वहीं इस इंटरनेट का माया जाल बच्चों को लगातार अपनी गिरफ्त में ले रहा है। जिसके चलते बच्चे इंटरनेट एडिक्ट होते जा रहे हैं। यहां तक की बीमार हो रहे बच्चों के मामले में भी कई डॉक्टर्स तक उन्हें मोबाइल व इंटरनेट से दूर रहने की सलाह तक देते हैं।
यदि आपका बच्चा भी आपसे मोबाइल की जिद करता है, या आपको भी लगता है कि उसे इंटरनेट अपनी गिरफ्त में ले रहा है, तो जानकारों के अनुसार ये एक खतरनाक बात है। इसके लिए आपको तुरंत जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता है।
दरअसल एक ओर जहां आज कई लोग बच्चों पर पूरा ध्यान नहीं देने के चलते बच्चे को रोता देख उसे मोबाइल व उससे जुड़ा इंटरनेट सौंप देते हैं। वहीं बच्चों में पड़ रही इस लत के चलते वे इंटरनेट से कई बार ऐसी चीजें देखने की लत में पड़ जाते हैं, जो उनके लिए घातक सिद्ध होती है।
जानकारों की मानें तो अपने भीतर जानकारियों का समंदर समेटने वाली इंटरनेट की जिस दुनिया को देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों को और संवारना और निखारना था, वह देखते ही देखते वह उनका दुश्मन बन बैठा है।
पिछले कुछ सालों में स्कूल और कॉलेज के बच्चे ऑनलाइन गेम्स की लत, सोशल मीडिया की लत, पोर्न कॉन्टेंट देखने की लत, साइबर बुलिंग जैसे ‘इंटरनेट इविल्स’ का शिकार हुए हैं। इसके चलते, स्कूलों और कॉलेजों में साइबर एजुकेशन लागू किए जाने को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।
साइबर एजुकेशन के महत्व और जरूरत को देखते हुए सीबीएसई और एनसीईआरटी सहित शहर के कई स्कूलों और संस्थाओं ने भी इस दिशा में कवायद शुरू कर दी है।
पैरंट्स के लिए सुझाव:
1- बच्चे पर नजर रखें कि वह इंटरनेट या मोबाइल पर कितने घंटे बिताता है। उम्र के हिसाब से उसका स्क्रीन टाइम लिमिट करें।
2- बच्चा कौन-कौन से ऐप्स इस्तेमाल कर रहा है, यह देखें। उसके फोन के पासवर्ड की जानकारी रखें।
3- फोन पर पैरंटल सेफ्टी कंट्रोल रखें। पॉप अप ब्लॉकर्स यूज करें। सामान्य यूट्यूब या गूगल के बजाय बच्चों के लिए सुरक्षित यूट्यूब फॉर किड और किडल ब्राउजर डाउनलोड करके दें।
4- हेलिकॉप्टर पैरंटिंग मत कीजिए। अगर हर वक्त बच्चे के सिर पर मंडराते रहेंगे, तो वे आपसे चीजें छिपाएंगे।
5- बच्चे का भरोसा जीतें, ताकि वह अपनी दिक्कतें आपसे शेयर करे। अगर वह बातें छिपा रहा है, तो एक्सपर्ट की मदद लें।
6- मां-बाप अक्सर टेक्नॉलजी के मामले में बच्चे से कम जानते हैं, ऐसे में खुद भी नई टेक्नॉलजी सीखते रहें।
इंटरनेट एडिक्शन बना बुरी बीमारी
जानकार मानते हैं कि बच्चों में साइबर अडिक्शन पिछले तीन-चार सालों में बहुत ज्यादा बढ़ा है। इन दिनों बच्चों में गेमिंग अडिक्शन, सोशल मीडिया अडिक्शन, पोर्नोग्रफी अडिक्शन, साइबर बुलिंग जैसे मामले काफी देखे जा रहे हैं।
ऐसे-ऐसे हिंसक गेम्स आ रहे हैं, जिन पर कोई रोक-टोक नहीं है। जैसे, पबजी 16 प्लस गेम है, लेकिन हमारे यहां 8 से 9 साल के बच्चे भी खेल रहे हैं। इसी तरह, सोशल मीडिया अडिक्शन भी बहुत बढ़ रहा है। इंस्टाग्राम बच्चों में बहुत पॉप्युलर है। उसमें कई बार बच्चे न्यूड फोटोज़ भी शेयर कर देते हैं।
वहीं अब टिक टॉक अडिक्शन भी है। उसमें अडल्ट भी बच्चों के विडियोज देखते हैं। फिर, उनको बहला-फुसलाकर उनके आपत्तिजनक फोटोज ले लेते हैं और धमकाते हैं। इसे सोशल मीडिया में चाइल्ड ऑनलाइन ग्रूमिंग कहते हैं। इसके अलावा, पोर्नोग्रफी का अडिक्शन और साइबर बुलिंग के मामले भी खूब देखने को मिल रहे हैं।’
साइबर एक्सपर्ट स्कूलों में!
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) भी स्कूलों में साइबर सिक्यॉरिटी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने जा रही है। इसमें स्टूडेंट्स को साइबर क्राइम के खतरों से आगाह करने के साथ ही सेफ्टी रूल्स भी बताए जाएंगे।
1- बच्चों और पैरंट्स से बात करने में न हिचकें। 2- ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर समय-समय पर इंटरैक्टिव वर्कशॉप करें। 3- स्कूल में काउंसलर या कोई ऐसी व्यवस्था की जाए, जहां बच्चे बिना डरे-सहमे अपनी समस्याएं शेयर कर सकें।
ये होती है युवाओं में तक परेशानी…
अध्ययनों से पता चलता है कि इंटरनेट के अत्यधिक इस्तेमाल करने से इंसान को इसकी लत लग जाती है उसके हर समय बस यही ध्यान रहता है कि उसे मोबाइल, लैपटॉप आदि का इस्तेमाल कर के कुछ देखना है या किसी से बात करनी है। वहीं जब इंसान को इसकी लत लग जाती है तो वह शारीरिक स्वाथ्य से कमज़ोर हो जाता है, इस के दुष्ट प्रभाव से सर में दर्द कमर में दर्द चिड़चिड़ापन आदि हो जाता है।