रात्रि 9.31 बजे जेएलयू तिराहा
जंगल के अंदर की तरफ से तेज रोशनी आ रही है। रोशनी इतनी तेज है कि इसे काफी दूर से देखा जा सकता है। वन विभाग की टाइगर पेट्रोलिंग एक टीम नई सड़क के तिराहे पर रुकी हुई है। टीम का एक सदस्य पुलिया पर लेटा आराम फरमा रहा है और शेष दो गाड़ी के आसपास टहलते हुए बात कर रहे हैं। आवागमन करने वालों से कोई रोक-टोक पूछताछ नहीं की जा रही है।
यहां एक कार फार्म हाउस के मोड पर रुकी हुई है। पान-बीड़ी वाले टपरे में दो लड़के-लड़कियां बैठे हैं और दो कार में। धुआंधार नशा किया जा रहा है। गाय-भैंस पालने वाले व्यक्ति ने बताया कि पहले पुलिस गश्त करती थी, लेकिन अब कोई गश्त नहीं करता। रातभर संदिग्ध गाडिय़ों और लोगों का मूवमेंट रहता है। युवा-युवतियां भी नशा करने आते हैं। कोई रोक-टोक नहीं है।
इस रोड पर दो गाडिय़ां अलग-अलग लोकेशन पर खड़ी हैं। एक कार में तो एक व्यक्ति युवती के साथ था, लेकिन नीम वाले गेट की तरफ काले रंग की बड़ी गाड़ी में संदिग्ध लोग थे। ये गाड़ी टाइगर मूवमेंट वाले गेट के पास रुकी हुई थी। ऐसा लग रहा था कि किसी टोह में हैं। पत्रिका टीम के वहां से गुजरने पर उन्होंने गाड़ी की लाइट बंद कर मुंह फेर लिया।
इस समय लाइटिंग बहुत तेज थी। एक निजी स्कूल की बाउंड्री से लेकर अन्य ऊंचे स्थानों पर लगीं हाई इंटेंसिटी लाइट्स से इतनी चकाचौंध थी कि जंगल में छोटे से जीव को भी आसानी से मूवमेंट करते देखा जा सकता था। सूत्रों की मानें तो दो दिन पूर्व टाइगर इस संस्थान की बाउंड्री के पास आ गया था। टाइगर को यहां से भगाने के लिए हाई इंटेंसिटी लाइट्स का प्रयोग किया जा रहा है। इस लाइट से टाइगर या अन्य वन्यजीव को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है।
केरवा वन चौकी पर लगे सर्विलांस सेंटर वॉच टॉवर से कलियासोत, चंदनपुरा फॉरेस्ट का यह क्षेत्र दिखाई नहीं देता है। यहां फेंसिंग भी नहीं है। ऐसे में कौन आता-जाता है या क्या गतिविधि कर रहा है, यह पता नहीं चलता। ऐसे में वन्यजीवों की शिकार की आशंका कई गुना बढ़ गई है।
रिटायर्ड फॉरेस्ट अफसर डॉ. सुदेश बाघमारे का कहना है कि जंगल में लाइटिंग करना गलत है। इस लाइट पॉल्यूशन माना जाता है। 90 प्रतिशत जंगली जानवर रात में गतिविधि करते हैं। जंगल में रात को लाइटिंग से जानवरों के सोने-जागने का चक्र बदल जाता है। इसके साथ ही उनके शिकार करने की प्रवृत्ति भी बदल जाती है। उनके शरीर और प्रजनन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही वे शिकारियों का आसान निशाना बन सकते हैं।
फॉरेस्ट और वाइल्डलाइफ कानून के जानकारों का कहना है कि जंगल में तेज लाइटिंग करना दंडनीय अपराध है। जंगल में रात को तेज लाइटिंग भारतीय वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 2 के तहत शिकार के लिए सर्चिंग में आता है। इसके लिए सजा का प्रावधान है। वन विभाग को वाइल्डलाइफ एक्ट के तहत दोषियों के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई करनी चाहिए।
गत वर्ष बरसात के समय निजी स्कूल के पास सड़क से बाघों के कुनबे को देखकर वहां से गुजर रहे कुछ युवकों, टीचर्स और एक-दो स्टूडेंट्स ने वीडियो बनाए थे। इनमें से एक वीडियो वायरल हो गया था। उस मामले में सीसीएफ डॉ. एसपी तिवारी ने अज्ञात के खिलाफ वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम की धारा 9 के तहत केस दर्ज करवा दिया था। इस मामले में क्या वन अधिकारी जंगल में तेज लाइटिंग करने वाले दोषियों के खिलाफ केस दर्ज करवाएंगे?
यदि जंगल को फोकस करके तेज लाइटिंग की गई है तो इंटेंशन गलत है। इसकी जांच करने के बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
– हरिशंकर मिश्रा, डीएफओ