कि, ये मौका अगर कोई जिता सकता है तो वो किसान ही है, इसलिए कांग्रेस इस मौके के लिए कोई ढील छोड़ने के मूड में नहीं है और किसान संगठनो द्वारा 6 जून को पुलिस गोली बारी में मारे गए 6 किसानो की शहादत मनाने वाले दिन किसानो को समर्थन देते हुए एक बड़ी सभा और रैली का आयोजन किया। इस बात से आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं कि, आंदोलन को भुनाने के लिए मध्य प्रदेश कांग्रेस के लगभग सभी दिग्गज नेता तो सभा स्थल में शामिल थे ही, साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद भी इस आयोजन को सफल बनाने के लिए मैदान में कूद गए।
वैसे प्रदेश की राजनीति में एक और नाम काफी सक्रीय होने लगा है, जो कहीं न कहीं एक बार फिर कांग्रेस को ही लाभ दिलाने की कोशिश करेगा और वो नाम है हार्दिक पटेल। इसके तहत हार्दिक 7 जून को जबलपुर और 8 जून को सतना दौरे पर है, जहां उनका लक्ष्य पाटीदार समाज को सरकार की ख़ामियां गिनाना है। इससे पहले भी हार्दिक सागर और भोपाल में सभाएं करके पाटीदार समाज को सरकार के ख़िलाफ साध चुके हैं। जैसे हार्दिक गुजरात की राजनीति में कांग्रेस के हितेशी के रूप में देखे गए, वैसे ही मध्य प्रदेश में भी हार्दिक को कांग्रेस के नज़रिए से गेम चेंजर के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, बड़ा सवाल यह ही है कि, क्या हार्दिक सचमुच मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए गेम चेंजर साबित होंगे?
मंदसौर की बात करते करते मेने हार्दिक पटेल का जिक्र इसलिए भी किया क्योंकि, मध्य प्रदेश का मंदसौर जिला पाटीदार बाहुल जिला माना जाता है। इस ज़िले को जनसंघ के ज़माने से ही आर एस एस का गढ़ माना जाता आ रहा है। मंदसौर से पाटीदार समाज का पुराना रिश्ता रहा है। राजनैतिक समीकरण के ज्ञानियों की माने तो,मध्य प्रदेश की 220 में से 50 ऐसी सीटें हैं जिन पर पाटीदार वोटों का असर पड़ सकता है, हालांकि, इसमें सीधी तौर पर फायदा कांग्रेस का ही है।
जनसंघ के मालवा इलाके में लोकसभा चुनाव जीतना राजनीतिक पंडितों के लिए कोई हैरान करने वाला नहीं था. दरअसल, 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना के समय से ही मंदसौर और नीमच सहित पूरे मालवा अंचल में संघ का काफी दबदबा रहा है। 1980 में भारतीय जनता पार्टी के गठन के बाद से मालवा इलाके में कमल निरंतर खिलता रहा। बीजेपी से दूरी की दूसरी वजह राज्य सत्ता में पाटीदार समाज के नेताओं को तरजीह नहीं मिलना भी रहा है। बता दें कि, मालवा के भाजपा के गढ़ में पाटीदारों की आबादी करीब ढाई से तीन लाख हैं, वहीं प्रदेश में उनकी कुल आबादी करीब 60 लाख बताई गई हैं। ऐसे में कांग्रेस अगर प्रदेश में पाटीदार कार्ड खेलती है तो उसे समझदारी भरा फैसला ही माना जाएगा।