यही कारण है कि तीन सालों में इस मशीन से किसी भी मरीज को प्लेटलेट नहीं दिया गया। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में शहर में डेंगू का प्रकोप बढऩे पर प्लेटलेट की मांग अधिक हो गई थी। जिला अस्पताल में सिंगल डोनर प्लेटलेट निकालने के लिए विभाग ने 15 लाख रुपए मशीन लगवाई थी।
ग्वालियर, जबलपुर व उज्जैन में भी यही हाल
सरकार ने जेपी के साथ ग्वालियर, जबलपुर, रतलाम व उज्जैन को भी एफेरेसिस मशीनें दी थीं। वहां भी धूल खा रही हैं। भोपाल में मशीन एम्स को दान की गई है, जिसके प्रयास अन्य जिलों में भी हो रहे हैं। इसके लिए उज्जैन मेडिकल कॉलेज से बात गई थी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
ढाई घंटे में अलग होता है प्लेटलेट
मशीन डोनर से ब्लड लेकर प्लेटलेट अलग करती है और बाकी ब्लड वापस चढ़ा देती है। एक यूनिट प्लेटलेट को चार पांच हिस्सों में निकाला जाता है। इसमें दो से ढाई घंटे लगते हैं।
विभाग के आला अफसरों का तर्क है
विभाग के अधिकारियों का कहना है कि डेंगू मरीजों से ज्यादा कैंसर पीडि़तों को प्लेटलेट जरूरत होती है। ऐसे में मेडिकल कॉलेजों में इस मशीन की जरूरत ज्यादा है, लिहाजा उन्हें दिया जा रहा है।
जिला अस्पतालों में प्लेटलेट की जरूरत कम होती है, ऐसे में मशीन रखने से कोई फायदा नहीं है। जब मरीजों को जरूरत होगी तो हम अन्य ब्लड बैंकों से व्यवस्था कर लेंगे। किसी को दिक्कत नहीं होगी।
राकेश मुंशी, संयुक्त संचालक, स्वास्थ्य संचालनालय