पर्यावरणविद सुभाष सी पांडेय ने जनता लैब के माध्यम से यह जांच की है। पांडेय अब मामले में एनजीटी में केस फाइल करने जा रहे हैं। दरअसल रेलवे ओवरहेड इलेक्ट्रिक (ओएचई) लाइन होने के बाद भी जेनरेटर कार का उपयोग ट्रेनों में किया जा रहा है। शताब्दी, राजधानी एक्सप्रेस सहित अन्य ट्रेनों में दो जेनरेटर कार लगी हैं। इनका उपयोग एसी चलाने के लिए किया जाता है।
सोमवार को दोपहर 2 बजे शताब्दी एक्सप्रेस के आने के पहले और बाद में वायु प्रदूषण की जांच के लिए जनता की लैब हबीबगंज स्टेशन पहुंची। ट्रेन आने के बाद ध्वनि और वायु प्रदूषण मापा तो यह दोगुना अधिक पाया गया। ट्रेन आने के पहले ध्वनि प्रदूषण 55 डेसीबल दर्ज किया गया। वहीं ट्रेन आने के बाद यह 110 डेसीबल मिला।
जनरेटर पैदा कर रहे कानफोड़ू आवाज
वर्तमान में कई अत्याधुनिक तकनीक वाले ऐसे जनरेटर सेट भी आ रहे हैं जिनसे न तो वायु प्रदूषण अधिक होता है और नही ध्वनि प्रदूषण, लेकिन ट्रेन में उपयोग किए जा रहे जेनरेटर कानफोड़ू ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं।
स्वास्थ्य पर घातक असर
पीएम 2.5 की अधिकता से कार्डियो वेसकुलर बीमारियां, अस्थमा, चर्म रोग, आंखों के रोग होने का खतरा रहता है। ध्वनि प्रदूषण दोगुना होने से कान के पर्दे खराब हो सकते हैं। 5 वर्ष से कम और 75 वर्ष से अधिक के वृद्धों के लिए यह खतरनाक है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
विशेषज्ञ डॉ.सुभाष सी पांडेय के मुताबिक, नई तकनीक का प्रयोग करने की बात कह रहा है , लेकिन आज भी ट्रेनों में पुराने जमाने के जेनरेटर कार का उपयोग किया जा रहा है। सोमवार को जनता की लैब ने हबीबगंज स्टेशन पर शताब्दी के जेनरेटर से होने वाले प्रदूषण की जांच की। इसमें दोगुना तक प्रदूषण मिला है।