भोपाल

यहां बच्चे खुद तय करते हैं कब पढऩा है कौन सा विषय

पढ़ाई के साथ बच्चों को खेलने की आजादी, गीत-संगीत का भी कराते हैं रियाज

भोपालOct 11, 2018 / 07:57 pm

Rohit verma

यहां बच्चे खुद तय करते हैं कब पढऩा है कौन सा विषय

भोपाल से रोहित वर्मा की रिपोर्ट. स्कूलों में पढ़ाई करने वाले बच्चे एक ओर जहां बस्तों के बोझ तले दबे रहते हैं, वहीं शहर में एक ऐसा भी स्कूल है, जहां इन्हें इससे आजादी है। यहां बच्चों को कक्षा नहीं, बल्कि इच्छा के अनुसार खेल-खेल में पढ़ाई कराई जाती है। बच्चे खेलकूद और गीत-संगीत से इसकी शुरुआत करते हैं। इससे उन्हें खुलने का मौका मिलता है और वे तनाव फ्री रहते हैं। इसमें सभी बच्चे अपनी प्रस्तुति देते हैं। बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ ही अन्य विषयों में पारंगत किया जाता है। अपने हक की बात करने, अधिकारों को जानने आदि के लिए मोटिवेट करते हैं।

भाषा, गणित, पर्यावरण के साथ ही बच्चों के जीवन अनुभव, आस-पास की घटनाओं और परिवार की स्थितियों का उदाहरण देकर प्रारंभिक शिक्षा देते हैं। हिन्दी, अंगे्रजी, गणित, पर्यावरण अध्ययन, सामाजिक अध्ययन, म्यूजिक, ऑर्ट एंड क्रॉप्ट और मेंटर गेम का पाठ पढ़ाया जाता है। शुरुआती दिनों में बच्चों को पढ़ाने के लिए किसी एक किताब का नहीं, विभिन्न सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं। कविता, पोस्टर, चित्रकार्ड, कहानी, कठपुतली, खिलौने, नाटक व संगीत के जरिए बच्चों को बुनियादी चीजें सिखाते हैं। यहां अजीम प्रेमजी विवि बैंगलूरु, स्वराज्य विवि उदयपुर, क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान व बीएड के छात्र-छात्राएं इंटर्नशिप के लिए आते हैं।

 

मॉर्निंग गेदरिंग से होती है स्कूल की शुरूआत
सुबह स्कूल पहुंचते ही बच्चों की मॉर्निंग गेदरिंग गीत-संगीत से शुरू होती है। इसमें अलग-अलग भाषाओं के करीब 50 गीत शामिल हैं, जिन्हें बच्चे और शिक्षक मिलकर गाते हैं। इसमें हर बच्चे की गीत और फरमाइस होती है, जिससे बच्चे का डर दूर होता है और उसमें खुलापन आता है।

बच्चे खुद तय करते हैं, उन्हें आज कौन सा पढऩा है
बच्चे समूह में बैठकर डे प्लानिंग करते हैं। वे योजना तैयार कर खुद तय करते हैं कि आज उन्हें क्या पढऩा है। इससे उन्हें जिम्मेदारी का एहसास होता है और उसमें रुचि भी लेते हैं। इससे बच्चों में प्रतिनिधत्व करने की क्षमता आती है।

 

बच्चे समूहों के नाम खुद तय करते हैं
बच्चे समूहों के नाम खुद तय करते हैं। इससे निर्णय लेने की क्षमता पैदा होती है। 3 से 4 साल तक के बच्चों के समूह का नाम बटरफ्लाई, 4 से 5 का वड्र्स, 5 से 6 का शरद, 6 से 8 का बसंत और 8 से 10 साल तक के बच्चों के समूह का नाम सावन है।

कोडियम एक्टिविटी
इसमें बच्चे हर दिन का अनुभव शेयर करते हैं कि पिछले दिन कौन-कौन सी कक्षाएं अटेंड की, क्या-क्या सीखा और कैसा लगा। इससे बच्चों में अभिव्यक्ति क्षमता के साथ-साथ अपनी बात रखने की हिम्मत आती है।

यहां हैं ऐसे स्कूल
देश में इन जगहों पर ऐसे स्कूल संचालित हो रहे हैं, जहां इस पैटर्न पर बच्चों को शिक्षा दी जा रही है। इनमें सेंटर फॉर लर्निंग बैंगलूरु, सहयाद्रि स्कूल पूना, राजघाट स्कूल बनारस और ऋषिवैली स्कूल शामिल हैं। मध्यप्रदेश में लार्निंग सेंटर सेंधवा (खरगोन), मुस्कान संस्था नीलबड़ भोपाल और आनंद निकेतन स्कूल बर्रई भोपाल हैं।

हमारे अनुसार स्कूल घर का विस्तार रूप होना चाहिए। उसके लिए जरूरी है कि शिक्षक मित्र और परिजनों की भूमिका में रहें। बच्चों को सीखने के लिए किताब ही एक मात्र साधन नहीं होना चाहिए।
अनिल सिंह, आनंद निकेतन स्कूल बर्रई

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