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2030 तक सबसे बड़ी बीमारी होगी अवसाद, ज्यादा प्रभावित हैं बच्चे

locationभोपालPublished: Oct 10, 2019 01:55:53 am

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस आज: इस बार की थीम है सुसाइड प्रिवेंशन

2030 तक सबसे बड़ी बीमारी होगी अवसाद, ज्यादा प्रभावित हैं बच्चे

2030 तक सबसे बड़ी बीमारी होगी अवसाद, ज्यादा प्रभावित हैं बच्चे

भोपाल. एक सामान्य इंसान अगर सोचने, समझने, समाज के साथ तालमेल बिठाने का सामथ्र्य नहीं रखता है, तो अक्सर कहा जाता है कि उसका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। हमारे देश में यदि किसी का मानसिक स्वास्थ्य खराब है, तो उसे पागल की संज्ञा दे दी जाती है। एक्सपट्र्स का कहना है कि काम के तनाव और बदलती जीवन शैली के बीच मानसिक अस्वस्थता तेजी से आम लोगों को अपना शिकार बना रही है। मानसिक विकार एक बीमारी की तरह है, इसके मरीज को भी इलाज की जरूरत होती है।
10 अक्टूबर को विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पत्रिका प्लस ने शहर के मनोचिकित्सकों से बात कर जाना कि आखिर मानसिक स्वास्थ्य कैसे सही रखा जा सकता है। कैसे इसकी पहचान कर उपचार हो सकता है।
इस तरह कर सकते हैं मदद
– बच्चों के इमोशन को समझना बहुत जरूरी है। उसे महसूस होना चाहिए कि पैरेन्ट्स उसकी केयर करते हैं।
– टीचर्स को भी स्टूडेंट्स की असामान्य गतिविधियों पर अटेंशन करना चाहिए।
– बच्चों के साथ बैठकर उनकी दिनचर्या के बारे में जानें। अपनी लाइफ को भी उनके साथ शेयर करें।
– यदि बच्चे अपने साथ हुई किसी घटना के बारे में बताएं, तो उसे अपमानित न करें, झूठा न ठहराएं।
– यदि बच्चा तनाव में है या स्कूल जाने से मना करे, तो काउंसलर की मदद लें।
कैसे करें पहचान
– यदि कोई व्यक्ति अचानक दूरी बना ले। व्यवहार में परिवर्तन आ जाए।
– यदि वह बहुत ज्यादा या बहुत कम खाना खाए।
– यदि वह लगातार रात-रात भर जाग रहा हो।
– यदि व्यक्ति खुद को गिल्ट महसूस कर रहा हो।
– यदि व्यक्ति खुद को अकेला और असहाय महसूस करे।
16 प्रतिशत बच्चे व किशोर हो रहे शिकार
विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल पर 1992 में ये दिन मनाने की शुरुआत हुई। जिससे दुनिया भर में लोगों के जीवन पर मानसिक बीमारी और उसके प्रमुख प्रभावों पर ध्यान दिया जा सके। साल 2019 में आत्महत्या की रोकथाम विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर फोकस रखा गया है। डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि 2030 तक अवसाद सबसे बड़ी बीमारी होगी। इस बार थीम सुसाइड प्रिवेंशन रखी है। इस संबंध में एक अध्ययन के मुताबिक 10 से 19 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों व किशोरों में 16 प्रतिशत ऐसे हैं, जो मानसिक अस्वस्थता के शिकार हो जाते हैं।
यदि मरीज परेशान है, तो टॉक थैरेपी का उपयोग करें
मनोचिकित्सक डॉ. प्रितेश गौतम का कहना है कि मानसिक अस्वस्थता को अभिशाप माना जाता है। साइकेट्रिक डिसऑर्डर को बीमारी नहीं समझा जाता। कई बार परिवार पीडि़त को दवाई देना भी जरूरी नहीं समझते। यदि मरीज परेशान है, तो टॉक थैरेपी का उपयोग करें। बच्चे मानसिक स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों से ज्यादा जूझते हैं, क्योंकि पैरेंट्स किसी के कंपेयर कर दबाव बनाते हैं। मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि अक्सर पेशेंट तक को पता नहीं होता कि वह बीमार है। लंदन में इसके लिए अलग से मंत्रालय है। अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने मानसिक स्वास्थ्य के चैप्टर्स स्कूली शिक्षा में हैं। मानसिक स्वास्थ्य संबंधित दिक्कतों से देश में सबसे ज्यादा आत्महत्या होती है।
कोई स्ट्रेस में है तो उसकी तकलीफ को बांटे
मनोचिकित्सिक डॉ. रूमा भट्टाचार्या का कहना है कि बाइपोलर डिसऑर्डर की स्थिति में आत्महत्या के ज्यादा चांस होते हैं। कोई मूड डिसऑर्डर या स्ट्रेस में है तो उसकी तकलीफ को बांटे। इससे व्यक्ति खुद को दूसरों से जुड़ा पाता है। यही वो स्थिति होती है, जब उसे खुद के बचाव के लिए अपनों की जरूरत होती है। लक्षणों की पहचान कर व्यक्ति को आत्महत्या से रोक सकते हैं।

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