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‘बेखौफ’ हसीना का था अपना ‘गृह मंत्रालय’, जहां से करती थी नेताओं-अफसरों का फोन टेप, किसी को नहीं भनक

locationभोपालPublished: Sep 30, 2019 03:14:33 pm

Submitted by:

Muneshwar Kumar

साइबर सेल के मुख्यालय में कौन कर रहा था श्वेता विजय जैन की मदद?

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भोपाल/ हनी ट्रैप मामले में आए दिन जो खुलासे हो रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि कानून इनकी मुठ्ठी में थी। अपने हुस्न की जाल में फंसा ये सबको अपने इशारों पर नचाती थी। क्या मजाल कि कभी कोई उंगली उठा दे। अभी जो खुलासे हुए हैं, वो तो हैरान कर देने वाली है। हनी ट्रैप मामले की मास्टर माइंड श्वेता विजय जैन ने तो अपना एक ‘गृह मंत्रालय’ बना रखा था। जहां से नेताओं की जासूसी होती थी।
वो भी तब जब फोन टैपिंग की तमाम प्रक्रियाएं हैं। लेकिन कानून को अपनी मुठ्ठी में कैद कर श्वेता विजय जैन बेंगलुरु की एक कंपनी का हायर कई नेताओं और अफसरों का फोन टेप कर रही थी। यहीं नहीं वहां उनकी चैटिंग का भी रिकॉर्ड रखती थी। बेंगलुरु की जिस कंपनी को श्वेता ने हायर कर रखी थी, उससे कई गोपनीय काम करवाए। जो साइबर क्राइम के अंतर्गत आता है। जिन नेताओं को यह जाल में फंसाती थीं, उनकी हर गतिविधि पर नजर रखतीं। उनके चैटिंग, एसएमएस और कॉल भी रिकॉर्ड करती है।
Honey Trap
सीक्रेट काम लगे थे पांच लोग
श्वेता विजय जैन के इस सीक्रेट काम में पांच लोग लगे थे। इनमें से दो साइबर फॉरेंसिक के एक्सपर्ट थे। खबर यह भी है कि मध्यप्रदेश पुलिस के साइबर सेल के मुख्यालय में भी श्वेता विजय जैन अक्सर देखी जाती थी। मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया जा रहा है कि श्वेता जासूसी के काम के लिए साइबर सेल के दफ्तर का प्रयोग करती थी। क्योंकि जिस कंपनी के साथ श्वेता के गठजोड़ सामने आ रहे हैं, वो पूर्व में कई केंद्रीय एजेंसियों के लिए भी काम की है।
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साइबर सेल में कौन कर रहा था मदद
अब जांच कर रही एसआईटी के सामने सवाल यह है कि साइबर सेल एक बेहद ही गोपनीय विंग है। क्योंकि यहां से कई महत्वपूर्ण काम होते हैं। वहां श्वेता विजय जैन की एंट्री कैसे हुई, आखिर श्वेता इस गोपनीय जगह पर किससे मिलने जाती थी। कौन उसकी वहां से मदद कर रहा था। क्योंकि जिस लेवल का वह काम कर रही थी, उसके लिए किसी सीनियर अधिकारी की ही मदद चाहिए। ऐसे में अब एसआईटी उस अधिकारी के गिरेबां तक पहुंचने की कोशिश कर रही है जो इस काम में श्वेता विजय जैन की मदद कर रहे थे।

एक सॉफ्टवेयर से होती थी निगरानी
दरअसल, इस काम से जुड़े लोग साइबर क्षेत्र के एक्सपर्ट थे। नेताओं और अफसरों की जासूसी के लिए कंपनी पिगासस सॉफ्टवेयर का यूज करती थी। इसके बग को जिन लोगों की जासूसी करनी होती थी, उनके फोन में किसी तरीके से भेजा जाता था। इसके लिए यह एसएमएस या वॉट्सऐप का प्रयोग कर उनके फोन गैलरी में भेज देते थे। यह बग ही फिर जासूसी का काम शुरू कर देता था। दावा है कि इस सॉफ्टवेयर से आईफोन भी सुरक्षित नहीं था।
पहले भी आ चुके हैं फोन टैंपिग के मामले
मध्यप्रदेश में फोन टैपिंग का इतिहास पुराना रहा है। हालांकि अभी तक जो टैपिंग के किस्से हैं वो सियासी हैं। लेकिन प्राइवेट स्तर पर इस तरह के मामले पहली बार सामने आए हैं। दरअसल, जब एमपी के सीएम बाबूलाल गौर थे, तब उनके कैबिनेट के मंत्री अनूप मिश्रा ने उन पर फोन टैपिंग करवाने का आरोप लगाया था। अनूप मिश्रा अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे थे। उन्होंने इसकी शिकायत जाकर अरुण जेटली से की थी। बाद में इसी विवाद को लेकर गौर साहब की कुर्सी चली गई थी।
क्या हैं फोन टैपिंग के नियम
फोन टैंपिग के कुछ नियम हैं, किसी का भी फोन कोई ऐसे ही टैप नहीं कर सकती है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकार चाहे तो किसी का फोन टैप करवा सकती है। साथ ही इंडियन टेलिग्राफ एक्ट, 1885 के सेक्शन 5(2) के मुताबिक, अगर पुलिस, आयकर विभाग और अन्य किसी एजेंसी को लगता है कि यह कानून का उल्लंघन है तो वह आपका फोन रिकॉर्ड कर सकते हैं। अगर कोई ऐसे किसी का फोन रिकॉर्ड करता है तो वह आर्टिकल 21 के खिलाफ है। राज्यों में यह होता है कि अगर किसी व्यक्ति के फोन को टैप करना है तो पुलिस को गृह सचिव से अनुमति लेनी होती है।
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